‘मैं किचन में गई, चाकू उठाया, अपनी कलाई काट ली…’ पढ़ें कैसे इस घटना ने बदल डाली मानसी की ज़िन्दगी

Ishi Kanodiya

हम सब के जीवन में कुछ न कुछ ऐसा हुआ होता है जिससे हम पूरी ज़िन्दगी लड़ते रहते हैं. कुछ बातें, कुछ यादें जिससे हम आगे बढ़ने की नाकाम कोशिश करते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ घटनाएं या निशान हमारा वज़ूद बन जाती हैं. 

मानसी के साथ भी सालों पहले कुछ ऐसा ही कुछ हुआ था. उसके जीवन की एक घटना ने उसका पूरा जीवन बदल दिया और अब वो निशान उसके आज का हिस्सा बन गया है. 

मेरे पिता एक बहुत ही possessive इंसान हैं. मुझे याद है, बड़े होते वक़्त मैंने अपने माता-पिता के बहुत झगड़े देखे हैं. अगर मेरी मां मेरे पिता को बिना बताए भी एक घंटे के लिए भी कहीं चली जाती थीं, तो वो एकदम परेशान हो उठते थे. तब मुझे नहीं पता था कि ये सारी चीज़ें मुझ पर क्या असर डालेंगी. मैं बड़ी हो गई और अक्सर घर से बाहर रहने लगी. इस बात से मेरे पिता को सख़्त नफ़रत थी. वो मुझे वो हर बात याद दिलाते थे, जो इस दुनिया में बुरी है और ये भी कि मेरे साथ क्या-क्या बुरा हो सकता है. अगर मुझे घर आने में कुछ मिनटों की भी देरी हो जाती थी, तो वो बहुत ग़ुस्सा हो जाते थे और इसके बाद कई दिनों के लिए घर से बाहर नहीं निकलने देते थे. 

मानसी को अपने पिता का ये व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर उसके पिता उस पर इतनी बंदिशे क्यों लगा रहे हैं. 

कुछ समय के बाद ये सारी चीज़ें मेरे ऊपर हावी होने लगीं. मेरे लिए ये समझना बहुत मुश्किल था कि मेरे पिता की परवरिश किस तरह के माहौल में हुई थी. मैं निराश हो जाती थी और ये नहीं जानती थी कि मेरे लिए खींची गई सीमाओं को कैसे तोड़ सकती हूं. एक बार मैं स्कूल में अपना एक प्रोजेक्ट करने के लिए रुक गई. मैं घर, एक घंटा देरी से पहुंची थी और जब मैं पहुंची तो मेरे पिता बहुत नाराज़ थे. जैसे ही मैं घर में दाख़िल हुई, उन्होंने मुझ पर चिलाना शुरू कर दिया और इनका ये बर्ताव पहले से भी ज़्यादा ख़राब था. चीज़ें इतनी ख़राब हो गईं कि वो रोने लगे. उन्होंने मुझे बताया कि वो आज से पहले कभी किसी के लिए नहीं रोए. 
मैं केवल 15 साल की थी और मुझे अपनी भावनाओं पर बिलकुल नियंत्रण नहीं था. मैं बहुत निराश हो गई थी और अपने ऊपर लगी सभी सीमाओं से थक गई थी. मैं अब इस घर में भी रहना नहीं चाहती थी. तो, मैं किचन में गई, चाकू उठाया और अपनी कलाई इस उम्मीग में काट ली कि ये सारी परेशानियां और दर्द ख़त्म हो जाएं.   अगली बात जो मुझे याद है वो ये कि मैं एक हॉस्पिटल के बिस्तर पर थी. मेरे पिता को इस बात का एहसास हुआ कि ये सारी चीज़ें मेरे ऊपर कितना बुरा असर डाल रहीं थी. इस बात को अब 5 साल हो गए हैं और इस वक़्त मैं अपने जीवन में बहुत बेहतर जगह पर हूं. मैं उन सब बातों से आगे बढ़ गई हूं और एक मेरा सपना है कि मैं एयरहोस्टेस बनूं और पूरी दुनिया घूमूं. लेकिन जब भी मैं किसी इंटरव्यू के लिए जाती हूं, मैं हर दौर और हर परीक्षा में सफल हो जाती हूं. मगर जैसे ही वो लोग मेरा निशान देखते हैं मुझे रिजेक्ट कर देते है. 
मैं अपने इस निशान को भले ही कोई भी बहाना बनाकर ढंकने की कोशिश करती हूं, लोग कभी भी मुझे इसके पार नहीं देखते. इस बात से हर बार मेरा दिल टूट जाता है क्योंकि मेरा निशान मेरी पहचान नहीं है, मैं इस निशान से हट कर भी बहुत कुछ हूं. माना मैं लड़खड़ाई हूं, लेकिन मैंने ख़ुद को उठाया भी तो है. मैं खुद अपने दम पर यहां तक आई हूं और जिन भी चीज़ों ने मुझे तोड़ा, उन सभी चीज़ों ने मुझे मज़बूत बनाया है. ये निशान मुझे हर वक़्त मेरी ताक़त का एहसास कराते हैं और मैं उनके लिए शर्मिंदा नहीं हूं. 

कोई भी इंसान उसका अतीत नहीं उसका आज होता है. 

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