मेरे दोस्त को मेरी बनाई मैगी पसंद नहीं आई, क्या मुझे अब भी इस समाज में रहने का हक़ है?

Ishi Kanodiya

आज का दिन बाक़ी दिनों की तरह नॉर्मल नहीं था. मुझे कुछ मेडिकल चेक-अप के लिए जाना था, यानी ब्लड टेस्ट वगैरह.   

फ़िर क्या था इंजेक्शन के बारे में सोच-सोच कर मेरी जान जा रही थी.

जी हां, मैं 21 साल की हूं और मुझे इंजेक्शन या सुई से बहुत डर लगता है. हां जानती हूं, आप में से कुछ लोगों को हंसी आ सकती है और कुछ लोग मेरी बात से इत्तेफ़ाक़ भी रख सकते हैं. अब डर लगता है, तो लगता है. इंजेक्शन के डर के कारण मैंने अपने बेस्ट फ़्रेंड, ऋषि को अपने साथ चलने को कहां. अरे, भाई इमोशनल सपोर्ट देने के लिए. अब तो आप लोग समझ ही गए होंगे कि मुझे कुछ ज़्यादा ही डर लगता है. 

फिर जैसा कि तय था हम दोनों गए, मैंने अपना ब्लड टेस्ट करवाया. हां, आप लोग सही सोच रहे हैं, मैं रोई थी. ख़ैर, वापिस घर आने के बाद ऋषि ने मुझसे कहा कि उसको भूख़ लग रही है, तो मैंने हम दोनों के लिए मैगी बना दी. 

अब भाई साहब, मैं मैगी बना कर लेकर आई और जैसे ही ऋषि ने मैगी खाई उसने इतना गंदा मुंह बनाया. 

“ईशी कितनी गन्दी मैगी बनाई है तुमने.” 

मैंने तुरंत मैगी खाई वो नॉर्मल थी. हां, थोड़ी सा टेस्ट फीका था पर इतनी भी बुरी नहीं थी जितना मुंह चढ़ा कर ऋषि बोल रहा था. 

“इतनी गन्दी मैगी तू कैसे बना सकती है ईशी, मतलब तुझे मैगी भी नहीं बनानी आती.” 

“तुझसे अच्छी मैगी तो मैं बना लेता.” 

मैंने भी छूटते कह दिया, “तो तू ही बना लेता, मैंने मना थोड़ी न किया था.” 

फिर क्या था, उसने मुझे परेशान करना शुरू कर दिया, “मैं तेरे पास आया हूं, तुझे मुझे खिलाना चाहिए न की मुझे तुझे”. 

और उस नालायक़ ने फिर हम दोनों के एक बहुत क़रीबी दोस्त आदित्य को फ़ोन लगाया, “यार, आदित्य इस लड़की ने इतनी गन्दी मैगी बनाई है. मतलब यार, सुबह से भूखा हूं इसके लिए इतना भाग-भाग कर आया और इसने मुझे इतनी गन्दी मैगी खिलाई है.” 

मतलब उसने आदित्य को फ़ोन करके बताया और हम दोनों का ये दोस्त चेन्नई में रहता है. ऋषि की ये नौटंकी सिर्फ़ आदित्य तक नहीं रुकी उसने फ़िर अपने एक पहाड़ी दोस्त को भी फ़ोन लगाया. “यार, तेरी बहुत याद आ रही है. अपनी एक दोस्त के यहां आया हूं, उसने क्या बेकार मैगी बनाई है. तेरे हाथ की मैगी….” 

मैंने बोला बस कर यार ऋषि इतनी भी बेकार नहीं है कि तू सबको फ़ोन करके बता रहा है. 

अब ऋषि तो ऋषि है, उसने मेरी मम्मी को भी फ़ोन किया, “आंटी, ईशी ने कितनी गन्दी मैगी बनाई है. इस लड़की को मैगी भी बनानी नहीं आती. क्या होगा इस लड़की का आंटी?… ” 

मतलब ऋषि जी ने पूरे ब्रह्माण्ड में ढ़ोल-नगाड़े पिटवा दिए की मैंने कितनी गन्दी मैगी बनाई है. वो मुझसे बार-बार बोल रहा था, “कौन करेगा तुझसे शादी, मैगी भी अच्छे से नहीं बना सकती.” 

बेशक़, उस समय मुझे ये सब हंसी-मज़ाक लग रहा था. मैं भी हंस रही थी, थोड़ा चिढ़ रही थी, थोड़ा उसको भी परेशान कर रही थी. ऐसे ही बात करते, शरारत करते शाम बीत गई और ऋषि भी चला गया. 

बाद में जब अकेले बैठी तो पूरे दिन की सारी बातें सोचने लगी और उस समय एहसास हुआ कि वो था तो सबकुछ मज़ाक ही लेकिन मुझे भीतर कहीं वो बात बुरी लगी. इन सब हंसी-मजाक के बीच भी समाज की ये सोच कैसे हवा की तरह हमारे बीच होती है और हमें एहसास भी नहीं होता. 

हम दोनों बचपन के दोस्त हैं. साथ में बड़े हुए. मुझे हमेशा लगता था कि हम समाज की बहुत सारी घिसी-पिटी चीजों से आगे बढ़ गए हैं. हमेशा लगा कि हम लोग तो कितने कूल टाइप के दोस्त हैं यार. पर इस किस्से के बाद मुझे लगा कि मेरे अच्छा खाना न बनाने पर भले ही कोई गंभीर बहस नहीं हुई या मेरे दोस्त ने मुझे शर्मिंदा नहीं किया. लेकिन सोचा जाए तो ये बात रहेगी तो प्रॉब्लेमैटिक ही ना. चाहे उसे गंभीरता से कहा जाए या फिर हंसी मज़ाक में! 

और अब सोचती हूं की अगर मेरी जगह कोई लड़का होता तब भी ऋषि सबको फ़ोन लगा-लगा कर बताता? 

Awesome illustrations by- Aprajita Mishra

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