ये 10 कानून, दुनिया भर की औरतों के अस्तित्व और आज़ादी के दुश्मन हैं

Smita Singh

कहते हैं कि मकान को घर में तब्दील औरत ही करती है. वही आधार होती है परिवार और गृहस्थ जीवन का. उसके होने से ही जीवन में निरंतरता और सुकून है, तो फिर क्यों वही औरत हर कठोरता और अमानवीयता सहन करने को मजबूर है. वो मां है, बहन है, बेटी है, पत्नी है, लेकिन एक औरत से ही जन्मा पुरुष जिस रूप में उसे सबसे अधिक आज़माता और मिटाता है, वो है उसका औरत होना.

पूरी दुनिया में औरतों के अधिकारों और उनके विकास के लिए आन्दोलन हुए. अमेरिका से लेकर भारत और अफ्रीका से लेकर खाड़ी देशों तक, महिलाओं के हक़ के चर्चे हुए. 1995 में World Conference on Women में 189 देशों ने एक प्लान पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सभी देशों ने अपने नागरिकों के विकास के लिए लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के विचार को स्वीकार किया. इसके बावजूद दुनिया के कई देशों में आज भी ऐसे अमानवीय कानून लागू हैं, जो औरत को मानव होने की श्रेणी से ही दरकिनार कर देते हैं.

एक औरत होने के नाते उससे क्यों सब कुछ सहने, चोट खाने, पुरुष की हर बात मानने या हर अपराध को भुलाने की अपेक्षा रखी जाती है? आखिर क्यों उसके बलात्कार को एक मामूली घाव समझ कर उसका नसीब बना दिया गया है? आज हम आपको ऐसे कानूनों के बारे में बताएंगे, जो कई देशों में आज भी औरतों के ख़िलाफ़ लागू हैं और किसी अभिशाप से कम नहीं है.

1. औरत से उसका पति रेप कर सकता है

उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियाई देश बहामास में एक पति को ये हक़ है कि वो अपनी पत्नी के साथ जबरन शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है, बशर्ते पत्नी की उम्र 14 साल से कम न हो. सिंगापुर में भी पति को पत्नी का रेप करने का अधिकार मिला हुआ है, बशर्ते पत्नी की उम्र 13 साल से कम न हो.

2. औरत का अपहरण कर सकते हैं

लेबनान में कोई भी पुरुष अगर महिला का अपहरण या रेप करता है तो उस महिला से शादी करने की रज़ामंदी देने पर उसे सजा नहीं दी जाती है. यूरोपीय देश माल्टा में भी ऐसा ही नियम है कि अगर अपहरण करने वाला व्यक्ति पीड़िता से विवाह करने का इरादा रखता है, तो उसकी पेनाल्टी कम हो जाती है. वहीं पीड़िता से शादी कर लेने पर उसकी पेनाल्टी माफ़ कर दी जाती है.

3. धोखा देने पर महिलाओं को जान से मारने का हक़

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मिस्र में पत्नी द्वारा धोखा देने पर पति उसको जान से मार सकता है. हैरानी की बात ये है कि उसे इस गुनाह के लिए आम हत्यारों जैसी कठोर सजा दिए जाने का प्रावधान भी नहीं है. उसे मामूली सी सजा मिलती है. सीरिया में भी ऐसी ही स्थिति है. यहां पर कोई भी पुरुष अपनी मां, बहन, पत्नी और बेटी की हत्या करने के लिए स्वतंत्र है, अगर वे किसी सेक्सुअल एक्टिविटी में शामिल हैं.

4. औरतों को पीटा जा सकता है

नाइजीरिया में कानूनी रूप से एक पुरुष, औरत को शारीरिक रूप से प्रताड़ित कर सकता है या पीट सकता है और इसके लिए उसे कानून का सामना भी नहीं करना होता. शर्त ये है कि वो औरत उसकी पत्नी हो और गंभीर रूप से घायल न हो.

5. पुरुष फ़ैसला करते हैं कि महिलाएं कहां काम करेंगी

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कैमरून और गिनी जैसे देशों में पति को पत्नी की जॉब पर फ़ैसला लेने का हक़ होता है. कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को उसकी मर्ज़ी का काम करने से रोक सकता है, अगर वो काम पति को पसंद नहीं है या उसके खुद के काम से अलग है.

6. औरत तलाक़ नहीं ले सकती

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इज़राइल में शादियां और तलाक़ धार्मिक कानूनों के आधार पर होते हैं. यहां के कानून के मुताबिक, तलाक़ तभी हो सकता है, जब पुरुष तलाक़ लेना चाहे.

7. एक औरत की गवाही व्यावहारिक रूप से बेकार है

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पाकिस्तान में, कुछ मामलों में औरत द्वारा दिए गए सबूत पुरुषों के सबूत की तुलना में आधा महत्त्व भी नहीं रखते हैं.

8. औरतें ड्राइव नहीं कर सकतीं

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सऊदी अरब में महिलाएं फ़तवे के कारण न तो ड्राइव कर सकती हैं और न ही ड्राइविंग लाइसेंस ले सकती हैं.

9. लड़कों की तुलना में, वारिस के तौर पर लड़कियां बेकार

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ट्यूनीशिया में लड़कियों का वारिस बनने का अधिकार सीमित है. यहां बेटे, बेटियों की तुलना में दोगुना अधिक वारिस बनने के अधिकारी होते हैं.

10. औरतें अपनी मर्ज़ी से घर से बाहर नहीं निकल सकतीं

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अफगानिस्तान और यमन जैसे देशों में पुरुष अपनी पत्नी के घर से निकलने पर रोक लगा सकता है और ऐसा वहां का कानून कहता है.

दरअसल, गलती कानून की नहीं, इन कानूनों को बनाने वाले पुरुष प्रधान समाज की है, जो महिलाओं को अपनी सेविका से ज्यादा कुछ नहीं समझता. आखिर कब हम दोहरी नीति से बाज आएंगे? कब महिलाओं को भी मनुष्य समझेंगे? हम कब शापमुक्त होंगे? 

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