12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ मंदिर. सावन के महीने में लाखों कांवड़ बाबा वैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं.
जेल गार्ड नंगे पांव मुकुट को बाबा के दरबार तक ले जाते हैं. इस मुकुट के बिना बाबा का शाम का श्रृंगार अधूरा माना जाता है. शाम के श्रृंगार के बाद ही मंदिर के पट बंद होते हैं.
देवघर के एसपी नरेंद्र कुमार सिंह के अनुसार,
कमिश्नर के बेटे की तबियत बहुत ज़्यादा खराब हो गई थी और भारत का कोई डॉक्टर उसका इलाज नहीं कर पा रहा था. एक पुजारी ने कमिश्नर को बाबा वैद्यनाथ की पूजा करने को कहा. कमिश्नर ने पूजा की और उसका बेटा ठीक हो गया. उसके बाद कमिश्नर J.W.Tailor ने ऑर्डर जारी किया कि मंदिर में फूलों का मुकुट जेल से ही भिजवाया जाएगा. तब से अब तक वही परंपरा चली आ रही है.
-एसपी नरेंद्र कुमार सिंह
अपनी पत्नी की हत्या की सज़ा काट रहे एक क़ैदी ने बताया,
सर्प के सिर के आकार का मुकुट बनाने में लगभग 6 घंटे लगते हैं.
-क़ैदी
हर सुबह 2 जेल गार्ड शहर से बाहर फूल ख़रीदने जाते हैं. कैदी श्रद्धा से नहा-धोकर, साफ़ कपड़े पहनकर 12 बजे दोपहर के आस-पास काम करने बैठते हैं. क़ैदियों को इस काम के लिए रोज़ाना 91 रुपए मिलते हैं.
ऑनर किलिंग केस में सज़ा काट रहे एक क़ैदी के शब्दों में,
भगवान की सेवा करके रोज़ मुझे अपने पापों का प्रायश्चित करने का मौक़ा मिल रहा है.
-क़ैदी
श्रावण पूर्णिमा के दिन जेल के क़ैदी दो मुकुट तैयार करते हैं. जेल सुपरिटेंडेंट कुमार चंद्रशेखर ने बताया,
दूसरा मुकुट, कड़ी सुरक्षा में दुमका स्थित बासुकीनाथ धाम भेजा जाता है. हम बाबा बासुकीनाथ को फ़ौजदारी बाबा कहते हैं. ये मान्यता है कि बाबा वैद्यनाथ से ज़्यादा जल्दी बाबा बासुकीनाथ इच्छाएं पूरी करते हैं.
-जेल सुपरिटेंडेंट कुमार चंद्रशेखर
भारत में सिर्फ़ देवघर के ही जेल में ऐसी परंपरा है. शिवरात्रि के दिन ही क़ैदी ये मुकुट नहीं बनाते क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उस दिन महादेव का विवाह हुआ था और उन्हें एक अलग तरह का मुकुट पहनाया जाता है.