बैगा जनजाति: जंगल को बचाने के लिए पेड़ों को भाई-बहन बनाया, MP के इस जनजाति की कहानी है दिलचस्प

J P Gupta

Baiga Tribe: मध्य प्रदेश में एक जनजाति है बैगा. ये राज्य के डिंडोरी ज़िले में पाई जाती है और इसकी गिनती कमजोर आदिवासी समूह में होती है. पोंडी गांव में बसी इस जनजाति की बस यही एक ख़ासियत नहीं है. 

ये पूरी दुनिया में अपने अनोखे जंगल बचाओ अभियान और ख़ुद के आत्मनिर्भर होने के लिए भी जानी जाती है, जिसकी शुरुआत आज से कई साल पहले हुई थी. चलिए जानते हैं इस ख़ास जनजाति और इसके अनोखे अभियान के बारे में…

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ऐसे हुई शुरुआत

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आत्मनिर्भर बनी इस जनजाति के जंगल बचाओ अभियान की शुरुआत साल 2006 में हुई थी. इसे 4 क्लास ड्राप आउट एक महिला उजियारो बाई केवटिया ने शुरू की थी. उन्होंने एक NGO के साथ मिलकर इसकी शुरुआत की थी जब वो यहां पर पानी को संरक्षित करने के इरादे से यहां आई थी. मगर उनके इस मकसद में रुकावट आईं जिसका मुख्य कारण जंगल की कटाई या फिर धीरे-धीरे उनका कम होना था.

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आसान नहीं था काम

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तब उन्होंने बैगा जनजाति के साथ मिलकर जंगल बचाओ अभियान की शुरुआत की. उजियारो बाई के लिए ये आसान नहीं था पहले उनके पति ने ही इसका विरोध किया क्योंकि वो चाहते थे कि वो परिवार और बच्चों पर ध्यान दें. मगर उन्होंने न सिर्फ़ अपने पति को समझाया बल्कि गांव के दूसरे लोगों (110 परिवार) को भी पेड़ लगाने और उन्हें बचाने के लिए प्रेरित किया.

जंगल को बचाने को बनाए सख़्त नियम 

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जंगल को बचाने के लिए 3 सख़्त नियम बनाए गए थे. पहला हरे-भरे पेड़ों को न काटना, दूसरा बाहरी लोगों को भी पेड़ काटने से रोकना और जंगल में लगी आग को जितना जल्दी हो सके रोकना. इसे एक कदम आगे ले जाते हुए उन्होंने रक्षाबंधन पेड़ों के साथ मनाना शुरू किया. इस तरह पेड़ उनके भाई-बहन बन गए और उनकी रक्षा करना उनका कर्तव्य.

1500 एकड़ में फैला है घना जंगल

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उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि इस ज़िले के लगभग 1500 एकड़ में घना जंगल फल-फूल रहा है. इससे उन्हें फल-सब्ज़ियां मिलती हैं और बहुत सारे वन्यजीवों का भी ये घर है. डिंडोरी ज़िले के National Institute of Women, Child and Youth Development का भी इसमें बहुत बड़ा हाथ है. इसकी जैवविविधता की बात करें तो इसमें, 43 प्रकार की पत्तेदार सब्ज़ियां, 13 प्रकार के मशरूम, 18 तरह के टूबर प्लांट, 24 प्रकार के फल, 26 प्रकार की जड़ी बूटियां और अन्य वन्य जीव शामिल हैं.

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खाने के साथ ही इन्होंने अपने पानी की व्यवस्था कर ली है. पेड़ों कि वजह से बंद हुए दो झरने भी पुनर्जीवित हो गए हैं. कुल मिलाकर बैगा जनजाति के लोग आत्मनिर्भर बन गए हैं. यही नहीं उन्होंने अगली पीढ़ी यानी बच्चों को भी जंगल को बचाने के लिए जागरूक कर दिया है और बच्चे जंगल में मिलने वाली हर चीज़ खाने से लेकर पशु-पक्षियों के बारे में भी जानते हैं.

बैगा जनजाति ने जैसा प्रयास किया है उससे देश के अन्य हिस्सों में भी जंगल बचाओ अभियान शुरू किया जाए तो हमारा देश पहले से भी हरा-भरा और प्राकृतिक संपदा से संपन्न हो सकता है.

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