कभी गरीब की माशूका बन जाती हैं, तो कभी रोटी बन कर उसकी भूख मिटाती हैं बशीर बद्र की कवितायें

Sumit Gaur

मेरे ख़्याल से बशीर बद्र ने न तो कभी कोई नज़्म कही और न कभी कोई ग़ज़ल कही. उन्होंने तो बस हक़ीक़त को शेर का अमलीजामा पहना कर दुनिया के सामने रखा, जिसे लोगों ने कभी ग़ज़ल कहा, तो कभी नज़्म. खुद बशीर साहब अपने शेरों के बारे में कहते हैं कि

‘हज़ारों शेर मेरे सो गए कागज़ की कब्रों में अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा, ज़िंदा नहीं रहता’

जब कोई शायर अपने शेरों से कुछ इस कदर मोहब्बत करने लगे, तो उसे सिर्फ़ शायरी के दायरे में बांधना कहां तक लाज़मी है? इसे आप भी बखूबी समझ सकते हैं. आज हम बशीर साहब के कुछ ऐसे ही शेर ले कर आए हैं, जिनमें ज़िन्दगी खुद आपके करीब आ कर आपसे बात करती हुई दिखाई देती है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Design By: shruti

आपको ये भी पसंद आएगा
बेवफ़ा समोसे वाला: प्यार में धोखा मिला तो खोल ली दुकान, धोखा खाये लवर्स को देता है डिस्काउंट
जानिये दिल्ली, नई दिल्ली और दिल्ली-NCR में क्या अंतर है, अधिकतर लोगों को ये नहीं मालूम होगा
जानिए भारत की ये 8 प्रमुख ख़ुफ़िया और सुरक्षा जांच एजेंसियां क्या काम और कैसे काम करती हैं
मिलिए गनौरी पासवान से, जिन्होंने छेनी व हथोड़े से 1500 फ़ीट ऊंचे पहाड़ को काटकर बना दीं 400 सीढ़ियां
ये IPS ऑफ़िसर बेड़िया जनजाति का शोषण देख ना पाए, देखिए अब कैसे संवार रहे हैं उन लोगों का जीवन
अजय बंगा से लेकर इंदिरा नूई तक, CEO भाई बहनों की वो जोड़ी जो IIM और IIT से पास-आउट हैं