तोप ज़मानों से जंग का हिस्सा रही हैं. समय के साथ इसके आकार और ताकत में परिवर्तन हुआ है. वर्तमान में इस्तेमाल होने वाली हर तोप कहीं न कहीं इतिहास की तोपों से मिलती-जुलती हैं. अगर हम इतिहास में झांके तो पता चलता है कि तोप की शुरुआत पहले पत्थर के गोले फ़ेकने से शुरू हुई, जो वक़्त के साथ लोहे के गोले और फिर बारुद भरे गोले फ़ेकने तक जा पहुंची.
सन 1526 में तोपों का सबसे सफ़ल प्रयोग बाबर ने इब्राहिम लोदी के खिलाफ़ किया गया था. बाबर की सेना ने सिपाहियों की संख्या कम होने के बावजूद तोप की सहायता से लोदी को हरा दिया था. वहीं 1528 में भी बाबर ने राणा सांगा को अपनी तोप की ताकत से ही हराया था.
उस वक़्त भी तोपों के डिज़ाइन और ताकत में लोग बदलाव करते रहते थे. लेकिन पहली तोप जिसे आज के युग की तोप की शुरुआत कहा जा सकता है, वो थी मलिक-ए-मैदान, जिसका मतलब होता है जंग के मैदान का राजा. इसे 1549 में मोहम्मद-बिन-हुसैन ने बनाया था. 700 mm मारक क्षमता वाली इस तोप से पहली बार लोहे का गोला दागा गया था. ये तोप खुद लोहे की बनी थी.
दूसरी तोप का ज़िक्र मिलता है सन 1620 से, उस वक़्त बनाई गई तोप का ताल्लुक नायक शासन काल से दिखता है. Thanjavur शहर की रक्षा के लिए इसे मुख्य द्वार पर लगाया गया था.
280 MM मारक क्षमता वाली ये तोप जयपुर सीमा की रक्षा करती थी. राजा जय सिंह ने इसे सन 1720 में बनवाया था. इस तोप को शहर द्वार पर लाने के लिए कई हाथियों का सहारा लिया गया था. इस तोप से 50 किलो का गोला दुश्मन पर दागा जाता था, जिसमें बारूद भरा होता था, इसके वार से बड़ी से बड़ी सेना डर कर पीछे हटने को मजबूर हो जाती थी.
दाला मरदाना नाम से जाने जानी वाली ये तोप 286 MM की मारक क्षमता रखती थी. 1565 में इस तोप को बनवाया गया था. इस तोप का ताल्लुक बिसनपुर से है. महाराजा बीर हमबीर के शासन काल में इस तोप को बनाया गया था. दाला का मतलब होता है दुश्मन और मरदाना का मतलब होता है कातिल. इस तोप की ताकत के कारण इसे दुश्मन का कातिल कहा गया.
जहान कोसना नाम की ये पांचवी तोप 286 MM मारक क्षमता रखती थी. ये तोप पश्चिम बंगाल की सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात थी. लेकिन शाहजहां के शासन काल में इस तोप का नाम बदल कर ढाका रख दिया था. इस तोप के गोले 8 अलग-अलग पदार्थों से मिला कर बनाए जाते थे.
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