LOC पर एक पैर गंवाने के बाद भी गुनासेकरन ने अपनी ‘दूसरी ज़िंदगी’ में तीन स्वर्ण पदक जीत लिए

Kundan Kumar

Indian Express

गुनासेकरन को याद आता है कि धमाके की वजह से उनकी कान में आवाज़ गूंज रही थी. उनकी बायें पैर में तेज़ दर्द हो रहा था. जब उन्हें सुनाई देना शुरू हुआ तो उन्हें ख़ुद की चीख ही सुनाई दे रही थी और साथी सैनिक उनको हौसला देने की कोशिश कर रहे थे. लैंडमाइन पर पैर रखने की वजह से उन्होंने अपना बांया पैर खो दिया था. 

पिछले सप्ताह चीन के Wuhan में World Military Games में दौ़ड़ते हुए गुनासेकरन ने तीन गोल्ड मेडल जीते. ब्लेड की मदद से दौड़ने वाले इस धावक की नज़र अब टोक्यो Paralympics पर है. नियमों के बदलने के बाद से गुनासेकरन को उम्मीद को उनकी रैंकिंग टॉप 5 में होगी. 

गुनासेकर, मद्रास रेजिमेंट में सुबेदार थे, साल 2008 के जनवरी के महीने में उनकी पोस्टिंग LOC पर हुई थी. पांच महीने बाद 4 जून को एक टीम के साथ उन्हें बॉर्डर पर तारों की जांच पड़ताल करने के लिए भेजा गया था. वहां बर्फ़ के नीचे एक माइन थी, बदकिस्मती से गुनासेकरन का बांया पैर उस पर चला गया. 

एक साल तक अस्पताल में बिस्तर पर पड़े रहें, वहां उन्होंने Paralympics में कई गोल्ड जीतने वाले Oscar Pistorius की कहानी पढ़ी और उन्हें जीवन का नया मक़सद मिल गया. 11 साल बाद गुनासेकर अपनी ‘दूसरी ज़िंदगी’ जी रहे हैं. 

पहले मैं लकड़ी के पैर का इस्तेमाल करता था. मेरा पैर घुटने के ऊपर से कटा हुआ था. मैं अक्सर प्रैक्टिस करते समय गिर जाया करता था. लेकिन मेरी ये नई ज़िंदगी थी. मुझे ये सीखना ही पड़ता.

सड़क पर लोग उन्हें ‘पागल’ कहते थे, शुरुआत में उन्हें घर से भी सहायता नहीं मिली थी. हालांकि उन्होंने अपने साथ हुए हादसे के बारे में महीनों तक घर पर नहीं बताया था. 

जब हादसा हुआ था, मुझे लगा सब ख़त्म हो गया. मेरे पिता रिक्शाचालक हैं, चीज़ें मुश्किल थीं. फिर मैंने अपना पैर खे दिया, मुझे लगा मैं कभी अपने परिवार की आर्थिक मदद नहीं कर पाऊंगा. फिरे मुझे दूसरा मौक़ा मिला. आर्मी ने मेरी सहायता की, साल 2014 में मुझे ब्लेड मिला और मैंने ट्रेनिंग स्टार्ट की. मैं अपना नाम बनाना चाहता था.

एक महीने बाद वो अपने पहले अंतरराष्ट्रीय दौड़ में हिस्सा लेने Tunisia गए और वापसी में अपने साथ एक गोल्ड और एक सिल्वर मैडल लेकर आए. 

अगस्त में उन्होंने पेरिस में World Para Athletic Grand Prix में 200 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता था. वो टोक्यो Paralympics के लिए पुणे में जी जान लगा कर ट्रेनिंग कर रहे हैं और उन्हें मेडल जीतने का पक्का यक़ीन है. 

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