‘मैं लड़की के रूप में लड़का पैदा हो गया था’, परिवार से मिली हिम्मत तो ‘बदलवाया’ अपना शरीर

Ishi Kanodiya

सोचिए न ज़िंदगी भर आपको एक ऐसी पहचान के साथ जीने को मजबूर कर दिया जाए जो आप नहीं हो. कैसा लगेगा? घुटन सी होगी न. 

जब समर का जन्म हुआ था उसके कुछ साल बाद ही उसे एहसास हो गया था कि वो, वो वैसा नहीं है जैसा दिखता है. 

“जब मैं दो साल का था मुझे तभी मुझे पता था कि मुझमें कुछ तो अलग है. मैं एक लड़की के रूप में पैदा हुआ था लेकिन मैं वैसा महसूस नहीं कर पाता था. मैं अपने ब्रेस्ट्स से नफ़रत करता था. मैं लड़कियों के कपड़े नहीं पहनना चाहता था. मैं लड़कियों के बाथरूम नहीं जाना चाहता था. मैं एक ऐसे पिंजरे में बंद हो गया था, जिससे बाहर निकल आज़ाद होने की हिम्मत मुझ में नहीं थी. मुझे स्कूल में लड़का जैसा होने के लिए बहुत परेशान किया जाता था, मुझे ‘छक्का’ जैसे नामों से भी बुलाया जाता था. मैंने खुदख़ुशी करने की भी कोशिश की थी लेकिन हर प्रयास विफल जाता था अंत में, मैंने कोशिश करना ही छोड़ दिया.

जब मैं 23 साल का तो मैं पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चला गया. मैं अकेले रहना लगा और अब मेरे पास थोड़ी बहुत आज़ादी भी थी. मुझे इस बात का एहसास हुआ कि हार मान लेने से अच्छा मुझे लड़ना चाहिए और ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीनी चाहिए. मैंने इंटरनेट पर सहारा ढूंढने की कोशिश की तभी मुझे Gender Corrective Surgery के बारे में पता चला. मुझे पता था कि मुझे ये करवाना है, ये मेरा एक मात्र सहारा था. 
मुझे डर था कि लोग मुझे नहीं अपनाएंगे लेकिन मैंने सोच लिया था कि मैं अपने माता-पिता को ज़रूर बताऊंगा. मैं हर तरह की अपनी आशंकाओं के साथ तैयार था लेकिन जब मैंने फ़ोन करके अपनी मां को बताया कि मैं अपने आप को लड़की की तरह नहीं देखता तो उन्होंने मुझसे कहा ‘मुझे पता है’. उस समय ऐसा लगा कि दिल से एक बहुत भारी बोझ हट गया हो. कुछ समय बाद मैं घर भी चला गया और सबने मुझे प्यार दिया. जब मैंने उनकों बताया कि मुझे सर्जरी करवानी है तो उन्होंने बिना किसी जजमेंट के मेरा साथ दिया. सर्जरी के दौरान सब हॉस्पिटल आए थे- मेरे चाचा-चाची, भाई-बहन और यहां तक की मेरी दादी भी. यहां तक की मेरी दादी ने बड़े ही गर्व के साथ मेरा नया नाम ‘समर’ रखा और इस बात को सुनिश्चित किया कि सब मुझे उसी वक़्त से समर बुलाना शुरू कर दें. 
अब एक लड़के के रूप में सम्बोधित किया जाना मुझे स्वतंत्र महसूस करवाता है. कशमा से लेकर समर तक के इस सफ़र ने मुझे एक बात सिखाई है- तुम्हें वही करना चाहिए जो तुम्हें सही लगे, इस बात की परवाह किए बग़ैर की सामने वाला क्या सोचेगा. मगर सबसे ज़रूरी बात आप में अपनों को सच बताने की हिम्मत होनी चाहिए चाहे जो भी तकलीफ़ हो, क्योंकि जब आप आपको प्यार करने वाले बिना शर्त के आपको स्वीकार करते हैं, तो आप अजेय बन जाते हैं! 
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