‘बृहदीश्वर मंदिर’ जो अपने रहस्यों के लिए है प्रसिद्ध, वैज्ञानिकों के लिए बना हुआ है शोध का विषय

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तमिलनाडु के तंजावुर उर्फ़ तंजौर में स्थिति ‘बृहदीश्वर मन्दिर’ से जुड़े ऐसे कई रहस्य हैं जिन पर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका है. ये मंदिर आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक शोध का विषय बना हुआ है. भगवान शिव को समर्पित तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर को बड़ा मंदिर भी कहते हैं. 

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प्राचीन भारत की शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध इस भव्य मंदिर को सन 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया था. इस मंदिर का निर्माण चोल राजवंश के राजा राजाराम प्रथम ने सन 1004 के दौरान करवाया था. मुगल शासकों द्वारा तोड़े जाने के बावजूद ये ऐतिहासिक मंदिर आज भी भारत की प्राचीन वास्तुकला की पहचान है. 

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तो चलिए अब इस ऐतिहासिक मंदिर के कुछ रहस्यों के बारे में भी जान लेते हैं जो हैरान कर देने वाले हैं- 

1- गुंबद की छाया ज़मीन पर नहीं पड़ती 

ये अद्भुत व विशालकाय मंदिर सिर्फ़ पत्थरों से जुड़कर बना हुआ है. इस मंदिर के गुंबद की रचना इस प्रकार से की गई है सूरज इसके चारों तरफ़ घूम जाता है. लेकिन इसके गुंबद की छाया कभी भी ज़मीन पर नहीं पड़ती. दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई ज़मीन पर दिखती है, लेकिन गुंबद की परछाई नहीं दिखती. 

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इस ऐतिहासिक मंदिर के गुंबद को 88 टन के एक ही पत्थर से बनाया गया है. इसके ऊपर एक स्वर्ण कलश भी रखा गया है. आज तक वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य का विषय बना हुआ है कि आख़िर इतनी ऊंचाई पर 88 टन का एक साबुत पत्थर कैसे ले जाया गया होगा. जबकि उस ज़माने में क्रेन भी नहीं होती थी.   

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2- मंदिर को बनाने में सीमेंट का इस्तेमाल नहीं 

मंदिर का भ्रमण करने पर आप ये देखकर हैरान रह जाएंगे कि मंदिर में कहीं भी पत्थरों को या पिलर को एक दूसरे से किसी भी प्रकार के सीमेंट या द्रव्य से चिपकाया नहीं गया है बल्कि पत्थरों को इस तरह से काट कर एक दूसरे के साथ फ़िक्स किया गया है कि वो कभी अलग नहीं हो सके. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे बहाने में 13000000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है. इन्हें जोड़ने के लिए न तो चूना इस्तेमाल किया गया है न ही सीमेंट, बल्कि सभी पत्थर को एक दूसरे से इंटरलॉक सिस्टम से जोड़ा गया है. 

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3- प्राकृतिक रंग और अद्भुत चित्रकारी 

इस मंदिर के शिखर को देखने से लगता है उस पर सिंदूरी रंग लगाया गया है लेकिन इस पर कोई रंग नहीं लगाया गया है, बल्कि पत्थर इसी रंग का है. इस मंदिर के सभी पत्थर अलग-अलग रंग के हैं और उन्हें इस तरह से लगाया गया है कि उनकी छटा बेहद मनोरम दिखे. मंदिर की दीवारों पर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं और उनसे जुड़ी पौराणिक कहानियों के दृश्यों को दर्शाती कई मूर्तियां भी लगाई गई हैं. 

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4- बगैर नींव का मंदिर 

तंजौर के इस ऐसतिहासिक मंदिर की सबसे ख़ास बात ये है कि ये बगैर नींव के खड़ा है. पिरामिड के आकर के इस मंदिर को गौर से देखने पर लगता है कि ये किसी मंदिर पिरामिड जैसी महाकाय संरचना है. 

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5- दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर 

13 मंजिल ऊंचे इस मंदिर को तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है. इस मंदिर की ऊंचाई 66 मीटर यानी 216 फ़ुट है. ये विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है. 

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6- भारत की सबसे विशालकाय नंदी प्रतिमा 

इस ऐतिहासिक मंदिर के चबूतरे में एक अद्भुत और विशालकाय नंदी की मूर्ति भी विराजमान है. नंदी की प्रतिमा पूरे भारतवर्ष में बेजोड़ है क्योंकि नंदी की ये दूसरी सबसे विशालकाय प्रतिमा है. इस प्रतिमा की ख़ास बात ये है कि इसे एक पत्थर को तराश कर ही बनाई गई है. 

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7- विशालकाय शिवलिंग 

मंदिर में प्रवेश करते ही आपको 13 फ़ीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन होंगे शिवलिंग के साथ विशाल पंचमुखी सर्प विराजमान है जो अपने फ़नों से शिवलिंग को छाया प्रदान करता है. 

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इस ऐतिहासिक मंदिर के चारों तरफ़ बेहद उत्कृष्ट शिलालेख हैं जिसमें तमिल व संस्कृत में श्लोक लिखे गए हैं. 

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