आज़ादी के 73 सालों में क्या देश खुद को ढूंढ पाया है? इसी सवाल का जवाब दे रही है ये कविता ‘हीरा’

Rashi Sharma

हिन्दुस्तान… हमारा प्यारा भारत, जहां अलग-अलग धर्म, जाति, भाषा-बोली के लोग रहते हैं. अनेकता में एकता का नारा भी यहीं पर दिया गया… पर क्या असल मायनों में हम एक हैं, क्या हम आज़ाद हैं, क्या हम तरक्की कर रहे हैं? ये सवाल इसलिए कि शायद आज हम आज़ाद नहीं, बल्कि कई बेड़ियों जैसे जात-पात, ऊंच-नीच, हिन्दू-मुस्लिम, पड़ोसी दुश्मन मुल्क़, आदि में बंधे हुए हैं.

कुछ ही दिनों में हम देश की आज़ादी की 73वीं वर्षगांठ मनाने वाले हैं. एक ओर तो बात हम देश के विकास और अच्छे दिनों के भविष्य की करते हैं और वहीं दूसरी ओर मेरा-तेरा, मज़दूर-मालिक, हिन्दू-मुस्लिम के बीच में फंस कर रह गए हैं, और जिस देश में नागरिक और नेता इन बातों हथियार बनाकर वोट का लेन-देन करते हैं, वो देश तरक्की कैसे कर सकता है, कैसे आगे बढ़ सकता है? 

हमारे वेद-पुराणों में भी यही बात कही गई है:

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |

इसका अर्थ है कि यह मेरा है ,यह उसका है… ऐसी सोच संकुचित चित्त वाले व्यक्तियों की होती है.ठीक इसके उलट उदार चरित वालों के लिए तो पूरा ब्रह्माण्ड या पूरी धरती एक परिवार के समान होती है.

वर्तमान इसके बिलकुल विपरीत है. लोग आपस में मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ रहे हैं. दूसरे के मुंह से निवाला छीन रहे हैं. मेरा-तेरा की लड़ाई हावी हो चुकी है. भाई-भतीजावाद अपनी जड़ें जमा चुका है.

देश की इन्हीं विषम परिस्थियों पर एक कविता आज हम आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं, जिसे लिखा है अभिक चौधरी ने. अभिक चौधरी, Salt and Paper Consulting के फ़ाउंडर हैं और देश के कई उच्च संस्थानों में पढ़ाते हैं. कविताएं और गीत लिखने वाले अभिक का मानना है कि समावेशिता और स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और अगर इनमें से एक भी नहीं हो तो आज़ादी के मायने बदल जाते हैं.

कविता का है शीर्षक है ‘हीरा’ और इसमें आज की हर समस्या का ज़िक्र है. इसमें प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा है, तो इसमें आज़ादी के चौहत्तर सालों की व्यथा भी है. कहीं पक्षपात का दुःख है, तो कहीं गांधी की स्वच्छता की बात सहज तरीके से कही गई है. तो चलिए मिल कर इस कविता को पढ़ते हैं:

इस कविता का सार सिर्फ़ इतना है कि आज़ादी के 73 साल बाद भी आज हम एकजुट नहीं हैं. कब तक हम अपनी-अपनी लड़ाई लड़ते रहेंगे, कब एक-दूसरे की लड़ाई मिल कर लड़ेंगे? अगर हम मिलजुल कर विकास की ओर कदम बढ़ाएं तो हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा और महान देश बन सकता है. तो क्यों न इन समस्याओं को जड़ से ख़तम करें और सही मायनों में आज़ादी का जश्न मनाएं.

Poem Designed by: Nupur Agrawal

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