हर लेखक की पहचान उसके लेखन से होती है, जो उसे दूसरे लेखकों से अलग बनाता है. अब जैसे प्रेमचन्द को ही ले लीजिये, उनके लेखन में भारतीय समाज में फैली गरीबी और प्रथाओं की झलक देखने को मिलती है, तो वहीं लियो टॉलस्टॉय के लेखन में रूस के एक संपन्न परिवार का रहन-सहन दिखाई देता है.
बस एक सवाल ऐसे ही मन में आ गया कि क्या लियो टॉलस्टॉय, प्रेमचन्द की जगह ले सकता है? या प्रेमचन्द, टॉलस्टॉय की तरह लिख सकते हैं? जवाब साफ़ है कि नहीं, कभी नहीं. बेशक दोनों एक-दूसरे की तरह लिखने की कोशिश कर सकते हैं, पर उस रूप में नहीं लिख सकते, जिसके लिए दोनों पहचाने जाते हैं. इसके पीछे कहीं न कहीं उस बैकग्राउंड का भी प्रभाव है, जिसे दोनों ने जिया है. इस बैकग्राउंड में उनके बचपन का भी अहम योगदान है, जिसमें उन्होंने आस-पास के माहौल को देखा और कलम के ज़रिये साहित्य के रूप में उतारा. आज हम आपको लेखकों के बचपन के उन्हीं हालातों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें उन्होंने एक साहित्यिक कृति के रूप में उतारा.
जावेद अख़्तर
17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में जावेद अख़्तर का जन्म हुआ. इसे उनकी खुशकिस्मती ही कहिये कि वो उस परिवार में पैदा हुए, जिसे उर्दू ज़बान की तहज़ीब पुरखों से मिली थी. उनके पिता जां निसार अख़्तर उर्दू के प्रसिद्ध कवि और प्रगतिशील लेखक थे, जबकि उनकी माता सफ़िया अख़्तर खुद मशहूर उर्दू की मशहूर लेखिका और शिक्षिका थीं. ऐसे परिवार में पैदा होने के बावजूद जावेद साहब का बचपन संघर्ष और चुनौतियों भरा रहा.
जावेद साहब के पिता छोटी उम्र में ही उन्हें और उनकी मां को छोड़ कर क्रांति की राह पर निकल गए थे. इसके कुछ सालों बाद ही उनका इंतेक़ाल हो गया और पिता की दूसरी शादी से बाप-बेटे के रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरू हो गई. कुछ समय लखनऊ में नाना-नानी के घर पर रहने के बाद उन्होंने अलीगढ़ में अपनी खाला के घर का रुख किया, जहां स्कूल की शुरूआती पढ़ाई करने के बाद उन्होंने वापिस ग्वालियर के एक कॉलेज को अपना घर बनाया. यहां दोस्तों के रहमो-कर्म पर ही जावेद साहब अपना कॉलेज पूरा करने में कामयाब हो पाए.
इस्मत चुगताई
साहित्य जगत में इस्मत आपा के नाम से मशहूर इस्मत चुगताई के लेखन में महिलाएं रुढ़िवादी सोच से बगावत करती दिखाई देती हैं. इसके पीछे इस्मत आपा का बचपन एक बड़ी वजह नज़र आता है. एक बड़े मुस्लिम परिवार में पैदा हुई इस्मत आपा को पढ़ाई के लिए न सिर्फ़ अपने परिवार से बल्कि समाज से भी संघर्ष करना पड़ा. इसी संघर्ष का नतीजा था कि उनके लेखन में लड़कियां हमेशा समाज को एक चुनौती देती दिखाई दीं.
अब्दुल बिस्मिल्लाह
हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार और कहानीकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का जन्म 5 जुलाई 1949 को इलाहबाद के बलापुर गांव में हुआ, पर बिस्मिल्लाह साहब का ज़्यादातर वक़्त अपने ननिहाल मिर्ज़ापुर के गांव में बीता. बिस्मिल्लाह साहब का जीवन पिता की बेरोज़गारी और मां की लाचारी के बीच उस समाज में बीता, जिसके इर्द-गिर्द गरीबी और भुखमरी पैर फैलाये हुए नज़र आती थी. गरीब समाज में रहने के बावजूद बिस्मिल्लाह साहब उन बंधनों से अछूते नहीं थे, जो छुआछूत और धर्म के आधार पर सदियों से टिका हुआ था.
गरीबी और भुखमरी में भी उनके पिता ये चाहते थे कि वो पढ़ाई-लिखाई से कभी विमुख न रहें और कम से कम किसी सरकारी दफ़्तर में क्लर्क, तो लग ही जायें.
ओम प्रकाश बाल्मीकि
30 जून 1950 को ओम प्रकाश बाल्मीकि जी का जन्म मुज़फ़्फ़रनगर के बरला गांव में एक दलित परिवार में हुआ. बचपन से ही उन्हें सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दौरान भी उन्हें उनकी जाति की वजह से सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े. हिंदी में दलित साहित्यकार का दर्ज़ा पाने वाले ओम प्रकाश बाल्मीकि की रचनाओं में शोषण और गाली की भरमार मिलती है. इसकी वजह उनका वो बचपन है, जो उन्होंने एक दलित के रूप में जिया और अगड़ी जाति के लोगों द्वारा किये गये अपमान को सहा. उन्होंने बचपन की उन्हीं गालियों और शोषण को साहित्य के रूप में दुनिया के सामने रखा.
साहिर लुधयानवी
8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में पैदा हुए साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था, जिसे बाद में उन्होंने अपने शहर के नाम से जोड़ दिया. जागीरदार घराने में पैदा होने के बावजूद उन्हें अपना बचपन गरीबी में जीवन बिताना पड़ा. इसकी वजह उनके माता-पिता का अलगाव था. इस अलगाव के बाद उन्होंने अपनी मां के साथ लाहौर का रुख किया, जहां उनका सामना देश के असल हालातों से हुआ. यहां पहुंच कर उन्होंने गरीबी और बेरोज़गारी को करीब से महसूस किया. शायद यही वजह थी कि अपनी पहली ही फ़िल्म में साहिर साहब ‘जिन्हें नाज़ है हिन्द पर, वो कहां हैं’ कहते हुए सरकार से सवाल करते हुए नज़र आये.
फणीश्वरनाथ रेणु
4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया ज़िले के औराडी हिंगन्ना गांव में फणीश्वरनाथ रेणु एक संपन्न परिवार में पैदा हुए, पर जिस समय रेणु का जन्म हुआ उनका घर कुछ आर्थिक तंगियों से गुज़र रहा था. ऐसे में उनके परिवार को रेणु के जन्म के समय ऋण लेना पड़ा था, जिसकी वजह से फणीश्वरनाथ के साथ ही रेणु भी उनके नाम में जुड़ गया. रेणु को बचपन से ही घर के माहौल में क्रांति की हवा मिली हुई थी. रेणु के पिता जो कि एक पक्के कांग्रेसी के रूप में पहचाने जाते थे, जो इलाके में आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे. इस माहौल को देखते-समझते खुद रेणु भी आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गए. स्कूल के दिनों में हेड मास्टर को स्कूल में नहीं जाने देने के बाद रेणु की पहचान एक क्रन्तिकारी के रूप में होने लगी. उनके लेखन में लिखा गया हर किरदार आपस में बात करता दिखाई देता है. इसकी वजह उनका खुद उस जाति व्यवस्था को देखना है, जिनका ज़िक्र वो अपनी कहानियों और उपन्यास में करते हैं.
खुशवंत सिंह
खुशवंत सिंह का जन्म 2 फ़रवरी 1915 को अविभाजित हिंदुस्तान के हदाली (आज के पाकिस्तान में) हुआ था. उनके पिता शोभा सिंह अंग्रेजी सरकार में ठेकेदार थे, जिन्हें दिल्ली निर्माण की ठेकेदारी मिली थी. खुशवंत सिंह के बचपन ऐशो-आराम के बीच बिता. उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में हुई, जो उस समय दिल्ली के अमीर बच्चों का अड्डा हुआ करती थी. खुशवंत सिंह के पिता चाहते थे कि वो सिविल सर्विस ज्वाइन करके परिवार का नाम ऊंचा करें, जबकि खुशवंत सिंह का दिल तो कहीं कलम चलाना चाहता था. इसी वजह से 1947 में इंडियन फॉरेन सर्विस ज्वाइन करने के बाद 1951 में इसे छोड़ दिया और आल इंडिया रेडियो में एक पत्रकार की नौकरी करने लगे.