आपसी बातचीत में दुनिया भर से लोग यह अक्सर कहते रहे हैं कि 9/11 की घटना के दौरान आप कहां थे? मगर एक सवाल उससे भी पुराना है और अमेरिकी समाज में बहुत प्रासंगिक रहा है कि, जॉन एफ कैनेडी की मौत के दौरान आप कहां थे? 11 सितंबर सन् 2001 को अलकायदा नामक आतंकवादी संगठन ने अमेरिकी ऐतिहासिक स्थल पर सिलसिलेवार ढंग से हमले किए. इस हमले ने अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया. अमेरिका में हुए इस हमले के भी कई पक्ष और नज़रिए आज हमें देखने-सुनने को मिलते हैं. कोई कहता है कि इसमें अमेरिका की ही साजिश थी. जिसके बाद से लोगों के फोन और इंटरनेट कनेक्शन्स पर निगरानियां लगने लगीं. बात चाहे जो भी हो मगर लोगों के ये नज़रिए बेहद दिलचस्प हैं…
1. पेंटागन पर मिसाइल से हमला हुआ था…
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो पेंटागन पर हवाई जहाज से हमला हुआ था. मगर वहीं कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि, ये सारी दुर्घटना किसी मिसाइल से हुई थी. वे कहते हैं कि पेंटागन बिल्डिंग पर किए गए प्रहारों से बनने वाले छेद बोइंग 757 के हिसाब से बहुत छोटे लगते हैं. अब सच चाहे जो हो मगर मेरा मन तो इसे मानने को तैयार नहीं…
2. फ्लाइट 93 को मार गिराया गया था…
जब फ्लाइट 93 जिसने व्हाइट हाउस को टार्गेट बनाया था में बैठे यात्रियों ने शोर-गुल और व्यवधान शुरू कर दिया तो वह प्लेन शैक्सविल, पेन्सिलवेनिया में गिर पड़ा. यह जगह वाशिंगटन डी.सी से 150 किलोमीटर की दूरी पर पर है. सीएनएन के दावे को मानें तो प्लेन के मलबों को लगभग 8 मील दूर तक भी पाया गया. वहां मौजूद लोग कहते हैं कि ये मलबे वहां तक हवा के झोंकों से पहुंच गए थे. अब हवा प्लेन के मलबों को भी उड़ा सकती है, मुझे तो नहीं लगता…
3. इज़राइल ने कराए थे हमले…
वैसे तो कई तरह के साजिशी सिद्धांत हवा में तैरते रहते हैं मगर इज़राइल में फिलिस्तीनियों की भयावह स्थिति और यहूदियों की स्थिति को मज़बूत करने के लिए ये हमले किए गए थे. ऐसे खुलासे जेरुसलम पोस्ट के हीब्रू संस्करण में देखने-पढ़ने को मिले थे. हालांकि लोगों का कहना है कि यह संचार के माध्यम की कमी है.
4. वहां कोई प्लेन नहीं थे, सिर्फ़ मिसाइल्स थे जो एयरक्राफ्ट्स जैसे दिखते थे…
मॉर्गन रेनॉल्ड्स जो कि जॉर्ज बुश सरकार में लेबर विभाग के कार्यभार में थे कहते हैं कि टावर्स पर हमले में कोई प्लेन नहीं था. वे कहते हैं कि बोइंग जेट्स की इतना क्षमता नहीं होती कि वे बिल्डिंग के स्टील फ्रेमों को छेद सकें. वहीं डेविड शायलर जो कि इंग्लैंड के पत्रकार और भूतपूर्व सुरक्षा सेवा अफ़सर रह चुके हैं कहते हैं कि होलोग्राम युक्त मिसाइलों को लॉन्च किया गया था और वहां मौजूद मीडिया को ऐसे ही फुटेज मुहैय्या कराए गए थे. हालांकि उनके इस नज़रिए के पूरी दुनिया में कम ही खरीददार मिले.
5. वहां का व्यापारिक घराना इस पूरे मामले से वाकिफ़ था, मगर उसने रोकने के प्रयास नहीं किए…
कहा जाता है कि बाज़ार की शक्तियों को इस बात का इल्म था कि ऐसी बड़ी दुर्घटना होने जा रही है, और उन्होंने इसके मद्देनज़र ही उनके शेयर और स्टॉक को प्लान कर लिया था. उस दिन अमेरिकन एयरलाइंस और यूनाइटेड नामक एयरलाइन कंपनियों के एयरलाइन ही इस हमले में संलिप्त थे. हालांकि यह महज़ एक इत्तेफाक़ भी हो सकता है क्योंकि बाद की रिपोर्टों और सुरक्षा एजेंसियों की जांच-पड़ताल में ऐसी कोई बात बाहर नहीं आयी है. अब इसमें सच क्या है ये तो ऊपर वाला ही जानता है.
6. डिक चेनी ने हवाई जहाजों पर पाबंदी लगा दी थी…
जब अमेरिका की मिलिट्री इतनी तेज़-तर्रार और सटीक है, तो ऐसा क्यों नहीं हुआ कि वे अपहरणीकृत जहाज को मार गिरा नहीं सके. साजिशी सिद्धांतकारियों की मानें तो अमेरिका के उप राष्ट्रपति डिक चेनी ने मिलिट्री को ऐसे किसी भी प्रहार से मना किया था. मगर कॉलिन स्कॉगिन्स जो कि एयर ट्रैफिक कंट्रोलर थे ऐसी किसी भी बात को सिरे से खारिज करते हैं.
7. ट्विन टावर पर बमों से भी हमला हुआ था…
ट्विन टावर पर हुए हमले के बाद स्टील के सहारे से खड़ी इमारत महज़ कुछ सेकेंडों में ठीक उसी जगह पर धराशायी हो गई. वहीं साजिशी सिद्धांतकारियों का कहना है कि ऐसी पूरी संभावना थी कि इस बिल्डिंग के मलबे दूर तक जाते, और इस हमले में बम और बारूद के इस्तेमाल की वजह से ही ऐसा हुआ. हालांकि इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्डस् एंड टेक्नोलॉजी की जो रिपोर्ट आई है उसमें इस बात का साफ ज़िक्र है कि इसमें कंट्रोल्ड रूप से बिल्डिंग ढहाने के कोई सिग्नल नहीं दिखे.
8. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर बिल्डिंग 7 बारूद और आग से तबाह हो गया…
कुछ साजिशी सिद्धांतकारियों का ऐसा मानना है कि जब इस बिल्डिंग पर प्लेन से हमला हुआ ही नहीं तो यह कैसे संभव है कि यह आग से तबाह हो जाए. लोगों का ऐसा मानना है कि इसकी तबाही में बारूद और आग की बड़ी भूमिका है. वैज्ञानिकों ने यहां से थर्माइटिक पदार्थों के सैम्पल्स बरामद किए हैं जो गर्म होने के बाद धमाके में सहायक होते हैं. यहां से आने वाली रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि यह बिल्डिंग अत्यधिक आग की वजह से धराशायी हो गई. यहां का स्प्रिंकलर सिस्टम खराब हो गया था और साथ ही यहां धमाके की भी कोई आवाज़ सुनने को नहीं मिली थी.
9. इस हमले में शामिल अपहरणकर्ता बच गए थे…
जब यह सारा मामला और विवाद इसके चरम पर था तभी बी.बी.सी ने संदिग्ध अपहरणकर्ताओं के नाम और स्केच जारी कर दिए थे. इनमें से कई को बाद में जीवित भी पाया गया, जिससे ऐसा माना जाता है कि इसमें बहुत कुछ पहले से तय था. मगर इसका दूसरा पक्ष यह है कि ये सारे नाम और चेहरे मीडिया और दुनिया को गुमराह करने के लिए जारी किए गए थे. इस लिस्ट में शामिल अधिकतर नाम अरब के आम नाम थे. इनका मुख्य मकसद सभी को गफ़लत में रखना था, और इसमें वे काफ़ी हद तक सफल भी रहे.
10. 9/11 के हमले के पीछे मुख्य मकसद दुनिया में नव-रूढ़िवादिता का संचार और आधिपत्य था…
सन् 2006 में 9/11 हमले पर काम करने वाले कई स्कॉलर और साजिशी सिद्धांतवादी जुटे और उन्होंने ऐसा पाया कि इस हमले का मुख्य मकसद इराक, अफगानिस्तान और बाद में ईरान जैसे देशों पर अमेरिका का हमला था. इस हमले की आड़ में अमेरिका पूरी दुनिया के समक्ष कुछ ऐसे पेश आएगा कि वो ही पूरी दुनिया का उद्धार कर सकता है, और इस तरह की घटनाएं सिर्फ़ आग में घी का काम करती रही हैं. आज भी अमेरिका की सेना कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष जंग लड़ रही है, जिसे पूरी दुनिया पर वर्चस्व की जंग कह सकते हैं.
अब इन बातों में कितनी सच्चाई है और कितना कुछ बनावटी है ये तो आप तय करिए, मगर इन सारी बातों को सिरे से तो खारिज़ नहीं किया जा सकता है. आख़िर हमारी पूरी दुनिया नज़रिए के ही आधार पर तो बंटी है.