आज भी समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं दलित

Sumit Gaur

कहने को तो हम 21वीं सदी में कदम रख चुके हैं और विकास की दौड़ में बड़े-बड़े देशों को पछाड़ रहे हैं. पर आज तक अपने ही समाज की एक कुरीति से नहीं लड़ पाये हैं. रोहित वेमुला की आत्महत्या हमारे समाज की उसी बुराई का एक दर्पण हैं. दलित विमर्श को ले कर बेशक कितने ही बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हों, पर आज भी दलितों के नाम से गांव का वो मोहल्ला ज़हन में ताज़ा हो जाता है, जहां गलियां जा कर तंग हो जाती हैं और उन तंग गलियों में से आती एक तेज़ गंध नाक पर रुमाल रखने को मज़बूर कर देती हैं. इन गलियों में शहर का वो तबका रहता है, जिसके सर पर पूरे शहर को साफ़ रखने की जिम्मेदारी होती है. पर खुद ये तबका न सिर्फ इन मजबूरियों में रहने का आदी हो चुका है, बल्कि कथित उच्च जाति के समाज की दुत्कार में भी रहना सीख चुका है.

11 जुलाई 1997 को मुंबई के अंबेडकर नगर पुलिस की कार्यवाही में 11 दलितों की मौत हो गई थी.

शास्त्रों में वर्ण के आधार पर 4 वर्णों का उल्लेख है.

आज भी देश में दलितों का एक बड़ा तबका हाथों से नाले और सीवर साफ़ करने को मजबूर हैं.

अकेले 2014 में 47,064 दलितों पर हिंसा की घटनाएं दर्ज की गयी थी.

Being Indian के इस वीडियो में उन्होंने दलितों की उन परेशानियों को उतारने की कोशिश की है, जिनसे संसद से ले कर आरक्षण विरोधी तत्व अंजान हैं.

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