दही-हांडी का उत्सव खेल तो है, पर ये ऐसा खेल है जिसे ये गोविंदा जान हथेली पर लेकर खेलते हैं

Ram Kishor

अमूमन मुंबई की चमचमाती इमारतें और समंदर की ख़ूबसूरती सभी को रास आती है, अगर कोई चीज़ नहीं रास आती, तो यहां की पुरानी और जर्जर हो चुकी चॉल. इन चॉल में ही मुंबई की आधी से ज़्यादा आबादी बसती है. मुंबई में ऐसी कई चॉल हैं जो शानदार और अद्भुत इमारतों के आस-पास मौजूद हैं. शायद ये उनकी भव्यता को ललकारती हैं और एक ऐसे तबके के होने का प्रमाण देती है, जो इस डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया व विकास की ओर बढ़ते भारत में भी दयनीय हालत में जीने को मजबूर है.

anubimb

ऐसी ही एक पुरानी चॉल है, पारेल स्थित वाणी चॉल. इस चॉल के आस-पास कई चेतावनियां लिखी हैं, जो चिल्ला-चिल्ला कर कहती हैं कि ये क्षेत्र असुरक्षित है. जब आप इस चॉल की संकरी गलियों से होकर आगे बढ़ेंगे तो आपको एक ऐसे शख़्स का घर मिलेगा, जो जन्माष्टमी के अवसर पर दही-हांडी फोड़ने में हीरो हुआ करता था. शख़्स का नाम दयानंद है. दरअसल दयानंद न चाहते हुए भी इस चॉल स्थित अपने घर में 6 साल से कैद हैं.

wikimedia

पारेल-दादर शहर का ऐसा क्षेत्र है, जहां आपको आसानी से वाणी जैसी कई चॉल मिल जाएंगी. इन्हीं चॉल में दही-हांडी और गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों को बेहद उल्लास के साथ मनाया जाता है. हर साल जन्माष्टमी के मौके पर यहां के सार्वजनिक हस्पताल चौंकन्ने हो जाते हैं. कारण, दही-हांडी फोड़ने के लिए जो पिरामिड बनाया जाता है उसमें कई लोग घायल हो जाते हैं, इन लोगों को “गोविंदा” कहा जाता है.

b’Source: outlook’

हाल ही में Supreme Court का वर्डिक्ट आया था, जिसमें कहा गया कि दही-हांडी लगाने की अधिकतर ऊंचाई 20 फीट होगी और इस उत्सव में भाग लेने वाले गोविंदाओं की उम्र कम से कम 18 वर्ष होगी. पर कोर्ट के इस फैसले को नकारते हुए शिव सेना, राजठाकरे की MNS (Maharashtra Navnirman Sena) और इस तरह के कार्यक्रमों को आयोजित कराने वाले ग्रुप (जिन्हें मंडल कहा जाता है) ने कहा कि ‘कोर्ट उनके धार्मिक उत्सव में इस तरह की रोक नहीं लगा सकता’.

hindustantimes

हालांकि कोर्ट के इस फैसले से कई गोविंदा भीतर ही भीतर खुश हैं, क्योंकि वे बेहद करीब से जानते हैं दही-हांडी के दौरान हुई एक दुर्घटना कैसे उनके पूरे जीवन को बदलकर रख देती है.

60 सालों में हमारे मंडल के लिए यह पहली दुर्घटना थी, मैं 20 से 25 दिनों तक कोमा में रहा. शुरू में तो मंडल, परिवार और दोस्त मदद को आते थे, लेकिन अंत में नहीं. मेरा कोई बीमा नहीं है’. दयानंद अब 32 साल के हो चुके हैं लेकिन जब वे अपने बीते समय को याद करते हैं, तो आंखें नम हो उठती हैं. वे बताते हैं 8 साल बाद भी वे ठीक से नहीं चल पाते. वे कहते हैं, बिना सहारे के छोटी-सी दूरी तय करना भी मेरे लिए बेहद मुश्किल है. अपने बिस्तर से वॉशरूम तक जाने के लिए उन्हें 5 मिनट लग जाते हैं, जिसकी दूरी मात्र 2 से 3 फीट है.
amazonaws

शहर के कई हिस्सों में हर साल दयानंद जैसे ‘गोविंदा’ दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं. इस त्योहार का रंग और रूप दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है, त्योहार पर होने वाली दही-हांडी की प्रतियोगिताओं की रकम हांडी की ऊंचाई के आधार पर निर्धारित की जाती है. कुछ मंडल तो हांडी फोड़ने के लिए 1 करोड़ रुपये का इनाम रखते हैं. ये इनाम का लालच ही नौजवानों को अपनी ओर आकर्षित करता है. लोग अपने परिवार की गरीबी दूर करने और अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए इस उत्सव का हिस्सा बनना पसंद करते हैं.

b’Source: outlook’

अब भिवंडी के नागेश भोइर को ही देख लीजिए, जो 20 फीट की ऊंचाई से गिरे थे, जिसके कारण उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. उनका कहना है कि ‘इस दुर्घटना के बाद मंडल का कोई भी सदस्य मुझ से मिलने नहीं आया. मैं 20 लाख से ऊपर की रकम कई प्रकार की सर्जरी करवाने पर खर्च कर चुका हूं. डॉक्टर आश्वासन देते रहते हैं, लेकिन मुझे पता है कि मैं कैसे जी रहा हूं. मुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वे पिरामिड की कितने ऊंचाई रखते हैं, लेकिन मेरे लिए बड़ी बात ये है कि अपनी ज़िंदगी को दांव पर लगाकर हांडी फोड़ने वाले गोविंदाओं की सुरक्षा और उनके इलाज के लिए वे क्या सुविधा देते हैं? फिलहाल, नागेश एक सोशल मीडिया कैम्पेन चला रहे हैं. वे कोर्ट के 20 फीट ऊंचे पिरामिड बनाने के फैसले का समर्थन भी करते हैं.

जब से बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले पर दिशा-निर्देश दिये हैं, तब से दही-हांडी के दौरान होने वाली दुर्घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन इन दिशा-निर्देशों को न मानने वाले पैसों का लालच देकर गोविंदाओं के जीवन से अब भी खेल रहे हैं.

google

डॉक्टर प्रदीप भोंसले (Former Head of The Department of Orthopaedics at KEM Hospital) का कहना है कि सुरक्षा सबसे ज़रूरी है. इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले अधिकतर युवा गरीब परिवार से आते हैं. पैसा न होने के कारण वे सुरक्षा के उपकरण नहीं खरीद पाते और बिना किसी सुरक्षा के ही दही-हांडी फोड़ने के लिए ऊंचाई पर चढ़ जाते हैं. जब कोई दुर्घटना होती है तो सुरक्षा के उपकरण न पहनने के कारण बेहद गंभीर चोट उन्हें आ जाती है.

ibtimes

संदीप हसोलकर तीन बच्चों के पिता थे, उनकी मृत्यु उस दौरान हुई जब वे 2012 में दही-हांडी फोड़ने के लिए पिरामिड पर चढ़े और पिरामिड के टूटने पर वह गर्दन के बल गिर गए. उनकी पत्नी कहती हैं कि ‘उस दिन के बारे में सोचते ही मेरी दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं. वे बताती हैं कि जब वह अपनी आखिरी सांसें गिन रहे थे तो वे उस दिन के लिए अफसोस जता रहे थे, जब उनके एक दोस्त ने उनसे इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की बात पूछी थी’.

nationalgeographic

नैना फाउंडेशन की डॉक्टर केतना मेहता कहती हैं कि दही-हांडी को रोमांचकारी खेल की श्रेणी में रखना चाहिए और इसमें हिस्सा लेने वाले हर व्यक्ति के साथ सुरक्षा उपकरण पहनने की शर्त रखनी चाहिए. वहीं ‘उत्कर्ष महिला सामाजिक संस्था’ से ताल्लुक रखने वाली स्वाति पाटिल बताती हैं कि इस त्योहार पर पैसों का लालच ही लोगों को अपनी ओर खींचता है.

पुराने समय के लोग त्योहार के बदलते रूप और उद्देश्य से बेहद नाराज़ हैं. मंडल के ही एक सदस्य ने कहा कि ‘अब ये त्योहार सिर्फ पैसा कमाने और मनोरंजन का ज़रिया बन गया है. उनका कहना है कि पहले यह त्योहार सिर्फ इनाम की रकम का पर्याय नहीं हुआ करता था’. 

आपको ये भी पसंद आएगा
बेवफ़ा समोसे वाला: प्यार में धोखा मिला तो खोल ली दुकान, धोखा खाये लवर्स को देता है डिस्काउंट
जानिये दिल्ली, नई दिल्ली और दिल्ली-NCR में क्या अंतर है, अधिकतर लोगों को ये नहीं मालूम होगा
जानिए भारत की ये 8 प्रमुख ख़ुफ़िया और सुरक्षा जांच एजेंसियां क्या काम और कैसे काम करती हैं
मिलिए गनौरी पासवान से, जिन्होंने छेनी व हथोड़े से 1500 फ़ीट ऊंचे पहाड़ को काटकर बना दीं 400 सीढ़ियां
ये IPS ऑफ़िसर बेड़िया जनजाति का शोषण देख ना पाए, देखिए अब कैसे संवार रहे हैं उन लोगों का जीवन
अजय बंगा से लेकर इंदिरा नूई तक, CEO भाई बहनों की वो जोड़ी जो IIM और IIT से पास-आउट हैं