जॉब और रोज़-रोज़ इस ट्रैफ़िक जाम के बीच फंसकर मेरे दिमाग़ का दही हो जाता है, पर क्या करूं?

Kratika Nigam

भाइयों और बहनों एक बात बोलूं, जिससे आप सब सहमत होंगे. वो ये है कि ऑफ़िस जल्दी पहुंचने के लिए कितना भी जल्दी उठ जाओ, लेकिन ये Traffic Jam आपको लेट करा ही देता है. अब आज की ही बात ले लीजिए. मैं घर से सुबह 9:45 पर निकल गई. ताकि मैं टाइम पर ऑफ़िस पहुंच जाऊं. मेरे घर से मेरे ऑफ़िस की दूरी 45 मिनट की है. अगर जाम मिला तो 1 घंटा लग ही जाता है. यही सब सोचकर इतनी जल्दी निकली. मगर क्या हुआ मेरे साथ?

वही पुराना, मैं बस में थी और मुझे सड़क पर बिन बुलाए मेहमान की तरह मिल गया ट्रैफ़िक जाम. इसने मेरी ही नहीं पूरे दिल्लीवासियों की हालत ख़राब कर रखी है. यहां के लोगों की 7-8 घंटे की डूयटी जाम के चक्कर में 12 घंटे में बदल जाती है. घर में रहते हुए भी कई-कई दिन हो जाते हैं घरवालों से बात करे.

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मैं कानपुर से हूं तो पूरी फ़ैमिली वहीं रहती है. इस जाम के चक्कर में शाम तक इतना थक जाती हूं कि कुछ भी करने का मन नहीं करता. मम्मी भी दूर हैं तो उनका मन करता है कि मुझसे बात हो. एक दिन की बात बताऊं मम्मी से बात करे मुझे क़रीब 5 दिन हो गए थे. मम्मी का फ़ोन आया तो कहती हैं कि कभी याद कर लिया करो कि तुम्हारे घरवाले भी हैं. उन्हें कैसे समझाऊं कि घरवाले तो हैं, लेकिन उन पर इस ट्रैफ़िक जाम ने ग्रहण लगा रखा है.

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ट्रैफ़िक में इतनी हालत ख़राब हो जाती है कि घंटों फंसे होने के बाद भी किसी से फ़ोन पर बात करने का मन नहीं करता है क्योंकि बस में बैठे-बैठे धूल और धुएं से सिर दर्द होने लग जाता है. इस ट्रैफ़िक का कुछ तो इलाज होना चाहिए, जिसने सभी दिल्लीवासियों को बीमार कर रखा है.

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रोज़-रोज़ इस ट्रैफ़िक में फंसकर मेरा दिमाग़ ख़राब होने लगा है. मेरी तो रोज़ की कहानी हो गई है. अगर इस ट्रैफ़िक ने आप पर भी जुर्म ढा रखे हैं तो हमसे कमेंट बॉक्स में शेयर करके आप अपना दुख हल्का कर सकते हैं.

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