हीरा है सदा के लिए… ये लाइन बोल कर आपको कितनों ने चूना लगाया है, जानते हैं?

Kundan Kumar

जब अपनी पत्नी को गिफ़्ट देना हो, जब GF को प्रोपोज़ करना हो, आपके दिमाग में सबसे पहला ख़्याल हीरे का ही होता है (अगर बज़ट कम हो तो ग़ुलाब का आएगा). क्या आपने कभी सोचा है ऐसा कि ऐसे मौकों पर पहला और आख़री ख़्याल हीरे का ही क्यों आता है. आखिर किसने किसको सबसे पहली बार हीरे की अंगूठी दी होगी? अगर प्रोपोज़, करना है तो किसी भी अंगूठी से किया जा सकता है. एक महंगी हीरे की अंगूठी क्यों ज़रूरी है? दरअसल हीरे के नाम पर आपको सालों से बेवकूफ़ बनाया जा रहा है. हीरे की महंगा होना एक स्कैम है. हीरा एक दुर्लभ पत्थर नहीं है, न ही ये बहुमुल्य है. सबकुछ एक प्लान के तहत किया गया और इस प्लान को बनाने वाली कंपनी है De Beers.

De Beers कौन हैं?

दुनिया की चार सबसे बड़ी हीरा बनाने वाली कंपनी हैं- ALROSA, BHP Billition, Rio Tinto और De Beers. लेकिन ये कहानी तब से शुरू होती है, जब बाज़ार में सिर्फ़ De Beers का एकक्षत्र राज था.

सबसे पहले हीरे की खान की खोज भारत में सन् 1800 के आस-पास हुई थी. उसके बाद साउथ अफ्रीक के खादानों के बारे में पता चला. 1871 में Cecil Rhodes ने De Beers Commercial Mining Company की शुरुआत की. इस कंपनी की स्थापना के बाद कई हीरों की खान मिली. Cecil Rhodes समझ गए कि इससे हीरे की सप्लाई बढ़ जाएगी और मांग कम हो जाएगी, जिसका सीधा असर हीरे के मूल्य पर पड़ेगा. इसलिए उसने हीरे के वितरण के काम को भी अपने हाथ में ले लिया. फिर De Beers ने बाज़ार में हीरे की सप्लाई को कम कर दिया. जिससे उसकी कीमत में इज़ाफ़ा हो गया. साल 1902 तक दुनिया के 90 प्रतिशत हीरे का उत्पादन और वितरण De Beers के कब्ज़े में था.

De Beers की इस मार्केटिंग स्ट्रैटेजी की वजह से हीरे की कीमत अन्य मुल्यवान धातुओं (सोने, चांदी) की तरह अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव के हिसाब से कम या ज़्यादा नहीं होती. De Beers ने पूरे उद्योग को अपने एकाधिकार जमा ये भ्रम बनाए रखा कि हीरा मुश्किल से मिलने वाला एक पत्थर है, जिसकी वजह से इसकी कीमत अधिक है.

‘A Diamond Is Forever’

1930 में जब दुनियाभर के बाज़ारों में भारी मंदी आई, तब लोगों ने हीरा खरीदना कम कर दिया. इस मंदी से निपटने के लिए और आगे ऐसी मुश्किलों से बचने के लिए De Beers ने एक दूसरी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी बनाई.

वो चाहते थे कि मंदी में भी हीरे की बिक्री कम न हो और उसकी कम री-सेल वेल्यु की झंझट से निपटा जाए (आज भी हीरे की री-सेल वल्यु बहुत कम है, दुकान से हीरा ख़रीदने के तुरंत बाद उसकी कीमत आधी हो जाती है). इसके लिए De Beers ने N.W. Ayer नाम की विज्ञापन एजेंसी से संपर्क साधा.

इस विज्ञापन एजेंसी ने अमेरिका में एक गहन अध्ययन किया. जिसका निष्कर्ष ये निकला कि लोग हीरे को समाज की सबसे अमीर व्यक्ति के उपयोग की वस्तु मानते हैं. इस Ad Agency ने हीरे की इस छवि को बदलने की कोशिश की. इसे उन्होंने लोगों के भावनाओं से जोड़ दिया. उन्होंने प्यार, शादी और वादे को हीरे के साथ जोड़ने की सफ़ल कोशिश की.

इससे एक तीर से दो शिकार हो गए. पहला हीरे की बिक्री बढ़ गई और दूसरा उसकी कम री-सेल वैल्यु की मुसीबत भी ख़त्म हो गई. A Diamond Is Forever कैंपेन चलाया गया. लोगों के दिमाग में ये बात बैठा दी गई कि अगर वो हीरे को अपने प्यार की निशानी बनाएंगे, तो उनका रिश्ता भी हीरे की तरह मज़बूत और अटूट रहेगा. यहां तक कि प्रचार के माध्यम से भी कहा गया कि एक हीरे की अंगूठी पर कम से कम आपको अपने दो महीने की सैलरी ख़र्च करनी चाहिए.

De Beers ने हीरे की मार्केटिंग अपने ब्रांड से नहीं की थी क्योंकि तब वो बाज़ार के अकेले सबसे बड़े ख़िलाड़ी थे इसलिए उसका सीधा फ़ायदा उन्हें ही पहुंचता था. 1970 तक आते-आते तक बहुत सारी कंपनी हीरे के व्यापार में आ चुकी थी, जिससे हीरा व्यापार में स्पर्धा शुरु हो गई. लेकिन सभी कंपनियों ने उसी प्रथा का बनाए रखा, जिसकी शुरुआत De Beers ने की थी.

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