क्या आप जानते हैं, भारत का सबसे प्राचीन क़िला कौन सा है और क्यों प्रसिद्ध है?

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भारत में वैसे तो प्राचीन स्मारकों की कोई कमी नहीं है. भारत में आज भी राजा महाराजाओं के दौर के कई ऐसे क़िले मौजूद हैं जो हज़ारों सालों से पूरी मज़बूती के साथ टिके हुए हैं. इन आलिशान क़िलों में से एक ‘क़िला मुबारक’ भी है. 

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पंजाब के बठिंडा शहर में स्थित ऐतिहासिक ‘क़िला मुबारक’ को भारत का सबसे पुराना क़िला कहा जाता है. 6वीं शताब्दी में बने इस क़िले में ‘कुषाण काल’ की ईटें पाई गई थीं, जब सम्राट कनिष्क का भारत व मध्य एशिया के कई भागों पर राज था. इस ऐतिहासिक क़िले का निर्माण सम्राट कनिष्क और राजा दाब ने किया था. इसका उल्लेख ऋग्वेद और महाभारत में भी किया गया है. 

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इस क़िले के बारे में कहा जाता है कि सन 1205 से 1240 ई के बीच रज़िया सुल्ताना को उनकी हार के बाद इसी क़िले में बंदी बनाकर रखा गया था. रजिया सुल्ताना ने क़िले की बालकनी से छलांग लगाई ताकि वो अपनी सेना को इकट्ठा कर सके और दुश्मनों से फिर से लड़ सके. 

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सन 1705 में 10वें सिख गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी इस क़िले का दौरा किया गया था. इस यात्रा के स्मरण में सन 1835 में महाराजा करम सिंह ने इस क़िले के भीतर एक गुरुद्वारा बनवाया था. जिसे आज हम ‘गुरुद्वारा श्री क़िला मुबारक साहिब’ के नाम जानते हैं.   

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इस क़िले का इस्तेमाल पटियाला राजवंश के शासकों के निवास के रूप में भी किया जाता था. 17वीं शताब्दी के मध्य में इस क़िले पर महाराजा अला सिंह ने कब्जा कर लिया था और उन्होंने किले का नाम ‘फ़ोर्ट गोबिंदगढ़’ रख लिया था. 

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ऐतिहासिक ‘क़िला मुबारक’ एक नाव के आकार का क़िला है जो रेत के बीच खड़े जहाज की तरह दिखता है. इस क़िले का प्रवेश द्वार भी बेहद ख़ास है. इसके भीतरी भाग को ‘क़िला एंडरून’ कहा जाता है. ये वो क्षेत्र था जहां पटियाला राजवंश के लोग निवास करते थे. इस क़िले में मोती पैलेस, राजमाता पैलेस, शीश महल, जेल वाला पैलेस और पैलेस ऑफ़ मून नाम के अलग-अलग निवास स्थान मौजूद हैं. 

 ऐतिहासिक ‘क़िला मुबारक’ से ये महत्वपूर्ण तथ्य भी जुड़े हुए हैं- 

सन 1189 में मोहम्मद गोरी ने इस क़िले पर कब्ज़ा किया था 


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सन 1240 में रजिया सुल्ताना को इस क़िले में क़ैद किया गया था

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सन 1515 में गुरु नानक देव जी ने इस क़िले का दौरा किया था  

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सन 1665 गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने इस क़िले का दौरा किया था 

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 जबकि आख़िर में सन 1705 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस क़िले का दौरा किया था. 

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