किसी लड़के को ‘ना’ मत कहना, हो सकता है कल तुम्हें सरेआम चाक़ू से गोद दिया जाये और कोई बचाने न आये

Komal

मंगलवार सुबह एक 34 वर्षीय आदमी ने एकतरफा प्यार के चलते एक 21 वर्षीय लड़की की हत्या कर दी. लड़की टीचर थी, जब वो घर से स्कूल जा रही थी, तब आदमी ने लड़की पर टूटी हुई कैंची से 30 बार वार किया. लड़की की मौके पर मौत हो गयी.

नज़र डालते हैं एकतरफ़ा प्यार के चलते 2-3 दिनों में हुई कुछ घटनाओं पर:

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मंगलवार की घटना की दिल दहला देने वाली CCTV फुटेज सामने आई है, फुटेज में कुछ इस तरह के दृश्य हैं.

आदमी एक व्यस्त सड़क पर लड़की को पकड़ता है. आस-पास 8-10 लोग हैं, पर कोई उसे रोकने की ज़हमत नहीं उठाता. फिर वो लड़की पर कैंची से वार करना शुरू करता है, एक बार, दो बार, तीन बार…लोग देख रहे हैं, पर कोई लड़की को बचाने नहीं आता. लड़की खुद को बचाने के प्रयास में ज़मीन पर गिर जाती है, वो बैठता है और लड़की पर फिर वार करना शुरू करता है. लड़की छटपटा रही है, संघर्ष कर रही है, आदमी उस पर बेरहमी से वार किये चला जा रहा है…20 बार, फिर भी कोई उसे नहीं रोक रहा. लड़की लहूलुहान सड़क पर पड़ी है, आस-पास से गाड़ियां गुज़र रही हैं, कोई उसे देखने के लिए नहीं रुक रहा. आदमी उठ कर बेख़ौफ़ वहां टहल रहा है, कोई उसे हाथ भी नहीं लगा रहा. आदमी लड़की को लात मारता है, फिर बैठता है और लड़की के शरीर में फंसी कैंची को निकाल कर फिर उस पर वार करना शुरू करता है, लोग देखते रहते हैं. आदमी बेख़ौफ़ है, तब तक आराम से लड़की के शरीर को गोदता रहा, जब तक उसके शरीर में हरकत होना बंद नहीं हो गयी. लोग अब भी देख रहे हैं, शायद लड़की मर चुकी है. लोग देख रहे हैं, बस देख रहे हैं.

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ये घटना और इसकी फुटेज कुछ चीज़ें दिखा रही है, जिन्हें मानने और समझने की शायद हम सब में हिम्मत ही नहीं है.

ये घटनाएं भारत के पुरुषों का ‘मर्दानगी’ को ले कर दोहरा रवैया दिखा रही हैं. एक तरफ अगर लड़की उनका प्रस्ताव ठुकरा दे, तो उनकी मर्दानगी को इतनी ठेस लग जाती है कि उसे सबक सिखाने के लिए दिन दहाड़े बीच सड़क पर उसे चाक़ू से गोद देते हैं. दूसरी तरफ कुछ पुरुष अपनी आंखों के सामने किसी की बेरहमी से हत्या होते हुए देख रहे होते हैं, पर बुत बने खड़े रहते हैं.

किसी लड़की द्वारा ठुकरा दिए जाने पर ऐसे पुरुषों का ‘Male Ego’ Hurt हो जाता है, ये उन्हें ‘कम मर्द’ बना देता है, पर हैरानी की बात है कि किसी की हत्या का मूक दर्शक बनने पर इनकी ‘मर्दानगी’ कम नहीं होती.

एक मर्द होने से पहले ये सब इंसान हैं. आखिर क्यों ऐसी स्थिति में किसी की मदद न करना उन्हें ‘इंसानियत पर धब्बा’ होने का एहसास नहीं कराता?

जिस आदमी ने लड़की पर हमला किया, उसके पास हथियार नहीं थे, बस एक टूटी हुई कैंची थी. क्या 8-10 लोग मिलकर उस आदमी को रोक नहीं सकते थे? रोक तो सकते थे, पर बात ये है न…”कौन ज़हमत उठाये? कौन किसी के झंझट में पड़े?” सब खड़े सोचते रहते हैं ”कोई और मदद कर देगा”. सब यही सोचते हैं और कोई मदद नहीं करता.

सोचने वाली बात है कि यदि उस लड़की की जगह वहां मौजूद किसी आदमी के घर की महिला रही होती, तो भी क्या वो कुछ नहीं करता? बिलकुल करता. भई अपनों के लिए तो हम जान भी दे देते हैं, पर वो ‘अपनी’ थोड़े थी.

अब हर लड़की हर किसी का प्रस्ताव तो अपना नहीं सकती. जिस आदमी ने हमला किया उसके 2 बच्चे हैं, तलाक हो रहा है. कैसे वो उसका प्रस्ताव मान सकती थी? आपके घर की लड़कियों ने भी कई मनचलों के प्रस्ताव ठुकराए होंगे. हैरान मत होना, अगर कल को बीच सड़क पर कोई उसे चाकू से गोद कर चला जाये और कोई मदद को आगे न आए. क्योंकि वो भी उनकी ‘अपनी’ नहीं होगी.

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इसके बाद शुरू होता है ‘Blame Game’. लोग कहेंगे “केजरीवाल जी ने कुछ नहीं किया महिलाओं की सुरक्षा के लिए”, “पुलिस कुछ नहीं करती”. सिस्टम में जो कमियां हैं, वो तो हैं हीं, पर क्या कभी हम अपने गिरेबान में झांक कर देखते हैं? उस वक़्त वहां न पुलिस मौजूद थी, न मुख्यमंत्री, पर जो मौजूद थे वो तो कुछ कर सकते थे. वो चाहते तो रोक सकते थे उस आदमी को, बचा सकते थे उस लड़की को.

पर हमारी तो आदत है न, गलत को देख कर आगे बढ़ जाने की. जब किसी को लड़की छेड़ते देखते हैं, तो आगे बढ़ जाते हैं ये सोच कर कि “हमें क्या मतलब”, जब किसी औरत को पिटते देखते हैं तो ये कह कर आगे बढ़ जाते हैं “पति-पत्नी के मामले में हम क्यों बोलें?” हम आंखें बंद कर के आगे बढ़ जाते हैं और इंसानियत पीछे छूट जाती है.

एक और गौर करने की बात है कि 3 दिनों में दिल्ली में हुई इन 4 घटनाओं में से 3 में, हादसे होने से पहले पुलिस कंप्लेंट की जा चुकी थी. ज़ाहिर है कि शिकायत होने पर जो कार्यवाही इन लोगों के खिलाफ की गयी होगी, वो इनके मन में डर पैदा करने के लिए काफी नहीं थी. तभी पुलिस कंप्लेंट होने के बाद भी बेख़ौफ़ हो कर वे ऐसी घटनाओं को अंजाम दे सके. अगर पुलिस ने भी सख्ती बरती होती, तो शायद इनके मंसूबे इतने न बढ़ पाते.

पर गलती हमेशा सरकार या पुलिस की ही नहीं होती. कई देशों में नियम है कि यदि आप ऐसी स्थिति में किसी की मदद नहीं करते, तो आपके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है. भारत में ऐसा कोई क़ानून नहीं है, तो लोग मदद करने की ज़हमत भी नहीं उठाते. ये विडंबना है इस समाज की कि जब तक हम सबको इंसानियत याद दिलाने के लिए कोई क़ानून नहीं बनाया जायेगा, हम इंसानियत को शर्मसार करते रहेंगे.

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