भीड़ में भी बेहद तन्हा: आखिर क्यों जापान में वृद्ध लोग अकेलेपन की वजह से मौत का शिकार हो रहे हैं?

Vishu

1994 में एक फ़िल्म आई थी The Shawshank Redemption. फ़िल्म में एक शख़्स को युवावस्था में ही एक ख़तरनाक जुर्म के सिलसिले में उम्रकैद हो जाती है लेकिन जेल में उसके अच्छे व्यवहार के चलते उसे बुढ़ापे में रिहा कर दिया जाता है. लेकिन ये व्यक्ति बाहरी दुनिया से सांमज्स्य नहीं बिठा पाता, आज़ाद और उन्मुक्त जीवन अब उसे रास नहीं आ रहा था, जेल में जिन लोगों के साथ वो वक़्त बिता रहा था, वहीं उसका परिवार था, वही उसकी ज़िंदगी थी.

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आज़ाद होने के बावजूद उसे अकेलापन इस कदर घेर लेता था कि भरे बुढ़ापे में भी वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है.

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ये कहानी भले ही रील लाइफ़ की हो लेकिन रियल लाइफ़ में भी जापान में कुछ इसी तरह के मामले देखने सुनने को मिल रहे हैं और ये वाकई तकलीफ़देह है.

कोडोकुशी (KodoKushi) यानि घोर अकेलेपन से मौत. दुनिया के ज़्यादातर लोगों के लिए बेतहाशा अकेलापन किसी ख़तरनाक मानसिक बीमारी से कम नहीं होता लेकिन जापान में ये ट्रेंड भयानक स्तर तक जा पहुंचा है. 1980 के दशक में पहली बार Kodokushi शब्द को पहली बार इस्तेमाल किया गया था. ये ख़ासतौर पर बुढ़ापे में अकेलेपन से ग्रस्त लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ था.

रिपोर्ट्स के अनुसार, कोडोकुशी जापान में एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है. यहां 27.7 प्रतिशत जनसंख्या 65 साल से ज़्यादा की उम्र की है. अपने पार्टनर की मौत होने के बाद अधेड़ उम्र में पार्टनर न ढूंढ पाने पर लोग न चाहते हुए भी अकेलेपन से सामना करना पड़ता है.

न्यूयॉर्क टाइम्स में नॉरीमित्सु ओनिशी द्वारा एक 91 साल की महिला Chieko Ito के बारे में आर्टिकल लिखा गया है. ये महिला Tokiwadaira में एक बड़े से सरकारी अपार्टमेंट में रहती थी. ये अपार्टमेंट, ऐसे ही अकेलेपन से होने वाली मौतों के लिए कुख्यात है. 25 साल पहले इस महिला की बेटी और पति तीन महीने के अंतराल में चल बसे थे. 

परिवार, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों के न होने के चलते यहां रहने वाले कई लोग अपने अपार्टमेंट्स में दुबक कर रहते हैं. उनके अस्तित्व को लेकर बाहरी दुनिया को कोई भनक नहीं होती और हर साल इन अपार्टमेंट में से कई लोग बिना किसी आहट के दुनिया छोड़ जाते हैं. फिर कई दिनों के बाद जब इन कमरों से दुर्गंध उठने लगती है तो पड़ोसियों के द्वारा ही इन लोगों की मौत के बारे में पता चल पाता है.

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Ito जानती थीं कि उनके साथ भी ऐसा होने की बहुत संभावनाएं है. उन्हें अकेलेपन से होने वाली मौत से डर लगता था. यही कारण था कि उन्होंने अपनी पड़ोसी से एक ‘फ़ेवर’ मांगा था. Ito दरअसल शाम को 6-7 बजे के बाद ही सो जाती थी, उसी दौरान वो अपनी खिड़की में एक पेपर स्क्रीन लगा देती थी और फिर सुबह वे 5.40 पर उठ जाती थी. वे हर रोज़ सोने से पहले अपनी खिड़की पर एक सफ़ेद रंग का पेपर रखा करती थी और सुबह उठने पर उसे हटा लेती थी. Ito का कहना था कि अगर तुम्हें ये पेपर सुबह हटा हुआ न मिले तो समझ लेना मेरी मौत हो चुकी है’.

लेखक ने इस मामले में उस घटना का ज़िक्र भी किया जब एक 69 साल के शख़्स का शव उसके अपार्टमेंट में तीन साल का पड़ा रहा था. इस व्यक्ति का किराया और बाकी सामान अपने आप उसके बैंक अकाउंट से ऑटोमैटिकली निकाल लिया जाता था. प्रशासन को सन 2000 में इस शख़्स की मौत के बारे में पता चला था जब उसके अकाउंट में पैसे ख़त्म हो गए थे. जब प्रशासन के लोग इस व्यक्ति के अपार्टमेंट में पहुंचे थे तो वहां भयंकर बदबू थी और उसका शव कंकाल में तब्दील हो चुका था.

ओनिशी के मुताबिक, 1960 के बाद से ही इकोनॉमिक ग्रोथ पर ज़बरदस्त फ़ोकस के बाद पिछली एक जनरेशन में जापानी अर्थव्यवस्था में नकारात्मक स्थिरता ने ग्रोथ को थोड़ा कम किया है. काम के अत्य़धिक दबाव के चलते जापान के कई परिवार और समुदाय अस्तव्यस्त हो चुके हैं. जापान में कम होती बर्थ रेट और बढ़ते बूढ़े लोगों की वजह से वहां अकेलापन काफी बड़े स्तर पर व्याप्त हो चुका है.

Source: Hindustan Times

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