प्यार दोस्ती है! फ़िल्म कुछ-कुछ होता है में शाहरुख खान ने यह थ्योरी दी थी और इस के चक्कर में लड़कियों का जीना दूभर हो गया. वो लड़कों को फ्रेंडज़ोन करती हैं और लड़के उसे भी प्यार दोस्ती है वाली थ्योरी भिड़ा कर कुछ और समझ लेते हैं.
बॉलीवुड की फ़िल्मों ने हमारी दोस्ती के डेफ़िनेशन की ऐसी-तैसी कर रखी है, फ़िल्मी दोस्ती ने हमें बरगला दिया है.
ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा के एक सीन में फ़रहान अख़्तर ऋतिक रौशन का iPhone चलती कार से फेंक देता है, वो भी मज़ाक में. कोई असल ज़िंदगी में ऐसा सोच भी नहीं सकता. कोई दोस्त मज़ाक में iPhone फेंक दे तो इसकी संभावना कम ही है कि उस पहाड़ी से दोनों ज़िंदा वापस लौटें, एक की मौत तो निश्चित है.
मुन्ना-भाई और सर्किट की दोस्ती से लोग इमोशनल हुए जा रहे हैं. अबे! सर्किट मुन्ना का दोस्त नहीं कर्मचारी था, उसके लिए काम करता था. उसके लिए लोगों के घर खाली करवाता था, उसका हुकुम बजाता था. मुन्ना अच्छा बॉस हो सकता है, लेकिन दोस्त तो बिल्कुल नहीं. दोस्ती में दोनों पार्टी एक लेवल पर होते हैं.
कॉलेज के बाद लोगों की दोस्ती कितनी चलती है, ये सबका देखा-समझा हुआ है. प्यार का पंचनामा की बात करते हैं. इस सेटअप को समझने की ज़रूरत है. ये तीनों कॉलेज के दोस्त हैं. तीनों अलग अलग ऑफ़िस में काम करते हैं, लेकिन शिफ़्ट की टाइमिंग सेम है, चलो मान लेते हैं. तीनों साथ रहते हैं, यानी तीनों का ऑफ़िस भी पास में होगा, क्योंकि एक भी दूर रहा तो वो अलग फ़्लैट में रहने लगता. तीनों पार्टी भी साथ में करते हैं, मतलब वीक ऑफ़ भी साथ पड़ती है, ये ज़्यादा कोइंसिडेंस नहीं हो गया! और आप फ़िल्म देख कर सपने देखने लगते हैं कि हमारे दोस्तों का ग्रुप भी ऐसे ही किसी अपार्टमेंट में चिल करेगा. बता रहा हूं, प्लेसमेंट में तीन दोस्तों की नौकरी तीन अलग शहर में लग जाएगी, सपना वहीं टूट जाएगा.
इस चलन की शुरुआत होती है दिल चाहता है से. मुझे नहीं जाना गोवा, क्यों जाना गोवा, क्या रखा है गोवा में(डायलॉग रेफ़रेंस-जब वी मेट). गोवा जाना भी है तो रोड ट्रिप मारते हुए, जाने वक्त तो बीच पर लेटने की खुशी रहती है, लोग गाड़ी उड़ाते पहुंच जाते हैं. आते वक़्त थकान के मारे वही गाड़ी ऐसे चलती है जैसे पहिए न लगे हों.
सलमान ख़ान और अक्षय कुमार की मुझसे शादी करोगी फ़िल्म में तो मानो मंगल पर शूट हुई है. पृथ्वी की कहानी ही नहीं है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि असल ज़िंदगी में आजतक ‘बदतम़ीज़, चद्दर की कमीज़, लोहे का पजामा, बंदर तेरा माम….. आम का आचार, आजा मेरे यार’ वाली बेवकूफ़ी भरी बातें किसी ने अपने दोस्त से नहीं की होगी और न ही करेगा, आप लिखवा कर ले लो.
असली दोस्ती होती है गैंग्स ऑफ़ वासेपुर टाइप, जिसमें कोई किसी का दोस्त नहीं होता. सब काम से एक दूसरे से जुड़े होते हैं. काम है तो दूसरे के लिए जान की बाज़ी भी लगा सकते हैं और काम निकलते ही एक दूसरे के जान के दुश्मन.
दोस्ती सीखनी है तो रांझना से सीखिए, मुरारी कुंदन के सारे सही ग़लत में साथ रहता है, लोकिन कोई ऐसा तोप काम भी नहीं करता जिसे देख कर भरोसा नहीं किया जा सकता और ज़रूरत पड़ने पर दोस्ती वाली गाली भी देता है.