भारत में वैसे तो एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक क़िले हैं, लेकिन एक ऐसा क़िला भी है जो अपने रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है. इस रहस्यमयी क़िले का नाम गढ़कुंडार क़िला है, जो मध्य प्रदेश के निवारी ज़िले के कुंडार गांव में स्थित है.
यूपी के झांसी से करीब 70 किलोमीटर दूर गढ़कुंडार क़िला बेहद रहस्मयी माना जाता है. क़रीब 2000 साल पुराने इस क़िले की ख़ासियतों में एक इसका 2 फ़्लोर का बेसमेंट भी है. ये ऐतिहासिक क़िला 5 मंज़िला है, जिसमें 3 मंज़िल ज़मीन के ऊपर, जबकि 2 मंज़िल ज़मीन के नीचे हैं. आमतौर पर ऐसा कम ही देखने को मिलता है.
हालांकि, इस क़िले को कब और किसने बनवाया इसकी जानकारी इतिहास के पन्नों में दर्ज़ नहीं है. लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि ये क़िला 1500 से 2000 साल पुराना है. यहां चंदेलों, बुंदेलों और खंगार शासकों का शासन रहा था.
जब पूरी बारात हो गयी थी ग़ायब
इस क़िले को लेकर कुंडार गांव के लोग बताते हैं कि कई साल पहले गांव में एक बारात आयी थी. इस दौरान बाराती घूमते-घूमते जब इस क़िले के बेसमेंट में गए तो पूरी की पूरी बारात ही ग़ायब हो गई. आज तक इन ग़ायब हुए लोगों का पता नहीं चल सका है. इसके बाद इस क़िले के बेसमेंट में जाने वाले सभी दरवाज़ों को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया.
गांव वाले बताते हैं कि बारातियों की संख्या 50-60 के क़रीब थी. इसके बाद भी इस रहस्यमयी क़िले में इस तरह की कई अन्य घटनाएं हो चुकी हैं. गढ़कुंडार क़िले के बेसमेंट में आज भी कई रहस्य छुपे हुए हैं.
इस क़िले में मौजूद खज़ाने का रहस्य
इस क़िले के बारे में कहा जाता है कि इसमें इतना खज़ाना है कि भारत एक अमीर देश बन जाए. मुगलों से लेकर अंग्रेज़ों तक ने इस क़िले में मौजूद ख़ज़ाने को कई बार लूटा. इतना ही नहीं स्थानीय चोर उचक्कों ने भी इस खज़ाने को तलाशने के कई कोशिशें की. इस क़िले में स्थित खज़ाने को तलाशने के चक्कर में कईयों की जानें भी जा चुकी हैं.
इतिहासकारों का मानना है कि गढ़कुंडार बेहद संपन्न और पुरानी रियासत रही है. इस इलाके में चंदेलों, बुंदेलों और खंगारों का कब्ज़ा रहा है. इन शासकों के पास धन दौलत व हीरे-जवाहरात की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने ने ही लुटेरों से बचने के लिए अपने महलों का ख़ज़ाना इस क़िले के बेसमेंट में छुपा दिया था.
सुरक्षा की दृष्टि से बेजोड़ नमूना
एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित ये क़िला सुरक्षा दृष्टि के बेजोड़ नमूने को पेश करता है. ये रहस्यमयी क़िला यहां घूमने आये पर्यटकों को भी भ्रमित कर देता है. ये क़िला इस तरीके से बनाया गया कि ये 4-5 किलोमीटर दूर से तो दिखता है, लेकिन नज़दीक आते-आते किला दिखना बंद हो जाता है. अगर किसी को इस क़िले के बारे में जानकारी नहीं है तो वो इसके अंदर जाने पर रास्ता भूल सकता है. ये क़िला भूल-भुलैय्या की तरह है. दिन के समय भी यहां अंधेरा रहने के कारण ये क़िला काफी डरावना लगता है.
क्या है इस क़िले का असल इतिहास?
इस क़िले के इतिहास को लेकर बीएचयू से शोधकर्ता अजय सिंह का मानना है कि, ये क़िला चंदेल काल में चंदेलों का मुख्यालय व सैनिक अड्डा हुआ करता था. सन 1182 में चंदेलों व चौहानों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें चंदेल हार गए थे. इस युद्ध में गढ़कुंडार के क़िलेदार शियाजू पवार की जान चली गई. इसके बाद यहां नायब क़िलेदार खेत सिंह खंगार ने यहां खंगार राज्य स्थापित कर दिया. सन 1182 से 1257 तक यहां खंगारों का शासन रहा.
इसके बाद बुंदेला राजा सोहन पाल ने यहां शासन किया. सन 1257 से 1539 तक यहां बुंदेलों ने शासन किया. बुंदेलों का शासन ख़त्म होने के बाद ये क़िला कई सालों तक वीरान पड़ा रहा है. सन 1605 में ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने गढ़कुंडार क़िले को अपने अधिकार में ले लिया था.
गढ़कुंडार के क़िले को लेकर लेखक वृंदावनलाल वर्मा ने एक किताब भी लिखी है. इस किताब में भी इस क़िले के कई रहस्य मौजूद हैं.