उन्होंने अपनी बेटी को कैंसर की वजह से खो दिया, पर 7 हज़ार किताबें बांट कर उसके सपने को ज़िंदा रखा

Akanksha Tiwari

किसी अपने को खोने का ग़म क्या होता है, ये माता-पिता से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता. गुना के एनएफ़एल विजयपुर के रहने वाले हम्बीर सिंह और उनकी पत्नी सुचेता सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ, इन्होंने अपनी आंखों के सामने अपनी 13 साल की बेटी को दम तोड़ते हुए देखा है. सिंह दंपत्ति अपनी बेटी की मौत तो नहीं रोक पाए, लेकिन बेटी के सपनों को नहीं मरने दिया.

दरअसल, हम्बीर सिंह और सुचेता सिंह ने अपनी बेटी की याद में न सिर्फ़ अपनी सैलरी से 12 लाइब्रेरीज़ का निर्माण करवाया, बल्कि गरीब बच्चों में 7 हज़ार से अधिक किताबें भी दान की, ताकि कोई भी बच्चा किताब के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहे.

एक ओर जहां हम्बीर सिंह एनएफ़एल में सहायक पाली प्रबंधक हैं, तो वहीं उनकी पत्नी सुचेता सिंह पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक बदलाव के लिए काम करती हैं.

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इस बारे में बात करती हुई सुचेता बताती हैं, ‘साल 2012 में महज़ 13 साल की उम्र में कैंसर के कारण मेरी बेटी की मृत्यु हो गई. एक बार बातों-बातों में बेटी कुलदीपिका ने बड़ा होकर डॉक्टर बनने की इच्छा जताई थी, उस वक़्त वो 12 साल की थी. कुलदीपिका की याद में ही हमने ‘कुलदीपिका सिंह मैमोरियल बुक बैंक’ का निर्माण करवाया और इसी माध्यम से अब तक हम 12 संस्थाओं में बुक दान कर चुके हैं.’ सुचेता आगे बताते हुए कहती हैं कि ‘हमारी बेटी, तो अब इस दुनिया में नहीं रही, लेकिन हां दान की गई इन किताबों को पढ़कर कुछ बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर और काबिल इंसान ज़रूर बन सकेंगे और शायद ऐसे ही मेरी बेटी का सपना भी पूरा हो जाए.’वहीं हम्बीर सिंह का कहना है कि ‘स्कूलों में किताबें वितरित करते वक़्त बच्चों में उन्हें अपनी बेटी नज़र आती है, साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वो बच्चों को किताब देने से ज़्यादा स्कूल में लाइबेरी बनाने पर य़कीन रखते हैं. इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि लाइबेरी में बच्चों को पढ़ने का ज़्यादा समय मिलता है, साथ ही किताबें गुम होने की आशंका भी कम होती है.’

हम्बीर सिंह और सुचेता ज़िले में 11 जगह पर लाइब्रेरी बनाने के लिए किताबें दान कर चुके हैं. इसमें शासकीय और निज़ी स्कूल के साथ-साथ आश्रम, शासकीय पुस्तकालय, गरीब बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली संस्थाओं, सहित शासकीय उच्चतर माध्यमिक मॉडल स्कूल डोंगर राघौगढ़, शासकीय पॉलीटेक्नीक कॉलेज राघौगढ़, नवकुंज पब्लिक स्कूल एनएफएल पालिका बाज़ार विजयपुर, जीवाजी पुस्तकालय गुना, मानस भवन लाइब्रेरी गुना, सबरी आश्रम चांचौड़ा, स्वामी विवेकानंद स्कूल रूठियाई गुना, जेएम कान्वेट रूठियाई, एसआर एकेडमी गुना शामिल हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के फिरोज़ाबाद ज़िले के मदनपुर स्थित आरएल पॉलीटेक्नीक कॉलेज में भी वो किताबें दान कर चुके हैं.

दंपती स्कूल, कॉलेज, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए भी किताबें दान करते हैं, इसमें गणित, अंग्रेज़ी, फ़िजिक्स, कैमेस्ट्री, बायोलॉजी, इंजीनियरिंग की किताबें शामिल हैं. इसके साथ ही पीईटी, नीट, आईआईटी, एआईईईई की जैसी प्रवेश परिक्षाओं के लिए भी किताबें दी जा रही हैं.

अपनी 13 साल की बेटी के गुज़र जाने के बाद, इस दंपति ने गरीब बच्चों के लिए जो कदम उठाया, वो वाकई सरहानीय है. इनकी बेटी आज जहां भी होगी, ये देखकर उसे अपने माता-पिता पर बहुत गर्व हो रहा होगा.

Source : naidunia

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