हिंदी के इन उपन्यासों को पढ़ने का मतलब है समाज के करीब जा कर उससे बात करना

Sumit Gaur

अगर आप पढ़ने के शौक़ीन हैं, तो आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि कुछ कहानियां और कवितायें ऐसी होती हैं, जो खुद ख़त्म हो जाती हैं, पर हमें एक ऐसे मोड़ पर छोड़ देती हैं, जहां से दिमाग़ लाख कोशिश करने के बावजूद कहानी और उसके किरदारों से बाहर नहीं आ पाता. आज हम आपके लिए कुछ ऐसी ही किताबों के नाम ले कर आये हैं, जो खत्म होने के साथ आपके दिमाग को सवालों से भरा छोड़ जाती हैं.

गुनाहों का देवता

हिंदी के बड़े साहित्यकारों में से एक धर्मवीर भारती का उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ को पढ़ते वक़्त आप ऐसा महसूस करते हैं, जैसे मीना कुमारी कि कोई फ़िल्म देख रहे हों, जहां हर मोड़ पर एक नयी ट्रेजेडी दिखने वाली हो. इस अकेले उपन्यास में प्यार की इतनी परिभाषायें हैं कि आप भी उन परिभाषाओं के साथ-साथ बहने लगते हैं.

wp

सूरज का सांतवा घोड़ा

धर्मवीर भारती की लिखी रचनाओं में एक खास बात है कि उनका हर उपन्यास प्यार के बिना अधूरा प्रतीत होता है. ऐसे ही प्यार को एक प्रेम का रूप दे कर धर्मवीर सात कहानियों को सुनाने के लिए एक पात्र को चुनते हैं. कहानी के आखिर में जिस तरह से कहानी सुनाने वाला ही कहानियों में गिरफ़्तार हो कर हमें बीच में अधूरा छोड़ कर चला जाता है, मन इस अधर में अटक जाता है कि आगे क्या हुआ होगा?

goodreads

अपवित्र आख्यान

अब्दुल बिस्मिलाह द्वारा लिखित उपन्यास ‘अपवित्र आख्यान’ उस हिंदी फ़िल्म की तरह है, जिसमें पूरी न हो पाई एक प्रेम कहानी, सेक्स, सोसाइटी और करियर की चाहत के साथ हर वो मसाला मौजूद है, जो किसी फ़िल्म को हिट कराने का काम करती है. इतना सब होने के बावजूद ये कहानी इतनी सादगी और पाकीज़गी के साथ आगे बढ़ती हुई हिंदुस्तान की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई दिखाने के साथ ही उस समाज के सच से नकाब उतार देती है, जो कहती है अब सब ठीक है.

rajkamal

जूठन

जाने-माने दलित साहित्यकार ओम प्रकाश बाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’ को आप समाज का आइना दिखाती एक तस्वीर भी कह सकते हैं. ऐसी तस्वीर जिसमें दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को आप खुद महसूस कर सकते हैं. गालियों से शुरू हुआ ये उपन्यास आखिर तक आपसे उसी भाषा में बात करता है, जिस भाषा में समाज दलितों से बात करता रहा है.

rajkamal

सारा आकाश

राजेन्द्र यादव द्वारा लिखित उपन्यास ‘सारा आकाश’ पर मशहूर निर्देशक बासु चटर्जी फ़िल्म भी बना चुके हैं. इस उपन्यास में एक मध्यमवर्गीय युवक और उसके अस्तित्व के संघर्ष की कहानी को दिखाया गया है, जो आशाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और आर्थिक-सामाजिक ताने-बाने के बीच खुद को तलाशने के लिए द्वंद में फंसता चला जाता है.

learning

Feature Image Source: pinterest

आपको ये भी पसंद आएगा
बेवफ़ा समोसे वाला: प्यार में धोखा मिला तो खोल ली दुकान, धोखा खाये लवर्स को देता है डिस्काउंट
जानिये दिल्ली, नई दिल्ली और दिल्ली-NCR में क्या अंतर है, अधिकतर लोगों को ये नहीं मालूम होगा
जानिए भारत की ये 8 प्रमुख ख़ुफ़िया और सुरक्षा जांच एजेंसियां क्या काम और कैसे काम करती हैं
मिलिए गनौरी पासवान से, जिन्होंने छेनी व हथोड़े से 1500 फ़ीट ऊंचे पहाड़ को काटकर बना दीं 400 सीढ़ियां
ये IPS ऑफ़िसर बेड़िया जनजाति का शोषण देख ना पाए, देखिए अब कैसे संवार रहे हैं उन लोगों का जीवन
अजय बंगा से लेकर इंदिरा नूई तक, CEO भाई बहनों की वो जोड़ी जो IIM और IIT से पास-आउट हैं