सिंधिया परिवार एक ऐसा राजघराना है, जिसने मुग़लों के शासन से लेकर 1857 का बगावत काल भी देखा है

Sumit Gaur

1947 के बाद बेशक हिंदुस्तान में राजशाही को ख़त्म करके लोकतंत्र को लागू कर दिया गया, पर इसके बावजूद आज भी कई राजपरिवार अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं, जिनमें से कुछ राजनीति में सक्रिय हो गए, तो कुछ समाज सेवा में लग गए. ऐसे ही राजपरिवारों में से एक है ग्वालियर का सिंधिया परिवार, जिसकी राजनैतिक पैठ राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र तक फैली हुई है. सिंधिया परिवार के इतिहास की जड़े मुग़लकाल से जुड़ी हुई हैं.

इतिहास की मानें, तो खुद मुग़ल भी सिंधिया परिवार के ऋणी रहे हैं. 1857 के बाद जब बहादुरशाह ज़फर की मौत के बाद मुग़ल कमजोर होने लगे, तो औरंगज़ेब के पड़पोते शाह आलमगीर द्वितीय के गुलाम कदीरबख्श रोहिल्ला ने बादशाह से बगावत कर दी और दिल्ली के लाल किले पर कब्जा कर लिया.

मगर कदीरबख्श यहीं नहीं रुका शाही ख़ज़ाना लूटने के बाद उसने बादशाह की आंखें फोड़ दीं और महिलाओं को बंदी बना कर उनके साथ बलात्कार किया. कदीरबख्श के ज़ुल्मों का खेल लगातार 3 महीने तब तक चला, जब तक कि ये ख़बर ग्वालियर के महादजी सिंधिया के नहीं पहुंची.

इस दुखद समाचार को सुन कर महादजी सिंधिया ने सेना सहित दिल्ली की तरफ कूच की और कदीरबख्श को बंदी बना कर बादशाह को छुड़ा लिया. कदीरबख्श को बादशाह के हवाले कर के महादजी सिंधिया लौट गए. इसके बाद बादशाह ने कदीरबख्श को कैद करके तीन महीने तक उसके शरीर का हर अंग काट कर पेटी में बंद करने की सजा सुनाई. जबकि कदीरबख्श के परिवार वालों ने भाग कर मराठों की शरण ली.

महादजी सिंधिया की ये मदद एक कूटनीतिक चाल की तरह भी काम कर गई और मुग़ल राजस्थान के राजपूतों को छोड़ कर महाराष्ट्र के मराठों की तरफ़ अपना ध्यान लगाने लगे.

1857 से पहले भी जब सिंधिया राजघराने पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार कर लिया, तब भी इस परिवार ने हार नहीं मानी. 1843 आते-आते सिंधिया ने 3 बार अंग्रेजों के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की, हालांकि उन्हें असली कामयाबी 1843 में महाराष्ट्र के सहयोगियों की मदद से मिली.

1857 में जयाजीराव सिंधिया अपने साम्राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों की मदद करने के लिए विवश थे. यहां जयाजीराव सिंधिया कहीं से भी ग़लत मालूम नहीं होते, क्योंकि उस समय देश के लगभग सभी घराने हिंदुस्तान को नहीं, बल्कि अपने-अपने साम्रज्य को बचाने के लिए लड़ रहे थे. इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने जयाजीराव सिंधिया को जॉर्ज की उपाधि दी, जो इंग्लैंड के राजा का नाम था.

1947 में भारत के आज़ाद होने के बाद सिंधिया परिवार के सदस्यों ने अपनी-अपनी इच्छा और नैतिकता के आधार पर अलग-अलग पार्टियों को चुना और उनका हिस्सा बन गए. इसके बावजूद वो अपनी कूटनीति से वो अपना राजपरिवार बचाने में कामयाब रहे.

नेपाल नरेश के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करके इमरजेंसी जैसे संकट के समय उन्होंने नेपाल को अपना सुरक्षित ठिकाना बनाया. आज भी मध्य प्रदेश के जिन इलाकों में विकास की असल गंगा पहुंच पाई है, वहां इस परिवार का कोई न कोई सदस्य लोगों का नेतृत्व करता पाया गया है.

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