काशी का नाम सुनते ही गंगा, घाट, शाम की आरती, मंदिर और शिव भक्ति में लीन बम-बम भोले की गूंज से जगमगाती नगरी याद आ जाती है. काशी का नशा ही कुछ ऐसा है जो यहां आया गंगा मईया का होकर रह गया. लोगों का ऐसा मानना है कि यहां मरने पर मोक्ष मिलता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने काशी नगरी का निर्माण मनुष्य की मुक्ति के लिए किया है. इसलिए यहां लोग अपने जीवन के अंतिम दिनों में मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं.
मोक्ष प्राप्ति का ये सिलसिला आज भी जारी है. इसलिए तो अंतिम समय में लोग अपने परिजनों को वाराणसी के ‘काशी लाभ मुक्ति भवन’ में लाते हैं. शहर के गोदौलिया क्षेत्र में स्थित इस होटल में लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं.
1958 में डालमिया चैरिटेबल ट्रस्ट ने इस भवन के दरवाज़े लोगों के लिए खोले थे. इस होटल में 12 कमरे हैं और एक छोटा सा मंदिर भी है. यहां ठहरने वालों से रुपये नहीं लिए जाते हैं.
भवन में आमतौर पर लोगों को 2 हफ़्ते रुकने की इजाज़त होती है यदि इन 2 हफ़्तों में इंसान को मुक्ति नहीं मिलती है तो परिवार वालों से इन्हें वापिस ले जाने को कहा जाता है और कुछ समय बाद फिर वापस लाने की अनुमति होती है. यदि कोई वृद्ध इंसान होता है तो भवन में उसके साथ एक परिजन भी रह सकता है.
यहां सुबह से लेकर शाम तक रामायण और गीता का पाठ चलता रहता है. शाम को सत्यनारायण भगवान की आरती भी होती है. वहीं हर रोज़ भवन में रहने आए लोगों को गंगाजल और तुलसी का सेवन करवाया जाता है ऐसी मान्यता है कि इन दोनों का सेवन करने से अंतिम पलों में कठिनाई नहीं होती है.
चार दशक से मुक्ति भवन की देखरेख कर रहे भैरवनाथ शुक्ला का कहना है कि यहां हर दिन किसी न किसी को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
अब तक यहां करीब 15,000 लोग मर चुके हैं जिनका गंगा के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया है.