Short Story: जब मुंह पर दुपट्टा बांधती हूं, तो वो Call Girl समझ लेते हैं

Akanksha Thapliyal

पत्ते हरे नहीं लगते यहां… ख्वाबों की तरह पेड़ों पर धूल की परत जमी रहती है… लेकिन कभी-कबार जब बरखा होती है, तब कुछ पल के लिए सब साफ़ दिखता है. बड़ी धूल रहती है यहां, बड़ा शहर है न, शायद इसलिए.

इस धूल से बचने के लिए हमेशा घर से निकलने से पहले दुपट्टा ओढ़ लेती हूं. सीढ़ियों से थोड़ा नीचे जाती हूं और बाहर निकली नहीं कि चेहरे पर लपेट लिया कफ़न. दुनिया के लिए मैं बस एक लड़की होती हूं, जिसने गर्मी और धूल से बचने के लिए चेहरे पर एक कपड़ा बांध लिया है.

लेकिन कुछ हैं, जिनकी आंखें मेरी आंखों को चीरती हुई मेरे शरीर के हर हिस्से को जकड़ने की कोशिश करती हैं. वो कुछ हैं, जिनके लिए दुपट्टा बांधे मैं एक लड़की नहीं, बल्कि Customer ढूंढती Prostitute हूं. Formal Dress पहने, Office के लिए Lunch Box हाथ में पकड़े वो कुछ शालीन चेहरे, जो दुनिया से नज़रें बचाते पूछते हैं, ‘तू वही है न?’… अगर वही है, तो चल, कितने लेगी?’ एक दिन किसी का इंतज़ार करते हुए एक अमीर आंख ने देखा, पूछा ‘इतनी रात को चेहरा छुपाए तेरे अलावा कौन हो सकती है, तू वो ही है न?’ मैंने अपनी आंखें फेर लीं, लेकिन उस दिन मर्दों के बारे में एक बात ज़रूर पता चली.

तुम खुद को जितना भी ढक लो, वो फिर भी उसी हवस और हैवानियत से तुम्हें घूरेंगे. मौका मिल जाए, तुम्हारे उस ढके शरीर को उसी वक़्त झंझोड़ना चाहेंगे.

कभी किसी बस स्टैंड पर जब वेट करती हूं, आधी नज़रें मेरे उस दुपट्टे से ढके चेहरे पर आ पहुंचती हैं. कई बार तो धूल भरी सड़क में दुपट्टा मुंह से हटा लिया, कहीं लोग मुझे गलत न समझें. कहीं मुझे ‘वो’ न समझ बैठें.

कितनी गलत हूं न मैं, अभी भी ख़ुद को ग़लत समझती हूं. झट से चेहरे से वो नक़ाब हटाकर ‘उनको’ Explain करने की कोशिश करती हूं कि, ‘माफ़ करना, मैं वो नहीं हूं’. आप शायद मुझे गलत समझ रहे हैं’.

अपने Boyfriend के साथ एक बार ऑटो का इंतज़ार कर रही थी, वो थोड़ी ही दूर गया होगा ऑटो देखने, एक कार आकर रुकी, शीशा नीचे हुआ और उसमें बैठे Uncle ने इशारा किया, ‘चलेगी?’. इससे पहले मैं अपनी आंखों से कुछ कह पाती, वो चल दिए… मैं फिर से बिन कुछ कहे वहीं खड़ी रही. ऑटो में बैठी और गुस्से में वो दुपट्टा फेंक दिया.

आज भी इस शहर में उतनी ही धूल है, उसका कुछ हिस्सा मेरे चेहरे पर भी पड़ता है. लेकिन अब धूल से डर नहीं लगता. न अब वो दुपट्टा मेरे बैग में रहता है, जिससे कभी मैं धूल से बचा करती थी.

अब घर जाकर महंगे Face Wash से मुंह धो लेती हूं. सही है न?  

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