गोलियों से नहीं, नंबरों के खेल से मारा गया था दुनिया का सबसे कुख्यात डाकू, वीरप्पन

Akanksha Thapliyal

दुनिया के सबसे कुख्यात हत्यारे और डाकू, वीरप्पन को 2004 में तमिल नाडु स्पेशल टास्क फ़ोर्स ने मार गिराया था. इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था, ‘ऑपरेशन कुकून’. दुनिया के सबसे बड़े Hunt Down ऑपरेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे के. विजय कुमार ने हाल ही में ऑपरेशन कुकून से जुड़ी कुछ ऐसी जानकारियां सामने रखी, जिनके बारे में आम जनता को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था.

हमें लगता था कि वीरप्पन को एक बहुत इंटेलीजेंट मिशन के तहत मारा गया.

हमें सही लगता था, लेकिन इस मिशन में और ऐसी कई चीज़ें हुईं, जो पहले कभी किसी मिशन में नहीं की गयी थीं.

वीरप्पन को घेरने के लिए जब भी तमिल स्पेशल फ़ोर्स जंगल में रेड करती थी, वीरप्पन को उसका पहले से पता चल जाता था. क्योंकि स्पेशल फ़ोर्स अफ़सर आपस में तमिल में बात करते थे और ये सभी बातें वीरप्पन के स्पेशल I-Com वायरलेस सेट में रिकॉर्ड हो जाती थी. वो सुन कर ही बता देता था कि वो आवाज़ किस अफ़सर या जवान की है. वो बस आवाज़ सुनता और फ़ोर्स के अटैक या ठिकानों का पता उसे पहले से मालूम हो जाता.

शब्दों की जगह, नंबरों से मात देने की तकनीक

वीरप्पन से लड़ने के लिए फ़ोर्स को एक नया तरीका ढूंढना था और उन्हें ये मिला नंबरों में. क्योंकि फ़ोर्स जब भी बात करती, उनके मिशन का पता वीरप्पन को अपने हैंडसेट से लग जाता था, उन्होंने उसे भ्रमित करने के लिए एक तरीका निकाला. अब फ़ोर्स आपस में जब भी वायरलेस पर बात करती, वो बातचीत किसी भाषा में नहीं, नंबरों में होती थी. इन नंबरों को जब भी वीरप्पन सुनता, ये बातें उसके सिर से जाती. अब वो बहुत प्रेशर में आ चुका था, क्योंकि STF की टीम उसके दिमाग़ से खेल रही थी. कई बार फ़ोर्स आपस में तमिल में बात कर के उसे झूठी चेतावनी देती, और उसके लगता कि वो सच बोल रहे हैं. वीरप्पन इस माइंड गेम में फंसता जा रहा था.

6 मेम्बर टीम का अटैक

STF ने अपनी टीम को अब एक अलग डिज़ाइन में बांटा था. उन्होंने अपने एरिया का 60 स्क्वायर किलोमीटर, 16 स्क्वायर में बांट दिया और वहां पर एक काल्पनिक घड़ी रख दी, ताकि वो लोग अपनी लोकेशन पास कर सकें. ये सभी बातें STF की टीम के अलावा और किसी को समझ नहीं आती, वीरप्पन को भी नहीं, जो उनकी बातें अपने वायरलेस से सुन रहा था.

अक्टूबर 19, 2004 की इस फ़ोटो में स्पेशल फ़ोर्स के हाथ वो गाड़ी लगी थी, जिसमें वीरप्पन घूमता था. ये गाड़ी फ़ोर्स वीरप्पन के साथ धर्मापुरी (बेंगलुरु से 140 किलोमीटर दूर) में हुई छोटी मुठभेड़ में हाथ लगी थी.

वीरप्पन अब पूरी तरह से फंस चुका था, वो फ़ोर्स के अगले क़दम से अब बिलकुल अनजान था. उसे और दुखी कर दिया था फ़ोर्स की LCD स्क्रीन्स ने. रात को पेट्रोलिंग कर रहे सभी सैनिकों की कैप पर ऐसे LCD स्क्रीन्स लगाए गए थे, जो दिन में नहीं दिखते थे, लेकिन रात होते ही टीवी कंट्रोल की मदद से चमकने लगते.हालांकि इन्हें सिर्फ़ इन्हीं कंट्रोल रिमोट से देखा जा सकता था, नंगी आंखों से नहीं. इससे फ़ोर्स को अपने सिपाहियों और वीरप्पन के ख़बरियों में भेद करने में आसानी होती थी.

ऐसी स्ट्रेटेजी इससे पहले किसी बड़े सर्च एंड किल ऑपरेशन में नहीं अपनाई गयी थी. इसके लिए टीमों को कई महीनों की ट्रेनिंग और मेहनत के बाद तैयार किया गया था. ये प्लान था दुनिया के सबसे कुख्यात डकैत को पकड़ने का और 2004 में STF टीम इसमें कामयाब भी हो गयी.

ये सभी जानकारी, ऑपरेशन कुकून के अग्रणी रहे, के. विजय कुमार ने अपनी किताब, ‘Veerappan: Chasing the Brigand” by K Vijay Kumar’ में दी थीं. 

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