जिनके कंधे ज़िम्मेदारियों तले दबे हुए हैं वो ‘अभी मैं मर नहीं सकता’ में ख़ुद को ज़रूर ढूंढ लेंगे

Kundan Kumar

यहां ग़रीब को मरने की जल्दी इसलिए भी है कि कहीं ज़िंदगी की कशमक्श में कफ़न महंगा न हो जाए.

बहुत कोशिश करने के बाद भी याद नहीं आया कि ये बहुमुल्य पंक्ति किसकी लिखी है, गुगल से भी निराशा हाथ लगी. ख़ैर, इसका सीधा सपाट अर्थ है कि ज़िंदगी ऐसी हो चुकी है कि ग़रीब इंसान मरना भी अफ़ॉर्ड नहीं कर सकता.

The Hindu

उभरते हुए गीतकार हुसैन हैदरी ने Spoken Fest 2019 में अपनी एक नज़्म ‘अभी मैं मर नहीं सकता’ सुनाई, जिसे श्रोताओं ने ख़ूब सराहा. नज़्म का मजमून है कि एक बेटा मरने की हालत में उसका इलाज़ कर रहे डॉक्टर से कहता है, ‘अभी मैं मर नहीं सकता, बहुत से काम बाक़ी हैं’.

जहां एक कवि की कल्पना में ग़रीब इंसान मरना अफ़ॉर्ड नहीं कर सकता, वहीं दूसरी ओर एक कलम लिखती है कि इंसान के पास मरने की फ़ूर्सत नहीं है, दोनों कवि अपने-अपने अंदाज़ से एक ही चित्र बनाना चाहते हैं.

वो मर नहीं सकता क्योंकि उसने अबतक ज़िंदगी नहीं जी है, वो मर नहीं सकता क्योंकि उसके कंधों पर ज़िम्मेदारियों का बोझ है.

वो मर नहीं सकता क्योंकि कोई उसकी ख़ातिर जीता है, हालांकि, वो मरना चहता है लेकिन वो मर नहीं सकता क्योंकि बहुत से काम बाक़ी हैं.

अंत में हुसैन हैदरी के बार मैं आपको बता दूं कि इनकी कविता हिंदुस्तानी मुस्लमान सोशल मीडिया पर ख़ूब पसंद की गई थी और ‘मुक्काबाज’ में हुसैन के लिखे गानों को भी सराहा गया था.

‘अभी मैं मर नहीं सकता’ मुकम्मल नज़्म आप यहां सुन सकते हैं.

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