भारत-पाक की सरहद पर है ऐसा रेलवे स्टेशन जिसने भगत, राजगुरु, सुखदेव की यादें संजो कर रखी हैं

Sanchita Pathak

“क्या ख़ूब हो गर इस दुनिया से 

सरहद का नाम ख़त्म हो जाए”

नदीम गुल्लानी के ये लफ़्ज़ कई लोगों की दिल की बात हैं. दुनिया कितनी ख़ूबसूरत होती अगर सरहदें ने होतीं? गिले-शिकवे न होते. दिलों में दूरियां न होती. 

Ferozepur

ख़ैर ताकत के नशे में चूर हुक्मरानों ने इंसानों के बीच दीवार खड़ी कर दी है. एक ही मिट्टी की संतानों को ग़ैर बना दिया है. मलाल तो रह जाएगा पर हक़ीक़त यही है कि बीते कल को बदला नहीं जा सकता.  

भारत-पाकिस्तान. कहने को एक पर फिर भी अलग. भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है हुसैनीवाला रेलवे स्टेशन जो साल में सिर्फ़ 2 दिन के लिए ही खुलता है. 

India Rail Info

23 मार्च और 13 अप्रैल…

इन दो दिनों पर भारतीय रेलवे, फ़िरोज़पुर से हुसैनीवाला तक आम लोगों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाती है. हर साल हज़ारों लोग शहीद स्मारक के दर्शन करने आते हैं.


23 मार्च को हर साल हुसैनीवाला में शहीदी मेला लगता है. मेले में शामिल होने के लिए पंजाब रोडवेज़ स्पेशल बस भी चलाती है.  

South Asian Daily

हुसैनीवाला कई घटनाओं का साक्षी है. ये उस घटना का भी साक्षी है कि किस तरह अंग्रेज़ों ने तीनों क्रान्तिकारियों को समय से पहले फांसी दी और उनका अंतिम संस्कार भी ढंग से नहीं किया. जनता के विरोध के भय से अंग्रेज़ों ने क्रान्तिकारियों की आधे जले शवों को सतलुज में बहा दिया था. आम जनता ने शवों को सतलुज से निकाल कर पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी था.  

Trip Advisor

1960 से पहले ये स्थान पाकिस्तान के अधीन था. जनता की आस्था को देखते हुए भारत सरकार ने इस स्थल को वापस लेने के बदले पाकिस्तान को फाजिल्का के 12 गांव और सुलेमानकी हेड वर्क्स दिए.


एक दौर था जब हुसैनीवाला से लाहौर के लिए ट्रेन चलती थी. अब वो रेल मार्ग बंद है. कहीं ट्रेवल पर जाएं या न जाएं, पर यहां ज़िन्दगी में एक दफ़ा हर किसी को जाना चाहिए.    

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