मैं हूं वो लड़का जो नवरात्री के दौरान कंजकों के साथ ‘लंगूर’ बनकर घर-घर जाया करता था

Maahi

नवरात्री शुरू होते ही घर का माहौल ही बदल जाता है. हमारे घर का भी यही हाल है. मम्मी सबेरे उठकर पूजा करने में लग जाती हैं. घर में बॉलीवुड गानों की जगह आरती सुनाई देती है. हमारे जैसे नास्तिक भी आस्तिक हो चले हैं. प्याज की टोकरियां एक दूसरे का मुंह ताक रही हैं तो बेचारा नॉनवेज कोमा में पड़ा है. घर से बाहर निकलो तो हर जगह नवरात्री के सामानों से सजी दुकानें दिख रही हैं. मंदिरों की रौनक देखने लायक है. 

amarujala

सच कहूं तो नवरात्री शुरू होते ही मुझे बचपन के दिन याद आने लगते हैं. हम उस वक़्त व्रत तो नहीं रखते थे, लेकिन पूरे नौ दिन ख़ूब मस्ती करते थे. स्कूल से घर लौटते ही बढ़िया-बढ़िया पकवान खाने को मिलते थे. ख़ासकर अष्टमी और नवमी के दिन तो घर में अलग ही रौनक होती थी. नवरात्री के दौरान हमारे उत्तराखंड में भी कंजकों को खिलाने का रिवाज है. 

lokmatnews

नवरात्री को लेकर मेरी यादें हैं कुछ ख़ास 

हां मैं वो बच्चा हूं जिसे मोहल्ले की आंटियां अपने घर नौ कंजकों के साथ ‘गणेश’ बनाकर ले जाया करती थीं. हमारे उत्तराखंड में उसे गणेश कहते हैं, लेकिन कई राज्यों में उसे ‘लंगूर’ कहते हैं. मेरी उम्र उस वक़्त करीब 4-5 साल की रही होगी. शुरू-शुरू में तो मुझे ‘गणेश’ बनकर जाने में अच्छा लगता था, क्योंकि हर घर से पैसे जो मिल जाते थे. मोहल्ले का एक भी घर ऐसा नहीं होता था, जहां हम जाते नहीं थे. शाम होते-होते अच्छे खासे पैसे इकट्ठे हो जाते थे. कुछ लोग कंजकों को खिलौने भी दिया करते थे. इसलिए भी मैं कंजकों के साथ चला जाया करता था. 

punjabkesari

हर साल मोहल्ले के सारे बच्चे नवरात्री का ही इंतज़ार किया करते थे. इस दौरान हमारी बातें भी कुछ इस तरह की हुआ करतीं थीं. मैंने तो पिछले साल 50 रुपये कमाए थे. तूने कितने कमाए थे? मैं तो इस साल सारे पैसे गुल्लक में डाल दूंगा. फिर पापा हमें चिड़ियाघर घुमाने ले जाएंगे.   

dainiksaveratimes

हम सभी बच्चे बड़े हो रहे थे, लेकिन मोहल्ले की आंटियों की नज़र में मैं अब भी बच्चा ही था. वो हर साल नवरात्री के दौरान अष्टमी और नवमी के दिन कंजकों के साथ मुझे भी ‘गणेश’ बनाकर अपने घर ले जाया करती थीं. जब मैं कंजकों के साथ ‘गणेश’ बनकर लोगों के घर जाता था तो मेरे दोस्त मुझे जय श्री गणेश… जय श्री गणेश… कहकर चिढ़ाया करते थे. इसी डर से मैंने जाना ही छोड़ दिया था, लेकिन मोहल्ले की आंटियों को कौन समझाए.  

sarita

समय बीतता गया. मैं कब गणेश से हनुमान बन गया पता ही नहीं चला. अब मोहल्ले की आंटियों ने मुझे ‘गणेश’ बनाना छोड़ दिया. फिर मम्मी ने मुझे एक नईं ज़िम्मेदारी दे दी. ज़िम्मेदारी ये थी कि मुझे हर साल नवरात्री के दौरान मम्मी के लिए कंजकों का अरेंजमेंट करना होगा. कंजक जब तक हमारे घर नहीं आ जाते, मैं उनके पीछे लगे रहता था. आज भी जब मैं कंजकों के साथ आए उस ‘गणेश’ को देखता था तो मुझे ख़ुद की याद आने लगती है.  

सच कहूं तो बचपन की वो नवरात्री आज भी बहुत याद आती है. जब हम नवरात्री के दौरान दोस्तों के साथ रामलीला देखने, माता के जागरण में भजन सुनने, दुर्गा पूजा के पंडाल और मेलों में घूमने जाया करते थे. 

आपको ये भी पसंद आएगा
बेवफ़ा समोसे वाला: प्यार में धोखा मिला तो खोल ली दुकान, धोखा खाये लवर्स को देता है डिस्काउंट
जानिये दिल्ली, नई दिल्ली और दिल्ली-NCR में क्या अंतर है, अधिकतर लोगों को ये नहीं मालूम होगा
जानिए भारत की ये 8 प्रमुख ख़ुफ़िया और सुरक्षा जांच एजेंसियां क्या काम और कैसे काम करती हैं
मिलिए गनौरी पासवान से, जिन्होंने छेनी व हथोड़े से 1500 फ़ीट ऊंचे पहाड़ को काटकर बना दीं 400 सीढ़ियां
ये IPS ऑफ़िसर बेड़िया जनजाति का शोषण देख ना पाए, देखिए अब कैसे संवार रहे हैं उन लोगों का जीवन
अजय बंगा से लेकर इंदिरा नूई तक, CEO भाई बहनों की वो जोड़ी जो IIM और IIT से पास-आउट हैं