कुछ दिनों पहले एक Cousin के बेटे से बात हो रही थी, 4-5 साल की उम्र यानी सवालों का ज़खीरा.
वैसे बच्चे की बात न लगनी नहीं चाहिए, पर सचमुच लगा मानो किसी ने जले पर सफ़ेद, काला नमक और कश्मीरी मिर्च और हरी मिर्च सब साथ में बुरक दिया हो!
क्यों नहीं होती, इसका जवाब किसी भी कॉरपोरेट सरताज ने आज तक नहीं दिया.
बचपन में मम्मी-पापा कहते थे, पढ़ाई पूरी कर लो, एक बार नौकरी लग गई तो मज़े करना. पर हम ठहरे अति बेवकूफ़, मम्मी पापा को कितनी बार मज़े करते देखा था? जो बड़े होकर हम कर लेंगे?
जब से नौकरी लगी है, तब से गर्मी की छुट्टियां काम करते ही बीतती हैं. आम भी अब शेक के रूप में ही खाते हैं (अच्छे आम ख़रीदना एक कला है), न गर्मी के दोपहरी की वो नींद है और न ही रसना और रूह अफ़्ज़ा के Jug और न ही Cousins के साथ वो गांव की मस्ती.
होमवर्क तो आख़िरी 2 दिन में ही पूरा होता था… कभी भी गर्मी की छुट्टियों का होमवर्क छुट्टी की शुरुआत में ख़त्म नहीं हुआ. मुझे लगता है टॉपर्स ही छुट्टियों के शुरुआत में होमवर्क पूरा करते होंगे!
बड़े होने का मतलब ये होता है कि ज़िन्दगी के सारे अच्छे लम्हें पीछे छूट जाए? ऐसा तो नहीं होना चाहिए.