चाहे हम कितने भी हाईटेक क्यों न हो जायें, लेकिन कैरम और लूडो का आज भी कोई मुक़ाबला नहीं है

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इंसान सब कुछ भूल सकता है लेकिन अपने बचपन की यादों को कभी नहीं भूल सकता है. नब्बे के दौर में हमारे मनोरंजन के भले ही कुछ सीमित साधन हुआ करते थे. लेकिन जो भी थे वो बेहद शानदार थे. चाहे टीवी पर शक्तिमान देखना हो या फिर WWF की फ़ाइट हम सभी भाई-बहन बड़े चाव से देखा करते थे. जब भी पढ़ाई से खाली समय मिलता था आस-पास के बच्चों के साथ लूडो या फिर कैरम खेलने लगते थे. आज के इस सोशल मीडिया के दौर की तरह नहीं कि एक ही घर में रहने के बावजूद हर सदस्य आपस में बात करने के लिए भी Whatsapp का इस्तेमाल करता है.

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आज मैं अपने बचपन की एक ऐसी ही याद आपके साथ शेयर करने जा रहा हूं. जब मैंने पहली बार किसी को कैरम खेलते हुए देखा था.

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90 का दौर था मैंने स्कूल जाना शुरू ही किया था. स्कूल से घर लौटते वक़्त देखता था कि रोड किनारे एक दुकान के पास हमेशा भीड़ लगी रहती थी. मैं उस समय बेहद शर्मीला था इसलिए भी बड़ों के बीच जाने से डरता था. मैं उस दुकान के पास इसलिये भी नहीं जाता था क्योंकि वहां पर ज़्यादातर आवारा किस्म के लड़के होते थे. कई बार वहां जाने की हिम्मत भी जुटाई, लेकिन ये सोचकर पैर पीछे खींच लेता था कि कहीं किसी देख लिया तो घर में बता देगा.

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ऐसे कई दिन, महीने बीत गए, एक दिन मैंने अपने एक दोस्त से पूछ ही लिया कि वहां पर होता क्या है? तब उसने बताया कि वहां पर बड़े लड़के कैरम खेलते हैं. इसके साथ ही उसने एक हिदायत भी दे डाली कि वहां मत जाना वो लोग मारेंगे तुझे. लेकिन मेरे मन में ये हमेशा से था कि मैं एक बार देखने ज़रूर देखूंगा कि आख़िर वो लोग कैरम खेलते कैसे हैं.

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एक दिन मैं हमेशा कि तरह स्कूल से घर लौट रहा था फिर वही शोर सुनाई दिया, शोर सुनकर मैं भी उत्साहित हो गया और सोच लिया कि आज तो जाकर देखना ही पड़ेगा. कुछ देर इधर-उधर देखने के बाद मैं हिम्मत जुटाकर उस दुकान के पास चला गया. आस-पास देखा तो सारे बड़े-बड़े लड़के खड़े थे, मैं छोटा सा उनके बीच में घुसकर उन लोगों को कैरम खेलते हुए देखने लगा. वो सब के सब इतने शानदार तरीके से कैरम खेल रहे थे कि मेरा भी मन कर रहा था, काश! मुझे भी इतना अच्छा खेलना आता.

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मुझे बचपन से ही क्रिकेट खेलने का बेहद शौक था इसलिए दिन भर घर से बाहर रहता था. घर लौटने पर तबियत से धुनाई होती थी. इसी चक्कर में मेरे पापा ने घर में एक कैरम बोर्ड लाकर रख दिया ताकि मैं बाहर खेलने न जा सकूं. उस समय कैरम, लूडो, सांप-सीढ़ी और कॉमिक्स हमारे खेलने के मुख़्य साधन हुआ करते थे. लेकिन 90 का दौर ख़त्म होते-होते इनकी जगह वीडियो गेम्स ने ले ली.

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वीडियो गेम्स बच्चों के बीच कदर घर कर गया कि हम लूडो और कैरम को कहीं पीछे भूल गए. मारियो और कॉन्ट्रा ने पाशा और क़्वीन को हमेशा के लिए भुला दिया. जहां देखो बच्चों के बीच वीडियो गेम्स के ही चर्चे होने लगे. कभी हाथ वाले वीडियो गेम्स से खेलते थे, तो कभी रिमोट वाले गेम्स खेलने लगे. इस बीच कैसेट वाले वीडियो गेम्स भी आने लगे थे. हम उसको टीवी से कनेक्ट करके भी खेला करते थे.

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समय के साथ इसका भी विस्तार हुआ. हाथ और मशीन वाले वीडियो गेम्स की जगह प्ले स्टेशंस और गेमिंग ज़ोन ने ले ली. लेकिन आज अधिकतर लोग अपने मोबाइल पर ही तरह-तरह के गेम्स खेल लेते हैं. रही बात लूडो और कैरम की तो अब इनके भी App आ गए हैं, जो ऑनलाइन खेले जाने लगे हैं. लेकिन हाथ से खेले जाने वाले लूडो और कैरम की बात ही अलग थी.

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वीडियो गेम्स के दौर में भी हम लूडो और कैरम को मिस किया करते थे और आज स्मार्टफ़ोन्स के ज़माने में भी कर रहे हैं. आज जब कभी भी हमें कैरम बोर्ड पर खेलने का मौक़ा मिलता है, तो हम बड़े चाव से खेलते हैं. लेकिन लूडो जब तक चार लोगों के साथ न खेला जाए, तो मज़ा ही नहीं आता. जहां कहीं भी लोग बोर्ड पर कैरम खेलते दिखते हैं, बचपन की उन सुनहरी यादों को फिर से याद करने लगते हैं.

याद आ गए न आपको भी अपने बचपन के वो ख़ूबसूरत दिन. अगर आपके पास भी हैं ऐसे ही मज़ेदार यादें तो हमारे साथ शेयर करें. . 

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