इरुला: तमिलनाडु की वो जनजाति, जो प्राचीन समय से लोगों को दे रही हैं नई ज़िन्दगी

Akanksha Tiwari

‘इरुला जनजाति’ तमिलनाडु और केरल के बॉर्डर पर रहने वाला वो समुदाय, जो प्राचीन समय से लोगों की ज़िंदगियां बचाता आ रहा है. इस जनजाति को पारंपरिक हर्बल दवा और उपचार प्रथाओं में महारत हासिल है. इरुला ‘वैद्यर्स’ में इलाज करने वाली अधिकतर महिलाएं हैं, जो करीब 320 औषधीय जड़ी बूटियों का उपयोग कर, उपचार का प्रशिक्षण लेती हैं.

किस तरह के उपचार में हासिल है महारत?

‘इरुला जनजाति’ को सांप पकड़ने में एक्सपर्ट माना जाता है. ये ज़हरीले से ज़हीरले सांप को भी आसानी से अपने वश में कर सकते हैं. इसके अलावा ये सांप के काटने पर फैलने वाले ज़हर को बेअसर करने वाली औषधी बनाती है, जिसके इस्तेमाल से अब तक कई लोगों की जान बचाई जा चुकी है. रिपोर्ट के अनुसार, 20वीं शताब्दी में इन्होंने कई सापों का शिकार कर, हज़ारों Irulas ने कई लोगों को नया जीवन दान दिया.

1972 में हो गए थे बेरोज़गार

दवा और उपचार के साथ Irulas को सांप पकड़ने का परिक्षण भी दिया जाता है. वहीं 1972 में कोर्ट ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित करते हुए, किसी भी जानवर के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद इनके पास आय का कोई स्रोत नहीं बता था.

Romulus Whitaker ने 50 वर्षों तक किया था Irulas के साथ काम

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भारतीय Herpetologist और Wildlife Conservationist, Romulus Whitaker ने लगभग 50 वर्षों तक इस जनजाति के साथ काम किया. इस दौरान उन्होंने इस जनजाति के कौशल और उनके सामने आने वाली समस्यों के बारे में जाना. इसके बाद 1978 में उन्होंने चेन्नई के बाहर Irula Snake-Catchers नामक सहकारी समिति स्थापित करने का फ़ैसला किया, जहां उनके टैलेंट का उपयोग सांप के संरक्षण और सांप वेनोम के उत्पादन के लिए किया गया. Whitaker के इस कदम के बाद सांप काटने के उपचार में क्रांति ला दी और देश के सभी अस्पतालों में एंटी-वेनम सप्लाई किया जाने लगा.

आसान नहीं होता है ये काम

सांप काटने से सालाना लगभग 30,000 से 40,000 लोग मर जाते हैं, जिसमें 25 प्रतिशत भारतीय होते हैं. वहीं इरुला जनजाति सांप के ज़हर से जो सीरम तैयार करती है, उसे बनाने प्रक्रिया बिल्कुल भी आसान नहीं है. इसके लिए पहले वो बड़ी होश्यिारी से ट्रैक और जंगलों से कम से कम एक से तीन ज़हरीले सांप पकड़ते हैं. ये सापं व्यस्क और हेल्दी होते हैं. इन सापों को करीब तीन हफ़्ते सुरक्षित और कड़ी निगरानी में रखा जाता है. इसके बाद जब उन्हें जंगलों में वापस छोड़ दिया जाता है.

यही नहीं, फ़्लोरिडा फ़िश एेंड वाइल्डलाइफ़ कंजरवेशन प्रशासन ने पार्क में आतंक मचा रहे अजगरों से निजात पाने के लिए इरुला जनजाति से मदद मांगी थी. किसी की ज़िंदगी बचाने से अच्छा और नेक काम कोई नहीं होता और महान काम के लिए ‘इरुला जनजाति’ की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है.

Source : TBI 

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