एशियन पेंट्स देश की सबसे बड़ी पेंट्स कंपनियों में से एक है. भारत के 53 फ़ीसदी पेंट्स के मार्केट पर इसका कब्ज़ा है. यही नहीं ये एशिया की तीसरी सबसे बड़ी पेंट बनाने वाली कंपनी है. 16 देशों में इसकी फ़ैक्ट्रियां लगी हुई हैं.
एशियन पेंट्स का इतिहास 78 साल पुराना यानी आज़ादी से भी पहले का है. ये कंपनी कैसे भारत में पेंट की दुनिया की बेताज़ बादशाह बनी उसकी स्टोरी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
इस तरह हुई शुरुआत
एशियन पेंट्स का इतिहास महात्मा गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ा है. एक तरफ देश के नागरिक इस आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे तो दूसरी तरफ चार लोग एक गैराज में बैठकर इस कंपनी की नींव रखने की तैयारी कर रहे थे. ये वो दौर था जब अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने देश में विदेश से पेंट आयात करने पर बैन लगा दिया था. ऐसे में लोगों के पास कुछ गिने-चुने पेंट को ख़रीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
इस विपदा को अवसर बनाते हुए चार दोस्त चंपकलाल चोकसी, चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी, और अरविंद वकील ने 1942 में मुंबई में एशियन पेंट्स एंड ऑयल प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. शुरुआती दौर में कंपनी को घर-घर तक पहुंचाने के लिए चारों ने ज़मीनी स्तर पर काफ़ी मेहनत की. उन्होंने लोकल लोगों से संपर्क कर उन्हें अपनी कंपनी के पेंट के छोटे पाउच बेचने के लिए प्रोत्साहित किया.
1952 में किया था 23 करोड़ रुपये का कारोबार
तब कंपनी सिर्फ़ 5 रंग सफ़ेद, काला, पीला, लाल और हरे रंग का ही उत्पादन करती थी. 1942 में शुरू की गई इस कंपनी ने 1945 में तब के समय में 3.5 लाख रुपये का बिज़नेस किया था. उसके 7 साल बाद एशियन पेंट्स ने वर्ष 1952 में 23 करोड़ रुपये का कारोबार किया था. उस ज़माने में ये बहुत बड़ी रकम थी.
कैसे बना इसका मैस्कॉट
लोगों की पसंदीदा पेंट कंपनी बन चुकी एशियन पेंट्स ने इसके बाद ख़ुद को लोगों से जोड़े रखने के लिए एक नई तरकीब निकाली. 1954 में कंपनी ने फ़ेमस कार्टुनिस्ट आर.के. लक्षमण से एक कार्टून बनवाया और लोगों से इसका नाम रखने की प्रतियोगिता की घोषणा की. लोगों ने जमकर इसमें हिस्सा लिया और इसके मैस्कॉट गट्टू का नाम तय किया गया. इस नाम के लिए तब 47 हज़ार लेटर्स आए थे. इसे जीतने वाले को 500 रुपये का इनाम भी दिया गया था.
मैस्कॉट बनने के बाद कंपनी ने इसे अपने फ़ेमस डिस्टेंपर ब्रैंड Tractor से जोड़ दिया और “Don’t Lose Your Temper, Use Tractor Distemper” की टैगलाइन के साथ इसे मार्केट में उतार दिया. ये डिस्टेंपर देखते ही देखते लोगों की पहली पसंद बन गया. इसके बाद कंपनी महाराष्ट्र के भांडुप में अपना ख़ुद का पेंट का प्लांट लगा लिया.
1967 में विदेश में लगाया था पहला प्लांट
1957-67 के बीच में कंपनी ने कई विदेशी कंपनियों के साथ काम किया. लगातार मिल रही सफ़लता के बाद कंपनी ने 1967 में फ़िजी में पहला विदेशी प्लांट लगाया. इस तरह धीरे-धीरे मुंबई की गलियों से निकलकर ये पेंट कंपनी आज दुनिया भर में अपना डंका बजा रही है. आज एशियन पेंट्स हज़ारों कलर, थीम, टेक्सचर और शेड के पेंट्स का व्यापार कर रही है. इसमें किफ़ायती से लेकर महंगे पेंट्स तक शामिल हैं. एक्सटीरियर से लेकर इंटिरियर तक, दीवार से लेकर लकड़ी तक का पेंट कंपनी बनाती है. यही नहीं इसने दूसरे बिज़नेस में भी हाथ आज़माया है. बाथरुम फ़िटिंग और किचन फ़िटिंग्स उन्हीं में से एक है.
क्या है सफ़लता का राज़
एशियन पेंट्स की सफ़लता का राज़ है वक़्त के साथ चलना. इसने क्वालिटी के साथ ही मार्केट के ट्रेंड पर भी अपनी मज़बूत पकड़ बनाए रखी. फिर चाहे बात पेंट के लिए बनाए गए पहले टीवी कमर्शियल की हो या फिर अपनी ख़ुद की वेबसाइट लॉन्च करने की. कंपनी हमेशा वक़्त के साथ तो कभी-कभी वक़्त से आगे रही है.
इन दिनों एशियन पेंट्स फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर भी है. यहां पर इनके लाखों फ़ॉलोवर्स मौजूद हैं. समय-समय पर ये कई तरह के कैंपेन भी करती रहती है. दीपिका पादुकोण वाला इंडोर पॉलुशन से लड़ने वाला Royale Atmos पेंट का एड तो याद ही होगा. इसने एशियन पेंट्स की तरफ लाखों लोगों का ध्यान खींचा था. इसने संदेश दिया था कि ये पेंट सबके लिए सुरक्षित भी है.
जीते हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार
साल 2004 में कपंनी Forbes की Best Under A Billion Companies की लिस्ट में शामिल हुई थी. यही नहीं British Safety Council ने इसे ‘Sword of Honour’ के पुरस्कार से भी सम्मानित किया था. एशियन पेंट्स देश की उन चुनिंदा कंपनियों में से एक है जो आज़ादी के पहले से शुरू हुई और आज भी सक्रीय है. यही नहीं ये दुनिया की सबसे अधिक डिमांड(पेंट) में रहने वाली कंपनियों में से भी एक है.
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