भारत का सबसे कम उम्र का Single Father बना ये शख़्स, जानिये कैसी थी बेटे से उनकी पहली मुलाक़ात

Ishi Kanodiya

ये रिश्तों का एहसास भी कितना अजीब होता है. अचानक किसी अजनबी शख़्स को देख कर ऐसा लगता है कि उसको बरसों से जानते हैं. मन एक दम उनकी ओर खिंचा चला जाता है.

एक ऐसा ही प्यारा सा एहसास और जुड़ाव आदित्य को हुआ था जब वो पहली बार अवनीश को मिले थे. 

आदित्य तिवारी तक़रीबन पांच साल पहले अवनीश से एक अनाथालय में मिले थे. अवनीश उस समय 5 महीने का था. 

कोई उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा था. मैं अपने आप को रोक नहीं पाया इसलिए मैंने जाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया – वो हंसा और हम बस एक-दूसरे से जुड़ गए. मैंने वार्डन से पूछा कि इन बच्चों का क्या होने वाला है. उसने कहा कि अवनीश को छोड़ कर बाकी सब को गोद ले लिया जाएगा क्योंकि अवनीश ‘पागल’ था, उसे डाउन सिंड्रोम था और वैसे भी वो कुछ वर्षों में मरने वाला था.

उसने पूछा कि क्या अनाथालय उसे अवनीश को गोद लेने देगा इस पर वो लोग हंसने लगे और उसे एक कुंवारा बताया. 30 से कम उम्र के लोगों को गोद लेने का कोई अधिकार नहीं होता. 

आदित्य ने हार नहीं मानी और अवनीश से मिलने जाते रहे. यहां तक कि उनके स्वास्थ्य और उपचार के बारे में भी जानकारी लेते रहे. मगर वहां के लोग आदित्य का बिलकुल साथ नहीं दे रहे थे. 

अनाथालय ने अवनीश को भोपाल भेज दिया था लेकिन इससे तिवारी का अवनीश से मिलना-जुलना बंद नहीं हुआ. आदित्य हर सप्ताह के अंत में अवनीश से मिलने भोपाल जाता था. इसी बीच आदित्य ने देश में गोद लेने के सभी क़ानूनों के बारें में अच्छे से शोध किया और मदद के लिए मंत्रियों और सार्वजनिक हस्तियों को ख़त भी लिखा. 

मैं बाल कल्याण परिषद के संपर्क में भी आया, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास अवनीश को लेकर कोई भी रिकॉर्ड नहीं है. मैंने महसूस किया कि अनाथालय में कई और ग़ैर-दस्तावेज़ी बच्चे थे. कुछ गड़बड़ था – इनमें से बहुत से बच्चे गायब हो रहे थे और मुझे संदेह था कि वो बाल तस्करी और अंग तस्करी के शिकार थे. 

तिवारी पुलिस के पास गया और याचिका भी दर्ज करवाई. इस पूरे मामले से दूर रहने के लिए तिवारी को धमकी भरे कॉल भी आने लगे, लेकिन उसने हार नहीं मानी. 

चीज़ें तब सही हुईं जब कल्याण मंत्री का जवाब आया. 

इसने सब कुछ तेज कर दिया, और जल्द ही उस अनाथालय को बेनकाब कर उसे प्रतिबंधित कर दिया गया. 

आखिरकार, 11 महीने के प्रयासों के बाद, आदित्य को अवनीश की कस्टडी दी गई. 

ये मेरे जीवन का सबसे खुशी का पल था. मैं अकेला रहता था इसलिए मैंने अपने घर को बेबी-प्रूफ़ किया. डायपर बदलने से लेकर डाउन सिंड्रोम बच्चों की देखभाल करने तक की सारी चीज़ें समझने के लिए मैंने रातें बिता दी.

 जहां एक तरफ लोग अवनीश जैसे बच्चों से दूर भागते हैं वहीं आदित्य ने उसे गोद लेकर समाज में एक उदहारण पेश किया है  

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