हरिवंश राय बच्चन की कविताओं से ली गयी ये पंक्तियां, निराशा भरे मन के लिए आशा की किरण सी हैं

Rashi Sharma

साहित्य हिंदी, अंग्रजी उर्दू या किसी भी भाषा का क्यों न हो, उसकी गहराई को कभी नापा नहीं जा सकता है. साहित्य उस महासागर की तरह है जिसका न कोई और है और न ही कोई छोर. इसमें जितना अंदर जाओगे, ये उतना ही और गहरा होता जाएगा. और अगर बात करें हिंदी साहित्य की तो हमारे देश में कई साहित्यकार और कवि हुए हैं, जिन्होंने विश्व पटल पर हिंदी को सम्मान दिलाया है. ऐसी ही एक शख़्सियत हैं हरिवंश राय बच्चन, जो छोटी से छोटी चीज़ों में भी कोई न कोई कविता ढूंढ लेते थे.

‘जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला

कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ

जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला.

जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा

मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,

हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला.’

दोस्तों ऊपर लिखी गई पंक्तियां हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखे गए काव्य ‘जीवन की आपाधापी’ से ली हैं.

भले ही वो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी प्रेरणादायक कवितायें आज भी लोगों को जीने की नई राह दिखा रही हैं. अगर बात हो उनके द्वारा लिखी गई ‘मधुशाला’, ‘जीवन की आपाधापी’, ‘चड़िया का घर’, जैसे सुन्दर कविताओं की तो वो निराशा भरे मन में एक नया उत्साह भरने का काम आज भी कर रही हैं.

आज हम लेकर आये हैं इस महान कवि की कुछ कविताओं के कुछ अंश:

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तो दोस्तों आपको कैसी लगी ये पंक्तियां कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.

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