हाथ-पैर गंवा दिेए पर नहीं मानी हार और बनाई अपनी ज़िन्दगी, प्रेरणादायक है महेंद्र प्रताप की कहानी

Sanchita Pathak

हम कई बार अपनी ख़ामियों को ख़ुद पर हावी होने देते हैं और ख़ुद को कोसते रहते हैं. अपनी ख़ामियों को कमज़ोरी बना लेते हैं. कमज़ोरियों से इतने परेशान हो जाते हैं कि एक छोटी सी बात भूल जाते हैं, ‘दृढ़ इच्छाशक्ति से कुछ भी हो सकता है.’

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी कमज़ोरी को ही ताक़त बना लेते हैं. ऐसे ही शख़्स हैं, राजा महेन्द्र प्रताप.  

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एक दुर्घटना में प्रताप ने 5 साल की उम्र में अपने हाथ और पैर गंवा दिये थे. इसके दुर्घटना के बाद 10 साल तक प्रताप को घर से बाहर नहीं निकलने दिया गया. आज वो न सिर्फ़ काम करते हैं बल्कि पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं.

The Better India कि रिपोर्ट के मुताबिक़, स्कॉलरशिप मिलने के बाद प्रताप ने फ़ाइनेंस से MBA किया. 

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 जब भी प्रताप बाहर जाते हैं, रास्ता क्रॉस करते हैं लोग उन्हें पलटकर देखते हैं, लोग को प्रताप की क़ाबिलियत पर यक़ीन नहीं होता. प्रताप अपने सारे कम ख़ुद से करने में सक्ष्म हैं.

हैदराबाद के प्रताप ने 6 से 16 साल की उम्र तक स्कूल की पढ़ाई नहीं की. इन सालों में उन्होंने घर से बाहर क़दम नहीं रखा और इसके बावजूद उन्होंने ONGC, अहमदाबाद में नौकरी हासिल की. 
मध्य वर्गीय परिवार से होने के बावजूद प्रताप के कपड़े सिलने के लिए एक दर्ज़ी घर आता था. प्रताप जब बीमार पड़ते तो डॉक्टर भी घर पर ही आते. प्रताप की 3 बड़ी बहनें उनके साथ खड़ी रहीं और उन्हें हार न मानने को प्रेरित किया. किताबें पढ़कर प्रताप ने ज्ञान अर्जित किया. घर पर ही रहकर पढ़ाई करके प्रताप ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास की. प्रताप ने अपना B.Com और MBA हैदराबाद की ओसमानिया यूनिवर्सिटी से पूरा किया.

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प्रताप को नौकरी के तो कई फ़ोन आते पर इंटरव्यू में उन्हें देखकर लोग नौकरी नहीं देते थे. प्रताप को सबसे पहले National Housing Bank में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी मिली, इसके बाद उन्होंने ONGC अहमदाबाद जॉइन किया, प्रताप के पिता का नज़रिया भी प्रताप के प्रति बदला.

प्रताप चल नहीं पाते थे तो वो रेंगते थे और ऐसा करते हुए उन्होंने कई बार अपने हाथ और पैर ज़ख़्मी भी किये. धीरे-धीरे उन्होंने चलना सीखा. मुंह और टखनों की मदद से उन्होंने अपना काम करना सीखा. अब प्रताप कुशलतापूर्वक कंप्यूटर भी काम करना जानते हैं.  

Cross Barriers

प्रताप ने एक मोची के साथ बैठकर, अपने लिए जूते बनवाए. पहले तो कोई मोची तैयार नहीं हो रहा था बहुत ढूंढने के बाद प्रताप के लिए जूते बनाने को एक मोची तैयार हुआ.

प्रताप को दिल्ली के ‘नेशनल सेन्टर फ़ॉर प्रमोशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट फ़ॉर डिसेब्ल्ड पीपल’ से 1000 रुपये की स्कॉलरशिप मिली थी और इससे उन्होंने फ़ाइनेंस में पढ़ाई पूरी की थी. आज प्रताप अन्य दिव्यांग बच्चों को स्कॉलरशिप देते हैं.

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