अपने अल्फ़ाज़ों से कभी आंखों में आंसूं, तो कभी होठों पर मुस्कान ले आने वाले गीतकार हैं इरशाद कामिल

Rashi Sharma

आज के दौर में जहां इंग्लिश शब्दों या रैप के साथ गाने बन रहे हैं, जिनके आधे बोल तो समझ ही नहीं आते, उस दौर में एक गीतकार ऐसा भी है, जिसके बोल मन को शान्ति और सुकून पहुंचाते हैं. इस गीतकार ने ‘तमाशा’ का ‘तुम साथ हो या न हो क्या फ़र्क है… ‘, ‘रांझणा’ का ‘मेरी हर होशियारी बस तुम तक…’ जैसे कई अर्थपूर्ण और बेहतरीन गाने लिखे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं आज के ज़माने के गीतकार इरशाद कामिल की.

इरशाद कामिल द्वारा लिखे गए गानों की फ़ील ही कुछ अलग है, मानो कि वो हमारी और आपकी ज़िन्दगी की ही बात कर रहे हैं. उन्होंने ‘मन सात समंदर डोल गया…’ और ये दूरियां जैसे गाने लिखे हैं, तो उन्होंने ही थिरकने पर मजबूर कर देने वाले गाने जैसे ‘मौजा ही मौजा’ हो और ‘कतिया करूं, कतिया करूं’ भी लिखा है. आज के दौर में अच्छे गीत लिखने वाले कम ही हैं, और उन कम गीतकारों में से ही एक हैं, इरशाद कामिल.

आज हम आपको उनके द्वारा लिखे कुछ गानों के बारे में बता रहे हैं.

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अगर आपने अभी तक इन गानों को नहीं सुना है, तो एक बार ज़रूर सुनियेगा, बार-बार सुनाने का मन करेगा.

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