भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव कारगिल युद्ध की, ये 10 शौर्य गाथाएं हर भारतीय याद रखेगा

Maahi

26 जुलाई, 1999 आज ही के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को हराकर जीत हासिल की थी. हमारे वीर सपूतों ने ऑपरेशन विजय को सफ़लतापूर्वक अंजाम देकर कारगिल के कई इलाकों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया था. कारगिल के इस युद्ध में हमारे करीब 527 जवान शहीद और 1300 से ज़्यादा जवान घायल हो गए थे. लेकिन कारगिल युद्ध हमेशा से ही उन वीर जवानों की शहादत के लिए जाना जाएगा, जो हंसते-हंसते देश के लिए कुर्बान हो गए.

आज भले ही हम उनको उनकी शहादत के लिए याद करते हों. क्या अपने कभी सोचा की युद्ध के दौरान इन शहीदों ने किन हालातों में अपनी जान की परवाह किये बिना देश की रक्षा की. दुश्मन की गोलियों ने भले ही इनकी जान ले ली हो, लेकिन अपने बुलंद हौसलों से ये वीर जवान करोड़ों हिन्दुस्तानियों के लिए एक जलती लौ छोड़ गए.

आज हम उन्हीं शहीद जवानों के अदम्य सहस और वीरता की कहानियों को आप तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं. जिसने इस देश के करोड़ों लोगों को प्रेरित किया है.

1- शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा

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मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने अदम्य सहस के दम पर कारगिल युद्ध में भारत को जीत दिलाई थी. 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया था. हम्प व राकी नाब जैसे इलाकों को जीतने के बाद विक्रम बत्रा को कैप्टन बनाया गया था. इसके बाद उनको श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 ऊंची चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा दिया गया. कई दिन तक दुश्मनों से लड़ने के बाद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को इस चोटी पर तिरंगा फ़हराया था.

इसके बाद उन्होंने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू किया. ये मिशन भी लगभग पूरा हो चुका था, तभी अचानक हुए एक विस्फोट में उनके सीनियर लेफ़्टिनेंट नवीन के दोनों पैर जख़्मी हो गए थे. इसके बाद जब कैप्टन बत्रा उनको बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे, तभी दुश्मन की एक गोली उनकी छाती में आ लगी और वो ‘जय माता दी’ कहते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए. कैप्टन विक्रम बत्रा ने इसी चोटी पर ‘ये दिल मांगे मोर’ स्लोगन बोला था.

2- शहीद कैप्टन अनुज नायर

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भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित कैप्टन अनुज नायर की शहादत को भी ये देश कभी भुला नहीं सकता है. मात्र 24 साल की उम्र में कैप्टन अनुज को टाइगर हिल्स सेक्टर की ज़िम्मेदारी दी गयी थी. इस सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों को खोने के बाद भी कैप्टन नायर ने अकेले दम पर मोर्चा संभाले रखा, जिसके चलते भारतीय सेना वापस इस चोटी पर कब्जा करने में सफ़ल रही। इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया.

Deccan Herald से बात करते हुए कैप्टन नायर के पिता ने उनके बचपन के एक किस्से को साझा करते हुए कहा कि-

‘जब अनुज  10वीं में पढ़ता था, तब एक सड़क हादसे में उसके घुटने में गंभीर चोट लग गयी थी, लेकिन उसने बिना एनेस्थीसिया के ही पैर में  22 टांके लगावाये थे. और जब उससे पूछा गया कि दर्द नहीं हो रहा है, तो वो बोला कि ‘दर्द दिमाग़ में होता है पैर में नहीं’.

3- शहीदों कैप्टन विजयंत थापर

नोएडा निवासी कैप्टन विजयंत थापर मात्र 22 साल की उम्र में देश के लिए शहीद हो गए. अपने परिवार की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए विजयंत सेना में भर्ती हुए थे. साल 2016 में उनके पिता कर्नल विजेंद्र थापर (सेवानिवृत्त) उस 16,000 फ़ीट ऊंचे पर्वत पर चढ़े थे, जिस पर उनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया था. इसके बाद उन्होंने कहा था कि कैप्टन विजयंत थापर जैसे लोग इस देश के लिए शहीद होने के लिए ही बने थे. मुझे अपने बेटे की शहादत पर गर्व है उनका ये बलिदान कई लोगों के लिए मिसाल बनेगा.

कैप्टन थापर जितना देश से प्यार करते थे उतना ही बच्चों से भी करते थे- 

‘कश्मीर की एक बच्ची रुखसाना के पिता को आतंकियों ने उसके सामने ही मार दिया था, जिससे उसकी आवाज़ चली गयी थी. एक दिन रुखसाना घर से दूर थी, तो उसे बुलाने के लिए रोबिन ने जोर-जोर से उसे पुकारा, रोबिन की आवाज सुनकर रुखसाना ने बोलकर प्रतिक्रिया देने की कोशिश की, ये सोचकर कि रोबिन वापस न चला जाए, ये बच्ची भी चिल्लाती और रोती हुई रोबिन की ओर दौड़ी. कैप्टन ने भी नम आंखों से बच्ची को सीने से लगा लिया. आवाज लौटने के बाद कैप्टन ने रुखसाना का स्कूल में दाखिला करवा दिया था. इसलिए उन्होंने अपने आख़िरी चिठ्ठी में रुखसाना की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी अपने पिता को सौंपी थी.’

4- शहीद कैप्टन मनोज पांडेय

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मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित कैप्टन मनोज पांडेय गोरखा पलटन के एक वीर जवान थे. ‘काली माता की जय’ बोलकर दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर भी लिखी गयी है. उन्होंने अपनी गोरखा पलटन के साथ दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से दुश्मन को खदेड़ दिया था. अपनी जांबाज़ी के कारण उन्होंने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए थे. दुश्मन की गोलाबारी में गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी वो आख़िरी सांस तक लड़ते रहे.

5- ग्रे‍नेडियर योगेंद्र सिंह यादव

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जवान ग्रे‍नेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने रणनीतिक दृष्टि के कारण ही भारत ने टाइगर हिल पर कब्ज़ा किया था. उन्होंने 4 जुलाई 1999 को करीब 16 हजार 500 फ़ीट की ऊंचाई वाले टाइगर हिल्स पर चढ़कर चार दुश्मनों को मार गिराया था. घायल होने के बाद भी उन्होंने ग्रेनेड फ़ेंककर दुश्मनों को खदेड़ दिया और टाइगर हिल्स पर भारतीय फ़ौज का परचम लहराया. इस दौरान योगेंद्र यादव के शरीर पर 19 गोलियां लगी थी, उन्हें मिलिट्री हॉस्पिटल ले जाया गया. करीब एक साल के बाद योगेंद्र पूरी तरह से स्वस्थ हुए. योगेंद्र को उनकी बहादुरी के लिए 15 अगस्त, 1999 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. योगेंद्र सिंह यादव आज भी भारतीय सेना में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं.

6- शहीद कैप्टन अमोल कालिया

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मरणोप्रांत वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन अमोल कालिया कारगिल युद्ध में पाक आतंकियों को खदेड़ते हुए शहीद हो गए थे. जब पाकिस्तानी सेना की ओर से घुसपैठ की गई, उस दौरान कैप्टन कालिया ने दर्जनों पाकिस्तानी सैनिकों को अकेले दम पर मार गिराया था. लेकिन इस लड़ाई में कैप्टन कालिया भी गंभीर रूप से घायल हो गए थे. घायल होने के बावजूद कैप्टन कालिया ने बैटल फ़ील्ड से हटने से इंकार कर दिया और लड़ाई जारी रखी. कैप्टन कालिया चौकी नंबर 5203 पर तिरंगा फहराने के बाद शहीद हो गए थे.

7- शहीद मेजर पद्मपाणि आचार्य

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मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित मेजर पद्मपाणि आचार्य को 28 जून 1999 को कंपनी कमांडर के रूप में दुश्मन के कब्ज़े वाली अहम चौकी को आज़ाद कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई. यहां दुश्मन न सिर्फ़ अत्याधुनिक हथियारों से लैस था, बल्कि उसने माइंस भी बिछाई हुई थीं. मगर बिना डरे और बिना घबराये मेजर पद्मपाणि की अगुवाई में उनकी टुकड़ी ने फ़ायरिंग और बम के गोलों की बौछार के बीच अपना अभियान जारी रखा. इस दौरान उनको कई गोलियां लग चुकी थीं, बावजूद इसकेवो आगे बढ़ते रहे और अदम्य साहस का परिचय देते हुए साहस के साथ पाकिस्तानियों को खदेड़ उस चौकी पर कब्ज़ा किया. इस मिशन को पूरा करने के बाद मेजर पद्मपाणि शहीद हो गए.

शहीद मेजर आचार्य की मां विमला आचार्य ने कहा कि 

‘मुझे अपने बेटे को खोने का दुख तो है, लेकिन देश-भक्त होने के नाते मुझे अपने बेटे की शहादत पर गर्व भी है. उसने मुझसे वादा लिया था कि अगर मैं लौटकर नहीं आया तो आप रोएंगी नहीं.’

8- लांस नाइक निर्मल सिंह

लांस नाइक निर्मल सिंह भी उन वीर शहीदों में से एक थे, जिन्होंने टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने के दौरान अदम्य साहस दिखाते हुए दुश्मन की सेना के कई जवानों को मार गिराया था. मगर उसी के बीच गोलाबारी में निर्मल सिंह शहीद हो गए थे. लांस नाइक निर्मल सिंह की शादी को सिर्फ़ 5 साल ही हुए थे, जब वो अपनी पत्नी और 3 साल के बेटे को छोड़कर कारगिल युद्ध के लिए निकले थे और फिर कभी लौटकर नहीं आये.

इस बहादुर सिपाही की पत्नी जसविंदर कौर ने आज भी पति की वर्दी को संभालकर रखा है.

‘ये ड्रेस मेरे पति की आख़िरी निशानी है और मेरा सहारा भी है. मैं इसे धोती हूं और नियमित रूप से प्रेस करके संभालकर रखती है. एक सच्चे सैनिक की ये वर्दी मेरे लिए एक उजाले की किरण की तरह है. मैंने अपने बेटे को भी एक सच्चे सैनिक के बेटे के रूप में सही रास्ते पर चलना सिखाया है.’

9. मेजर राजेश सिंह अधिकारी

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जब मेजर अधिकारी को कारगिल भेजा गया उनकी शादी को मात्र 10 महीने ही हुए थे. उस समय उनकी पत्नी किरण गर्भवती थी. मेजर राजेश को कारगिल की सबसे कठिन चोटी तोलोलिंग ऑपेरशन के लिए भेजा गया था. 4590 फ़ीट ऊंची इस चोटी पर कब्ज़ा कर पाना नामुमकिन था, लेकिन मेजर राजेश के सूझ-बूझ और अदम्य साहस के चलते उनकी टुकड़ी ने इस चोटी पर तिरंगा फहराया. इस दौरान देश ने इस वीर सैनिक को हमेशा के लिए खो दिया. उनके इस साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

ये हैं उनकी पत्नी की चिठ्ठी के वो चंद शब्द, जिसको मेजर राजेश सिंह अधिकारी कभी पढ़ ही नहीं पाए थे.

‘मैं एक बच्ची को जन्म दूंगी या बेटे को मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. आप वापस आते हैं, तो मुझे ख़ुशी होगी और अगर नहीं भी आये, तो मुझे एक शहीद की पत्नी होने पर गर्व होगा. इस ख़त के ज़रिये मैं आपसे वादा करती हूं कि मैं उसे न केवल कारगिल दिखाऊंगी, बल्कि आपकी तरह ही एक वीर सैनिक भी बनाउंगी.’

10. मेजर मरियप्पन सरवनन

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कारगिल युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण चोटी पर कब्ज़ा करने के दौरान मेजर मरियप्पन सरवनन शहीद हो गए थे. उनका शरीर मृत्यु के 41 दिन बाद बर्फ़ में दबा पाया गया था. बर्फ़ में जब भी भारतीय सैनिक अपने शरीर को गर्म रखने के लिए आग जलाते पाकिस्तानी सेना उन पर अटैक कर देती. इस दौरान दुश्मनों से लड़ते हुए मेजर सरवनन शहीद हो गए.

कारगिल जाने से पहले की मुलाक़ात को लेकर उनकी मां ने बताया कि-

‘वो कारगिल युद्ध से पहले घर आया था, अपने किसी दोस्त की शादी में शामिल हुआ था. इस दौरान वो हमारे साथ डेढ़ महीना तक रहा. आख़िरी बार जब उसने फ़ोन किया तो बताया कि उसकी पोस्टिंग दूसरी जगह हो गयी है, लेकिन ये नहीं बताया कि कारगिल हुई है.’

कारगिल में शहीद हुए सभी वीर शहीदों को हमारा शत-शत नमन. 

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