एक गांव, जहां मुसलमान लेते हैं ‘रथ यात्रा’ में हिस्सा और हिन्दू मनाते हैं मुस्लिम त्यौहार

Maahi

देशभर में आये दिन हिन्दू-मुस्लिम विवाद की ख़बरें सुनने को मिलती रहती हैं. कुछ लोग अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए एक समुदाय को दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ भड़काने का काम करते हैं. टीवी चैनल हो या सोशल मीडिया हर जगह धार्मिक उन्माद फैलाया जाता है. इसी बीच केरल से एक ऐसी ख़बर आयी है जो दिल को सुकून देती है. केरल के इस गांव में आज भी हिन्दुओं की ‘रथ यात्रा’ में मुस्लिम बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, वहीं हिन्दू भी मस्ज़िद में होने वाले त्यौहार के दिन मुस्लिम समुदाय की मदद करते हैं. सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने और मंदिर या मस्ज़िद तोड़ने वालों को इस गांव के लोगों से लेनी चाहिए.

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उद्यावर के हबूब गांव के श्री उदयवरा अरासुमंजूषनाथ मंदिर में हर साल एक विशेष त्यौहार का आयोजन होता है. परम्परा के मुताबिक़, इस दौरान 100 मीटर की दूरी पर स्थित जमाथ मस्ज़िद के 1000 सदस्यों को भी आमंत्रित किया जाता है. इस दौरान एक रथयात्रा भी निकाली जाती है. मुस्लिम समुदाय के लोग इस रथयात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. इसके बदले में मस्जिद प्रतिनिधि पांच साल में एक बार आयोजित होने वाले अपने त्यौहार के लिए मंदिर संरक्षकों को भी आमंत्रित करते हैं.

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दोनों समुदायों के बीच ये परम्परा पिछली तीन पीढ़ियों से चली आ रही है. चार दिन चलने वाला ये त्यौहार हर साल मई के महीने ने मनाया जाता है. इस साल ये त्यौहार 9 मई से शुरू होकर 12 मई को ख़त्म होगा.

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मंदिर के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति व संरक्षक सुकुमार शेट्टी का कहना है कि ‘हमारे दादा परदादाओं के समय से ही ये परम्परा चली आ रही है जिसका हम आज भी पालन करते आ रहे हैं. इस परंपरा के पीछे पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि जब मंदिर के देवता जब इस धरती की यात्रा पर निकले और समुद्र पार करते हुए, वो सबसे पहले इसी मस्जिद के संरक्षकों से ही मिले थे जिन्होंने उनका दिल से स्वागत किया. इसके बाद दोनों समुदाय के संरक्षकों ने हर रोज़ फैसला किया. जो बाद में धीरे-धीरे लोगों के लिए एक परम्परा सी बन गयी जिसे आज तक निभाया है.

मदिंर फ़ेस्टिवल के लिए मस्ज़िद प्रमुख टीएस सैय्यद का कहना है कि वो पिछले 8 साल से इस त्यौहार में भाग लेते आ रहे हैं. मंदिर के संरक्षक हर साल हमारे त्यौहार के वक़्त ट्रक भर के चावल, घी और सब्ज़ियां देते हैं.

जबकि सुकुमार शेट्टी का कहना है कि दोनों समुदाय के वरिष्ठ लोग त्यौहार के दिन मुख्य मंदिर के सामने एक बरगद के पेड़ के चारों ओर मंच साझा करते हैं इस दौरान परिवारों के बीच हुए छोटे-मोटे विवादों को भी सुलझाया जाता है.

जिला अधिकारी जीवन बाबू ने कहा कि ‘दो समुदायों के बीच का ये भाईचारा समाज के लिए अनेकता में एकता की मिसाल कायम करेगा. मंदिर और मस्जिद न केवल शांतिपूर्ण धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि भिन्न-भिन्न मानवीय विचारों को एकजुट करने के उदाहरण भी हैं. जिला प्रशासन इसकी सराहना करता है और उन्हें हर संभव मदद प्रदान करेगा. 

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