बड़े खुशनसीब होते हैं वो बच्चे, जिनके बचपन का हिस्सा होते हैं CSD कैंटीन और KV

Komal

अगर आप आर्मी से ताल्लुख रखने वाले परिवार में रहे हैं, तो आज आपको भयंकर नॉस्टैल्जिया होने वाला है. आज बात करेंगे आर्मी कैंपस की उन यादों की, जहां CSD कैंटीन थी, खाली साफ़-सुथरी सड़कें थीं और थे केंद्रीय विद्यालय.

मेरे पापा एयरफ़ोर्स में हैं, तो मेरा बचपन अलग-अलग एयरफ़ोर्स कैम्पस में गुज़रा. बार-बार पोस्टिंग होने की वजह से जन्म किसी शहर में हुआ, स्कूलिंग कई स्कूलों में हुई, कई जगहों की संस्कृति को जाना. जब कोई पूछता है कि कहां की रहने वाली हो, तो जवाब देना बड़ा मुश्किल हो जाता है. जहां की रहने वाली हूं, वहां कभी रही नहीं, तो वहां से जुड़ाव भी महसूस नहीं होता. बाकि कितने शहर घर हुए, कितने शहरों के हम हुए, अब किसी एक जगह का नाम ले भी दूं, तो बेईमानी लगती है.

खैर, ये कुछ यादें हैं आर्मी कैंपस में गुज़ारे बचपन की. आपने भी गुज़ारा है, तो आपकी भी मिलती-जुलती ही होंगी.

1. हर कैंपस में बसता है छोटा सा भारत

अगर भारत की रूह देखनी हो, तो किसी कैंपस में रहने वाले लोगों को देख लीजिये. कोई केरल से है, कोई बिहार से, कोई हरियाणा से, तो कोई बंगाल से. हिन्दू भी मिलेंगे और मुसलमान भी. कुछ नहीं मिलेगा, तो वो है नफ़रत. कैंपस में दीवाली भी मनाई जाती है, छठ पर गड्ढा खोद कर पानी भर लिया जाता है और वहीं छठ की पूजा होती है, दुर्गा पूजा भी होती है और गणेश चतुर्थी भी, जन्माष्टमी में स्कूल के बच्चे प्रोग्राम में हिस्सा लेते हैं और ईद भी मनायी जाती है. आर्मी कैम्पस में सर्वधर्म स्थल होते हैं, जहां सभी धर्मों के लोग पूजा करने आते हैं.

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2. केवी और आर्मी स्कूल

ज़्यादातर बच्चों की स्कूलिंग या तो केवी से होती है या आर्मी/एयरफोर्स स्कूलों से. पोस्टिंग के कारण जगहें बदल जाती हैं, पर स्कूल वही रहता है. कुछ नहीं तो स्कूलिंग के दौरान 4-5 स्कूल तो हर बच्चे को बदलने पड़ते हैं.

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वैसे एक नुकसान भी होता था इन स्कूलों में पढ़ने का. आप बंक मार कर कहीं जा नहीं सकते थे. ज़्यादातर स्कूल, कैंपस के अन्दर ही होते हैं, कैंपस के अन्दर ही पापा का ऑफ़िस भी होता है. बहुत सम्भावना होती है इस बात की कि आप बंक मार कर स्कूल से निकलें और रास्ते में पापा मिल जायें. क्या करेंगे फिर?

3. पुराने दोस्तों का छूटना और नए दोस्तों का मिलना

किसी नयी जगह जाने पर कुछ दिन तो बुरा लगता था, लेकिन जल्द ही नए दोस्त बन जाया करते थे. जब तक उनसे दोस्ती गहरी होती, पोस्टिंग नाम की मुसीबत फिर आ टपकती. बड़ा दुःख होता अपना स्कूल, घर, दोस्त सब कुछ छोड़ कर जाते हुए, पर जाना पड़ता. ये साइकिल यूं ही चलती रहती. यही कारण है कि आर्मी वाले बच्चों के दोस्त पूरे भारत में फैले होते हैं.

कुछ साल पहले तक इंटरनेट और सोशल मीडिया का भी चलन नहीं था. ऐसे में कई बार यूं भी होता था कि एक बार छूटने के बाद, जिगरी दोस्त ज़िन्दगी में कभी नहीं मिल पाते थे.

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4. तुम्हारे घर में तो बड़ा स्ट्रिक्ट माहौल होगा न?

ये वो सवाल है, जो हर बाहर का बच्चा आर्मी के बच्चों से पूछता है. लोगों को लगता है घरों में भी आर्मी वाला डिसिप्लिन होता होगा. जबकि ऐसा असल में नहीं होता. घर में हम भी आम बच्चों जैसी शैतानियां करते हैं, छुट्टी के दिन देर से भी उठते हैं. और हां, हम सबके घर में बन्दूक और हथियार भी नहीं होते.

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5. ऐसी दिखती थीं स्कूल बसें

हम सबकी स्कूल बस एक जैसी ही दिखती है, गहरे हरे रंग की. इन्हीं में बैठ कर हम स्कूल, मिलिट्री हॉस्पिटल और कभी-कभी पिकनिक पर भी जाते थे. अब भी अगर ये कहीं दिख जाती हैं, तो स्कूल बस की यादें ताज़ा हो जाती हैं.

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6. किचन गार्डन

किचन गार्डन कैंपस के लगभग सभी घरों में होते हैं. जगह की कोई कमी नहीं होती. ऊपर के मालों में रहने वालों के भी गार्डन होते हैं, जिनमें फल, सब्ज़ी, फूल सब लगते हैं. हमें शेयरिंग की आदत सिखानी नहीं पड़ती, क्योंकि हमेशा अपने आस-पास लोगों को शेयरिंग करते देखा है. किसी के यहां अमरूद का पेड़ होता, तो सीज़न में अमरूद पड़ोसियों को भी खाने को मिलते, किसी की क्यारी में टमाटर लगते, तो पड़ोसियों को भी टमाटर ख़रीदने न पड़ते. कैंपस में रहने वाले लोग काम-चलाऊ किसान भी होते हैं, अपनी क्यारियों की गुढ़ाई, सिंचाई, सब करते हैं. हम सबने खेत से तोड़ी हुई सब्ज़ी पका कर ज़रूर खायी होती है.

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7. अपनी गृहस्थी को पैक करना

हम लोग मूवर्स एंड पैकर्स को बुलाने में यकीन नहीं रखते. हम खुद ही इस काम में माहिर हो चुके होते हैं. अपनी पूरी गृहस्थी को पैक कर के ट्रक में भेज देना और नयी जगह पर उसे फिर वैसे ही बसा लेना एक आम बात हो जाती है. जगहें भले ही बदलती रहती हों, क्वार्टर लगभग एक से ही होते हैं.

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8. सपनों का भारत, कैंपस में पहले से ही मौजूद है

भारत में कई समस्याएं हैं, सड़कों पर गंदगी है, लोग ट्रैफ़िक नियम आदि का पालन नहीं करते, महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, धार्मिक मतभेद हैं, पर अगर आप किसी कैम्पस में जायेंगे, तो वो भारत देख सकते हैं, जहां हर कोई नियमों का पालन करता है, किसी महिला के साथ बदसलूकी नहीं होती, हर जगह के, हर धर्म के लोग मिल-जुल कर साथ रहते हैं.

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9. मूवी हॉल्स, ओपन थिएटर, क्रैकर शो और लंगर

कैंपस में ऐसे थिएटर होते हैं, जहां आप कम से कम पैसों में मूवी देख सकते हैं, मूवी देखने आये ज़्यादातर लोग आपकी जान-पहचान के भी होंगे. हर त्यौहार पर प्रोग्राम का आयोजन होता था, जिसमें स्कूल के बच्चे रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर परफॉर्म करते हैं, पूरा कैंपस दिवाली से पहले क्रैकर शो देखने के लिए जमा होता है, लंगर होते हैं.

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10. किराए पर रहने का होता है अच्छा-खासा अनुभव

नयी जगह पोस्टिंग होने पर जाते ही क्वार्टर नहीं मिल जाता. हमें कुछ समय किराये पर भी रहना पड़ता है. कैंपस के बाहर किराये के घरों में रहते हुए हम सबको कभी न कभी खडूस मकान-मालिकों से जूझना पड़ता है.

11. AWWA/AFWWA मीटिंग्स और सबला नारियां

आर्मी वालों की पत्नियों का संगठन हर कैंपस में होता है. अपनी मम्मी को तैयार होकर इन मीटिंग्स में जाते हुए देखने की सभी बच्चों को आदत होती है. यहां बीवियां अबला नहीं होतीं, उन्हें काफ़ी पॉवर दी जाती है.

कई बार पापा की पोस्टिंग ऐसी जगह होती, जहां परिवार को साथ नहीं रखा जा सकता. कभी न कभी माओं को घर की पूरी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती और यही सब उन्हें मजबूत बना देता, कई घरों में तो मां, पापा से भी ज़्यादा स्ट्रिक्ट होती है.

पापा को TD (Transfer Duty) पर जाना होता, तब भी मां ही सब कुछ संभालती और पापा जब भी TD से लौटते, तो सबके लिए कुछ न कुछ लेकर आते. पापा से दूर रहने की आदत भी बचपन से ही हो जाती है.

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12. हॉस्पिटल बोले तो MH

आर्मी वालों के परिवारों का इलाज भी मिलिट्री अस्पताल में ही होता है. कभी प्राइवेट अस्पतालों में जाना नहीं होता. घर में किसी के बीमार होने पर Sick Report होती और इलाज होता MH में. हमेशा मुफ़्त इलाज हुआ, तो बाहर से कोई दवाई लेना भी बड़ा खलता है.

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13. पापा का नाम रैंक के साथ बताना

कैंपस में सबके पापा एक-दूसरे को जानते हैं. अगर आपसे कोई गड़बड़ हो जाये, तो पूरी सम्भावना होती है पापा तक बात पहुंच जाने की. कुछ होते ही अंकल पूछ लेते हैं, ‘पापा का नाम बताओ अपने’. बच्चों को भी पापा का नाम उनकी रैंक के साथ बताने की आदत होती है.

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14. ग्राउंड्स, पार्क और स्विमिंग पूल

कैंपस में रहते हुए कभी खेलने के लिए जगह नहीं ढूंढनी पड़ती. घरों के सामने पार्क होते हैं, सभी पार्क्स में एक जैसे झूले होते हैं, ग्राउंड होते हैं, जहां सुबह-शाम लोग टलहते या दौड़ लगाते दिख जाते हैं. ज़्यादातर कैम्पस में ऐसे पार्क भी होते हैं, जहां हिरण, खरगोश, बत्तखें आदि रखे जाते हैं.

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15. CSD कैंटीन, हमारा मॉल

सुपरमार्केट और मॉल की जगह कैम्पस में कैंटीन होती है. बड़ा मज़ा आता है कैंटीन में जाकर अपनी पसंद का सामान टोकरी में डालने में. जब भी घर में कैंटीन से सामान आता है, बच्चों को बड़ी एक्साईटमेंट होती है देखने की कि क्या-क्या आया है.

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जिनका बचपन ऐसे कैम्पस में बीतता है, वो वाकयी बहुत ख़ुशनसीब होते हैं. ये तो थीं, मेरी यादें. अगर कुछ छूट गया हो, तो आप कमेन्ट कर के बता सकते हैं. अगली कड़ी में उसे भी शामिल किया जायेगा.

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