वो समय जब प्री-मैच्योर बेबीज़ को समझा जाता था बंदर, उस दौर में इस शख़्स ने बचाई थी 6500 ज़िंदगियां

Akanksha Tiwari

20वीं शताब्दी के आस-पास प्री-मैच्योर बच्चों को हीनता की नज़र से देखा जाता था क्योंकि वो शारीरिक रूप से काफ़ी कमज़ोर होते थे. इसलिये वो इंसानी बच्चों से ज़्यादा बंदर के बच्चे की तरह लगते थे. अस्पतालों में इनके इलाज का अभाव था, इसलिये वो ज़्यादा दिनों तक जीवत भी नहीं रह पाते थे. इसी दौर में एक व्यक्ति सामने आया, जिसने लोगों के मनोरंजन के लिये प्री-मैच्योर बेबीज़ का इस्तेमाल किया और करीब 6,500 से ज़्यादा ज़िंदगियां बचा लीं. 

नाम था Martin Couney Martin 

Couney के पास कोई मेडिकल डिग्री नहीं थी और न ही उन्होंने कभी डॉक्टर होने का दावा पेश किया. Martin Couney ही वो शख़्स हैं, जिन्होंने यूरोप में Incubators को पॉपुलर किया. Martin ने 1880 के आस-पास पेरिस में Incubators का विकास प्री-मैच्योर बच्चों के लिये किया था. जिसकी पहली प्रदर्शनी 1896 में Berlin Exposition में की गई थी.  

1933 में World’s Fair Weekly में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक, एक प्री-मैच्योर जन्मी महिला ने बताया था कि जब उसका जन्म हुआ तब हॉस्पिटल के पास उसका इलाज करने के लिये पर्याप्त साधन नहीं थे. तभी उसके पिता ने उसकी जान बचाने के लिये Martin Couney की मदद ली थी. 

वहीं प्री-मैच्योर बच्चों को दिखाने के लिये Martin लोगों से 25 Cents वसूलते थे, जिन्हें वो प्री-मैच्योर बच्चों के लिये ही इस्तेमाल करते थे. ऐसा करके उन्होंने 6,500 Infants की जान बचाई. इसके साथ ही American Medical Science में नया बदलाव भी लाया. पर अफ़सोस कई बच्चों को ज़िंदगी देने वाले इस मसीहा ने 1950 में दुनिया को अलविदा कह दिया. जब वो मरे उनकी जेब में एक भी पैसा नहीं था. 

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