पीरियड से जुड़ी शर्म तोड़ने की पहल है Menstrual Activism, सोशल मीडिया पर भी उठ रही है आवाज़

Komal

पीरियड या माहवारी अब तक दुनिया में एक Taboo समझा जाता है, लेकिन अब इसके बारे में जागरुकता फैलाने के लिए लोग इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा बात करने लगे हैं. सोशल मीडिया पर भी इससे जुड़े Taboo को तोड़ने की एक लहर सी चल पड़ी है.

Menstrual Activism के इस दौर की तुलना 1960s में हुए Women’s Liberation आन्दोलन से की जा रही है. अब महिलाएं पीरियड से जुड़े मुद्दों पर खुल कर बोलने लगी हैं. अब से पहले कभी भी इस Taboo को तोड़ने के लिए इस तरह आवाज़ नहीं उठाई गयी थी.

महिलाएं अब बड़ी संख्या में पीरियड ट्रैक करने के Apps भी डाउनलोड करने लगी हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि वो इस मुद्दे से जुड़ी शर्म को ख़त्म करना चाहते हैं. इसके बारे में शर्म महसूस करने से ज़्यादा ज़रूरी है इसके बारे में जागरूक होना.

अब इसके लिए इमोजी आदि भी बनाये जाने लगे हैं. Instagram द्वारा कैनेडियन कवयित्री रूपी कौर की पीरियड के दाग वाली तस्वीर हटाने पर भी दो साल पहले Instagram की जम कर आलोचना की गयी थी.

उनके 1.8 मिलियन Followers ने भी रूपी का समर्थन किया. रूपी का कहना था कि छोटे कपड़ों में महिलाओं की तस्वीरें Instagram पर खूब मिल जाती हैं, लेकिन पीरियड के दाग दुनिया को अश्लील लगते हैं.

अमेरिकी म्यूज़िशियन किरण गांधी ने लन्दन मैराथन में हिस्सा लिया और पीरियड का खून कपड़ों पर लगे होते हुए ही फ़िनिश लाइन क्रॉस की. वो बिना Tampon के रेस में भागी थीं.

Bodyform को सेनेटरी पैड के ऐड में पहली बार नीले की जगह लाल पदार्थ इस्तेमक करने के लिए सराहा गया था.

सर्वे बताते हैं कि अब भी ज़्यादातर महिलाएं पीरियड के बारे में बात करने में शर्म महसूस करती हैं. आज भी देश के कई हिस्सों के स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा न होने के कारण लड़कियों को पीरियड के दौरान स्कूल जाने में परेशानी होती है.

कई देश पीरियड से जुड़ी रूढ़िवादिता को ख़त्म करने के लिए क़दम उठा रहे हैं. अगस्त में नेपाल में Chhaupadi प्रथा को बंद किया गया. वहां लड़कियों को पीरियड के दौरान घर से बाहर एक झोपड़ी में रहने को कहा जाता था. कई समुदायों में पीरियड के दौरान महिलाओं को अपवित्र माना जाता है.

University of Massachusetts की प्रोफ़ेसर Christina Bobel ने कहा कि जब तक पीरियड से जुड़े मिथक नहीं तोड़े जाते, महिलाओं को जागरुक करना मुमकिन नहीं है.

ये एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जिसे अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं की तरह सामान्य नज़रिए से देखा जाना चाहिए.

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