मुज़फ़्फरनगर…
इस शहर के नाम के साथ ही कई अप्रिय घटनाओं की स्मृतियां जुड़ गई हैं. ये नाम कहीं भी पढ़ते हैं, तो दिमाग़ में पहले ही सवाल कौंध जाता है,
‘फिर कुछ हुआ क्या?’
मुज़फ़्फरनगर शहर में ही एक कस्बा है, लढ्ढेवाला. तंग गलियों और कॉन्क्रीट के घरों का ये कस्बा. कस्बे के एक कोने में दो इमारतों के बीच ही है एक मंदिर, जिसे यहां रहनेवाले हिन्दू परिवारों ने सालों पहले ऐसे ही छोड़ दिया था.
1990 के दशक में, बाबरी मस्जिद ध्वस्त कर दिए जाने के बाद इस कस्बे को छोड़ कर सारे हिन्दू परिवार चले गए थे. 26 साल बाद भी इस मंदिर की देख-रेख स्थानीय मुस्लिम करते हैं. चंदा इकट्ठा करके, हर दीवाली पर इस मंदिर की पुताई भी की जाती है.
लढ्ढेवाला के 60 वर्षीय मेहरबान अली ने TOI से कहा,
जीतेंद्र कुमार मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बिगड़े हालातों के बावजूद मैंने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन वो चला गया और उसके साथ ही कई और परिवार भी चले गए. इस वादे के साथ कि एक दिन वे ज़रूर लौटेंगे. उस दिन के बाद से ही यहां के निवासी उनके मंदिर की देखभाल कर रहे हैं.
इस कस्बे में लगभग 35 मुस्लिम परिवार रहते हैं. मेहरबान की तरह ही कई लोगों का मानना है कि जो हिन्दू कस्बे को छोड़कर गए, थो वे एक दिन लौट आएंगे. स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस कस्बे में 20 हिन्दू परिवार रहते थे और 1970 के आस-पास ये मंदिर बनवाया गया था.
मुनसिपालटी वॉर्ड के पूर्व सदस्य नदीम ख़ान ने TOI को बताया,
लोग दीवाली से पहले पैसे इकट्ठा करते हैं. मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है लेकिन मंदिर की नियमित सफ़ाई हो जाती है. 1992 से पहले यहां मूर्ति थी. जब परिवारों ने ये जगह छोड़ी, तब वे अपने साथ मूर्ति भी ले गए. गुलज़ार सिद्दीक़ी, पप्पू भाई, कय्युम अहमद, नौशाद, ज़हीद अहमद और मकसूद अहमद.
आपसी भाईचारे और प्रेम का इससे बढ़िया उदाहरण नहीं हो सकता. ये कस्बा साबित करता है कि नफ़रत कितनी भी फैला दी जाएं, मोहब्बत के दम पर दुनिया कायम रहेगी.