नेपाल संसद का ऐतिहासिक फ़ैसला, Periods में महिलाओं को अलग रखने को माना अपराध

Akanksha Tiwari

हिंदू धर्म में महिलाओं को माता लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है, साथ ही ये भी कहा गया है कि जो लोग अपने घर की महिलाओं का अपमान करते हैं या उन्हें किसी भी तरह प्रताड़ित करते हैं लक्ष्मी जी उनके घर में कभी निवास नहीं करती हैं. ये बातें सभी बड़े-बुज़ुर्ग अपनी अगली पीढ़ी को बताते हैं, ताकि वो महिलाओं की इज़्ज़त कर उन्हें लक्ष्मी की तरह पूजें. क्यों सही कहा न?

लेकिन अगर दुनिया की हर औरत मां लक्ष्मी है और इसका सम्मान करना चाहिए, तो मासिक धर्म के दौरान औरतों के साथ भेदभाव क्यों. जी हां, आज भी देश-दुनिया के कई कोनों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ इतना बुरा बर्ताव किया जाता है, जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो.

महिलाओं के साथ होने वाले इसी दुर्व्यवहार को देखते हुए, बीते बुधवार को नेपाल की संसद ने एतिहासिक निर्णय लिया. संसद ने पीरियड्स में औरतों को अछूत घोषित करने और घर से बाहर निकालने की हिंदू प्रथा ‘छौपदी’ को अपराध की श्रेणी में डाल दिया है. दरअसल, नेपाल के विभिन्न समुदायों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अपवित्र समझा जाता है और इस अवधि में घर से दूर एक झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर किया जाता है. इस प्रथा को ‘छौपदी’ के नाम से जाना जाता है.

नए कानून के तहत महिलाओं को माहवारी के दौरान घर से बाहर रहने के लिए मजबूर करने की परंपरा को मानने के लिए बाध्य करने वालों को तीन महीने की सज़ा या तीन हज़ार नेपाली रुपये तक का ज़ुर्माना लग सकता है. दरअसल, ‘छौपदी’ प्रथा के कारण अब तक गांव की कई महिलाएं अपनी जान गंवा चुकी हैं, जिसके चलते नेपाल की संसद ने ये फ़ैसला सुनाया.

ये प्रथा महिलाओं पर पीरियड्स के अलावा बच्चे के जन्म के बाद भी लागू होती है. ये प्रथा महिलाओं के लिए नर्क की सज़ा से कम नहीं होती. उनकी हालत एक अछूत जैसी होती है. न उन्हें घर में जाने की इज़ाज़त होती है, न खाना-पीना छूने की. यहां तक कि वो जानवरों का चारा भी नहीं छू सकतीं. जिस झोपड़ी में वो रहती हैं, उनमें तमाम तरह के ख़तरे होते हैं. जानवरों का खौफ़ तो छोड़िए, उन्हें बलात्कार के डर का भी सामना करना पड़ता है.

वहीं सोशल मीडिया पर भी नेपाल संसद द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक फ़ैसले की काफ़ी प्रशंसा हो रही है. नेपाल ने तो कर दिखाया, भारत में कब?

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