ये दो घटनाएं साबित करती हैं कि भारत की आज़ादी के लिहाज से नवंबर का महीना कई मायनों मे ऐतिहासिक है

Vishu

अंग्रेज़ों ने भारत पर लगभग 200 सालों तक राज किया. इन दो शताब्दियों के राज में भारत ने कई बार संघर्ष किया और ऐसे में कुछ महीने भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं. ऐसा ही एक महीना नवंबर का भी है. भारत की आज़ादी के लिहाज़ से नवंबर महीने के कई मायने हैं. भारत के कई क्षेत्रों पर पिछले 100 सालों से जड़े जमाए बैठी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का राज 1 नवंबर 1958 को ख़त्म हुआ था. इसके अलावा 1913 के नवंबर महीने में ही लाला हरदयाल और करतार सिंह सराभा ने अमेरिका में गदर आंदोलन की शुरूआत की थी.

ये आंदोलन दरअसल उन सिखों का था जो अमेरिका में रहते थे. लेकिन वो 15 साल के करतार सिंह सराभा ही थे जिन्होंने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया और गदर पार्टी का निर्माण किया था. पार्टी ने इस दौरान एक साप्ताहिक अख़बार की भी शुरूआत की.  इस पार्टी के फ़ाउंडर ने एक बार कहा था कि हम सिख या पंजाबी नहीं थे. हमारा धर्म सिर्फ़ देशभक्ति था. गदर का पहला संस्करण सैन फ़्रांसिस्को में 1 नवंबर 1913 को निकाला गया था.

हम सभी भगत सिंह से प्यार करते हैं लेकिन बहुत कम लोग हैं जो करतार सिंह साराभा के बारे में जानते हैं. वो करतार सिंह, जिन्हें खुद भगत सिंह अपना गुरू समझते थे. करतार सिंह ही गदर क्रांति के मुख्य कर्ताधर्ता थे. करतार का मकसद था कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी को ज़्यादा से ज़्यादा कमज़ोर कर दिया जाए. वे युद्ध का फ़ायदा उठाकर अंग्रेजों को कमज़ोर करना चाहते थे ताकि देश को जल्द से जल्द आज़ादी मिल सके. 1896 में लुधियाना में जन्म लेने वाले करतार ने अमेरिका में पढ़ाई की थी और 1913 में गदर पार्टी का निर्माण किया. पार्टी ने जो अखबार निकाला, उसका नाम भी गदर रखा गया था. इस पत्रिका को पश्तो, हिंदी, पंजाबी, बंगाली, उर्दू और गुजराती जैसी भाषाओं में छापा गया था. इस अखबार का मकसद अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीय युवाओं को आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित करना था.

करतार अपने बीस हज़ार साथियों के साथ ही अंग्रेज़ों को नेस्तनाबूद करने की कोशिश में थे लेकिन उनके एक दोस्त ने मुखबिरी की और पुलिस को खबर कर दी. पुलिस ने करतार और उसके कुछ साथियों को गिरफ़्तार कर लिया. इसके बाद करतार को 16 नवंबर 1915 के दिन फ़ांसी दे दी गई. महज 19 साल की उम्र में लाहौर सेंट्रल जेल में उन्हें फ़ांसी दे दी गई थी. ये वही जेल था जिसमें राजगुरू, भगत सिंह और सुखदेव को 16 साल बाद फ़ांसी दी जाती है. अपने देश के लिए करतार हंसते-हंसते फ़ांसी के फंदे पर झूल गए.

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