राष्ट्रपति को ख़त लिख इच्छामृत्यु मांगी इस दंपत्ति ने. वृद्धों की सेवा करना इतना मुश्किल है?

Sanchita Pathak

हम इंसानों को अकसर अकेलेपन का डर सताता है. बढ़ती उम्र के साथ ये डर और बढ़ने लगता है. वृद्धावस्था आते-आते लोगों के अंदर ये डर और बढ़ जाता है.

बीमारी और बढ़ती उम्र के कारण ऐसे ख़्याल आते हैं. वैसे भी देश में वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या इस बात को साबित भी करती है कि कि बुज़ुर्गों के देखभल करने में हम कहीं न कहीं चूक रहे हैं.

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इन सब के बीच, मुंबई के एक बुज़ुर्ग कपल के एक फ़ैसले ने सोचने को मजबूर कर दिया। इन्होंने राष्ट्रपति को ख़त लिख कर साथ में मरने की आज्ञा ली मांगी है.

दक्षिण मुंबई के लक्ष्मीबाई चॉल के कमरा नंबर 10 में रहते हैं 78 वर्षीय इरावती लवाटे और 87 वर्षीय नारायण लवाटे.

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इस दंपत्ति ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को 21 दिसंबर 2017 को चिट्ठी लिखी और Mercy Death या Physician Assisted Suicide करने की आज्ञा मांगी.

ग़ौरतलब है कि देश में अभी इस तरह का कोई क़ानून नहीं है.

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ANI  से हुई बातचीत में नारायण ने कहा,

हमें कोई शारीरिक परेशानी नहीं है. लेकिन इस बात की कोई गैरेंटी नहीं है कि भविष्य में भी मैं स्वस्थ रहूंगा. इसकी नौबत आने से पहले मरना बेहतर है. मैंने और मेरी पत्नी ने पहले ही निर्णय ले लिया था कि हम निस्संतान रहेंगे. हमारे परिवार में कोई और सदस्य नहीं है.

इरावती का कहना है कि अभी उनका हृदय अच्छे से काम कर रहा है, तो क्यों ना ये किसी ऐसे इंसान के काम आ जाये जिसे इसकी ज़रूरत है.

वृद्ध दंपत्ति का ये भी मानना है कि अस्पतालों में पैसों की फ़िज़ूलख़र्ची ही होती है, एक दिन सभी को मरना ही है.

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नारायण लवाटे स्टेट ट्रांसपोर्ट ऑफ़िसर थे और 1989 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं. वहीं इरावती शिक्षिका रह चुकी हैं.

इच्छामृत्यु लेने का ख़्याल सबसे पहले नारायण के मन में ही आया था. ये दोनों पिछले 25 वर्षों से इच्छामृत्यु के बारे में सोच रहे हैं. मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग के बारे में सुनने के बाद से ही दोनों ने ख़ुद से मौत को गले लगाने का निर्णय लिया.

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1973 में नर्स अरुणा शानबाग रेप और गला घोटे जाने के कारण वो कोमा में चली गई थीं. 37 साल बाद, पत्रकार पिंकी वीरानी ने उनके लिए सुप्रीम कोर्ट से इच्छामृत्यु की मांग की. कोर्ट ने याचिका ख़ारिज कर दी लेकिन देश में Passive Euthanasia (बीमार मरीज़ों से Life Support System हटा लेना) क़ानून लागू कर दिया गया.

इस पूरी घटना के साथ ही देश में इच्छामृत्यु के विषय पर एक बार फिर बात-चीत का दौर शुरू हो गया है. अभी तक राष्ट्रपति की तरफ़ से इस मामले को लेकर कोई जवाब नहीं आया.

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