स्वतंत्रता संग्राम की ये ऐतिहासिक तस्वीरें, ले जाएंगी उसी दौर में, जब निकला था देश में आज़ादी का सूरज

Komal

आज़ाद भारत के लिए 15 अगस्त सिर्फ़ एक तारीख ही नहीं, बल्कि उस आज़ादी के जश्न का दिन है, जिसके लिए कितने ही जवानों ने वीरगति पाई और महानायकों ने जेल में दिन बिताए. अमेरिका को करीब 229 साल पहले स्वतंत्रता मिल गई थी, लेकिन भारत को स्वतंत्रता मिले मात्र 72 वर्ष ही हुए हैं. ज़रा सोचिए, जो देश लंबे समय तक गुलाम रहा हो, उसके लिए आज़ादी का क्या मतलब होगा.  हांलाकि भारत को आज़ादी बंटवारे की कीमत पर मिली, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान अस्तित्व में आया. 72 साल पहले भारत के 32 करोड़ लोगों ने आज़ादी का सूरज देखा था.

15 अगस्त 1947 को पूरा देश आज़ादी का उत्सव मना रहा था. देश के लगभग हर हिस्से में लोग इतने उत्साहित थे कि सड़कों पर नाच रहे थे. राष्ट्रपति भवन, संसद आदि के आस-पास लोगों का हुजूम लगा था, क्योंकि उस समय आज़ादी हर व्यक्ति का पहला सपना था.

देखिए आज़ादी के दिन की कुछ यादगार तस्वीरें जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.

भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 15 अगस्त के दिन को ही आज़ादी का दिन इसीलिए चुना था, क्योंकि दो वर्ष पहले 15 अगस्त के दिन ही मित्र देशों की सेना के सामने जापान ने समर्पण किया था. 15 अगस्त के दिन ही दक्षिण कोरिया ने जापान से (1945), बाहरेन ने इंग्लैंड से (1971) और फ्रांस से कांगो गणराज्य ने (1960) स्वाधीनता हासिल की थी.

भारत में ब्रिटिश शासन के अंतिम वायसराय होने के चलते लॉर्ड माउंटबेटन को भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में स्वतंत्रता दिवस से जुड़े आयोजनों में शामिल होना था. किसी भी प्रकार की असुविधा से बचने के लिए माउंटबेटन ने 14 जवाहरलाल नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रायस्ट विद डेस्टिनी’ प्रधानमंत्री बनने से पहले ही दे दिया था. उल्लेखनीय है कि नेहरू ने यह भाषण 14 अगस्त की मध्यरात्रि को दिया था, जबकि देश के पहले प्रधानमंत्री वह 15 अगस्त की सुबह बने थे.

भिकाजी रुस्तम कामा पहली ऐसी शख्स थीं, जिन्होंने 22 अगस्त, 1907 को जर्मनी में तिरंगा फहराया था. लेकिन इस तिरंगे में और भारत के राष्ट्रीय ध्वज में थोड़ा अंतर था. भिकाजी कामा के झंडे में सबसे ऊपर हरा रंग, बीच में सुनहरा केसरी और सबसे नीचे लाल रंग था. इस झंडे पर ‘वंदे मातरम’ लिखा था.

जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा था, तब एक शख्स ऐसा भी था, जो इस आज़ादी का जश्न नहीं मना रहा था. वो शख्स कोई और नहीं, बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे. गांधीजी ने आज़ादी का दिन अनशन कर के मनाया था. गांधीजी आज़ादी के दिन दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर कलकत्ता (अब कोलकाता) में थे. कलकत्ता में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच शांति और सौहार्द कायम करने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया था. आज़ादी से कुछ दिनों पहले की बात है, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने दूत के हाथो एक पत्र भेजा, जिसमे लिखा था, “बापू, आप राष्ट्रपिता हैं. 15 अगस्त 1947 पहला स्वाधीनता दिवस होगा. हम चाहते हैं कि आप दिल्ली आ कर हमें अपना आशीर्वाद दें.”

1947 के भारत विभाजन के दौरान ही ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है, जबकि अखंड भारत में ये सभी शामिल थे. इस तरह कुल मिलाकर भारतवर्ष में 662 रियासतें थीं, जिसमें से 565 रजवाड़े ब्रिटिश शासन के अंतर्गत थे. 565 रजवाड़ों में से से 552 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी. जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर और कश्मीर को छोड़कर बाकी रियासतों ने पाकिस्तान के साथ जाने की स्वीकृति दी थी.

भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना (3 जून प्लान) के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया. इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगे और उनको ब्रितानी सरकार सत्ता सौंप देगी.

भारत 15 अगस्त को आज़ाद जरूर हो गया, लेकिन उसका अपना कोई राष्ट्र गान नहीं था. रवींद्रनाथ टैगोर जन-गण-मन 1911 में ही लिख चुके थे, लेकिन यह राष्ट्रगान 1950 में ही बन पाया.

15 अगस्त तक भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण नहीं हुआ था. इसका फ़ैसला 17 अगस्त को रेडक्लिफ़ लाइन की घोषणा से हुआ.

हर स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं. लेकिन 15 अगस्त, 1947 को ऐसा नहीं हुआ था. लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लालकिले से झंडा फहराया था.

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