‘ऑपरेशन एयरलिफ़्ट’ के असली हीरो, 11 सालों से बेंगलुरु का ट्रैफ़िक भी संभाल रहे हैं

Maahi

बचपन से हमें एक अच्छा इंसान बनने की सीख दी जाती है. पहले माता-पिता फिर स्कूल में टीचर हमें यही सीख देते हैं. माता-पिता तो आज भी हमें समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाने सीख देते रहते हैं. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या वाकई में हम अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाते हैं? 


शायद जवाब होगा नहीं… क्योंकि आज लोगों के पास इतना समय ही नहीं है कि वो इस ओर ध्यान दे पाएं. जो लोग अपने काम के साथ-साथ इस ज़िम्मेदारी को निभा रहे हैं उनको हमारा सलाम है.

indianexpress

ऐसे ही एक शख़्स हैं सेना से रिटायर कैप्टन मोड़ेकुर्ती नारायण मूर्ति, जो पिछले 11 सालों से बेंगलुरु के लोगों को ट्रैफ़िक नियमों के प्रति सचेत कर रहे हैं. कैप्टन मूर्ति इससे पहले कुवैत में हज़ारों लोगों की जान बचा चुके हैं.

thebetterindia

बेंगलुरु की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक बन्नेरघट्टा में आपको खाकी पैंट, सफ़ेद शर्ट, सर में हेलमेट, हाथों में दस्ताने और नियोन रंग की बनियान पहने कैप्टन मूर्ति दिख जाएंगे. यहां वो लोगों को यातायात नियमों के साथ-साथ ज़िंदगी की अहमियत की सीख देते हुए मिल जायेंगे. कैप्टन मूर्ति ये काम एक वॉलिंटियर के तौर पर करते हैं वो इसे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी मानते हैं.

hindustantimes

कैप्टन मूर्ति कोई साधारण सैन्य अधिकारी नहीं थे. वो भारतीय सेना के कई बड़े ऑपरेशंस जैसे गोवा लिब्रेशन (1961) और भारत-चीन युद्ध (1962) का हिस्सा भी रह चुके हैं. सेना में 15 साल की सर्विस के बाद उन्होंने सन 1974 से 1980 तक ‘एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया’ ‘के साथ भी काम किया. साल 1990 में एयर इंडिया के लिए काम करते हुए कैप्टन मूर्ति ने ‘ऑपरेशन एयरलिफ़्ट’ के दौरान लाखों लोगों की जान बचाई थी. इसी ऑपरेशन पर बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार की फ़िल्म ‘एयरलिफ़्ट’ बनी थी.

thebetterindia
बेटर इंडिया से बातचीत के दौरान कैप्टन मूर्ति कहते हैं कि ‘मैं 1959 में भारतीय सेना में शामिल हुआ था और शुरुआत से ही मेरा काम लोगों की ज़िंदगी बचाने का रहा है. मैं अक्सर देखा करता था कि बेंगलुरु की सड़कों पर हमेशा भारी ट्रैफ़िक लगा रहता है. जब मैं रिटायर हुआ तो मैंने स्वेच्छा से यहां के यातायात अधिकारियों की मदद करने की सोची. मैंने बुज़ुर्गों और बच्चों को सड़क पार कराने से इसकी शुरुआत की. इसके बाद मेरी तैनाती भीड़-भाड़ वाले इलाकों में होने लगी. हमारी सड़कें हमेशा से ही गाड़ी चला रहे शख़्स के लिए किसी बुरे सपने की तरह रही हैं. मैं इसमें उनकी मदद करने की पूरी कोशिश कर रहा हूं’. 
thebetterindia

कैप्टन मूर्ति ‘ऑपरेशन एयरलिफ़्ट’ की याद ताज़ा करते हुए कहते हैं कि ‘वो एक ऐसा अनुभव था जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा’. अक्टूबर 1990 में मेरी तैनाती अम्मान (जॉर्डन) में थी. उस समय खाड़ी देशों में छिड़े युद्ध के दौरान वहां फंसे 1,16,134 भारतीयों को सुरक्षित निकाल लिया गया था. ये सिविल एविएशन इतिहास का सबसे बड़ा क़दम था. उस दौरान मैं सुरक्षा प्रभारी के रूप में ज़मीन पर काम कर रहा था.

starofmysore

83 साल के कैप्टन मूर्ति कहते हैं कि इस उम्र में मैं युद्ध के मैदान में तो नहीं जा सकता, लेकिन मैं अब भी लड़ रहा हूं. मेरी ये लड़ाई यातायात और इसके नियमों के प्रति लापरवाह रवैये के खिलाफ़ है. ट्रैफ़िक नियमों की अनदेखी करना लोगों को भले ही एक नॉर्मल बात लगे, लेकिन हमारी ज़िंदगी पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है.

thebetterindia

मेरे लिए प्रसिद्धि या पैसा नहीं, लोगों की ज़िंदगी की क़ीमत सबसे पहले है. सिर्फ़ सड़क पर गाड़ी चलाने ही नहीं, बल्कि स्कूलों और कॉलेजों के बच्चों को भी मेरी यही सलाह है कि यातायात नियमों का पालन करें और अपनी ज़िंदगी की क़ीमत को समझें. 
 
कर्नाटक सरकार साल 2011 में उनके इस नेक काम के लिए उन्हें ‘केम्पेगौड़ा पुरस्कार’ से सम्मानित कर चुकी है. 

Source: thebetterindia

आपको ये भी पसंद आएगा
मिलिए Chandrayaan-3 की टीम से, इन 7 वैज्ञानिकों पर है मिशन चंद्रयान-3 की पूरी ज़िम्मेदारी
Chandrayaan-3 Pics: 15 फ़ोटोज़ में देखिए चंद्रयान-3 को लॉन्च करने का गौरवान्वित करने वाला सफ़र
मजदूर पिता का होनहार बेटा: JEE Advance में 91% लाकर रचा इतिहास, बनेगा अपने गांव का पहला इंजीनियर
कहानी गंगा आरती करने वाले विभु उपाध्याय की जो NEET 2023 परीक्षा पास करके बटोर रहे वाहवाही
UPSC Success Story: साइकिल बनाने वाला बना IAS, संघर्ष और हौसले की मिसाल है वरुण बरनवाल की कहानी
कहानी भारत के 9वें सबसे अमीर शख़्स जय चौधरी की, जिनका बचपन तंगी में बीता पर वो डटे रहे